Haryana Chunav Result: हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे करीब-करीब स्पष्ट हो गए हैं. राज्य में भाजपा को शानदार जीत मिली है. उसे 51 सीटों पर जीत मिलती दिख रही है. वहीं कांग्रेस को मात्र 34 सीटें मिल रही हैं. तमाम एग्जिट पोल में हरियाणा में कांग्रेस की शानदार जीत की भविष्यवाणी की गई थी. लेकिन, रिजल्ट इसके बिल्कुल उलट आए हैं. हालांकि, वोट प्रतिशत के मामले में हरियाणा में दोनों दलों के बीच कांटे की टक्कर है. भाजपा का वोट प्रतिशत 39.88 फीसदी और कांग्रेस का वोट प्रतिशत 39.07 है. खैर चुनाव हार जीत का खेल है. इसमें जो जीता वह सिकंदर होता है. भले ही वह एक वोट से जीता हो या एक लाख वोट से.
दरअसल, हरियाणा के चुनावी नतीजों का विश्लेषण करें तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस एक जीती हुई बाजी हार गई. इसके पीछे मुख्य कारण पार्टी की रणनीतिक नाकामी है. यहीं पर उसको उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनावों से सीखने की जरूरत है. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने ऐसी महीन रणनीति बनाई कि भाजपा के दिग्गज भी चित हो गए थे. किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव इतनी बड़ी जीत हासिल करेंगे.
भाजपा का टार्गेट 51 फीसदी वोट
दरअसल, भाजपा के सामाजिक समीकरणों पर बारीक नजर दौड़ाई जाई तो आप पाएंगे कि वह हर राज्य में 51 फीसदी वोट को टार्गेट कर चलती है. वह हर राज्य में वहां के सबसे दबंग समुदाय के खिलाफ छोटे-छोटे सामाजिक समूहों को एकजुट करती है और फिर पूरे चुनाव को दबंग वर्सेस अन्य बना देती है.
इस बात को उदाहरण से समझते हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा गैर यादव ओबीसी की राजनीति करती है. कुछ ऐसा ही हाल बिहार में है. इन दोनों राज्यों में आबादी के हिसाब से यादव समुदाय सबसे बड़ा वोटर है. इनको मात देने के लिए वह छोटी जाति समूहों को एकजुट कर अपने पाले में लाती है.
लेकिन, बीते लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा की यह रणनीत काम नहीं कर पाई. क्योंकि अखिलेश यादव ने भाजपा की रणनीति का काट खोज लिया था. अखिलेश यादव पर यादव और मुस्लिम समुदाय के नेता होने के आरोप लगते हैं. लेकिन, बीते लोकसभा में उन्होंने यूपी की 80 सीटों पर कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा, लेकिन केवल पांच यादव उम्मीदवार उतारे. इनमें भी पांचों के पांचों उम्मीदवार उनके परिवार के ही थे. एक खुद वे थे और दूसरी उनकी पत्नी डिंपल भी थी. उन्होंने बड़ी संख्या में गैर यादव ओबीसी उम्मीदवार उतारे थे. इस कारण भाजपा की पूरी रणनीति फेल हो गई.
हरियाणा में अखिलेश का फॉर्मूला
हरियाणा में कांग्रेस पार्टी अखिलेश यादव की इस महीनी को नहीं समझ पाई. राज्य में जाट समुदाय सबसे बड़ा और प्रभावी जाति समूह है. यहां 28 से 30 फीसदी जाट वोटर्स हैं. इस चुनाव में जाट समुदाय में भाजपा को लेकर नाराजगी थी. लेकिन, सबसे बड़ा जाति समूह होने के बावजूद वह अपने दम पर सत्ता नहीं बदल सकता है. कांग्रेस पर जाट समुदाय की पार्टी होने का आरोप लगा. आंकड़े भी इस आरोप को सही बताते हैं. पार्टी ने चुनाव में 35 जाट उम्मीदवार उतारे.
दूसरी तरफ भाजपा इस चुनाव को शुरू से जाट बनाम गैर जाट करने में जुटी रही. कांग्रेस ने जाट नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और बड़ी संख्या में जाट उम्मीदवार उतारे. इस कारण भाजपा के पास एक हारी हुई बाजी जीतने का मौका आ गया. और पूरा चुनाव जाट बनाम नॉन जाट का हो गया.
यहीं पर अगर कांग्रेस पार्टी अखिलेश यादव से महीनी सीख लेती तो शायद ऐसे नतीजे नहीं आते. कांग्रेस पार्टी को एक जाट नेता के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के बाद दूसरी पंक्ति में दूसरे समूह के नेताओं को जोड़ना चाहिए था. उसे अपने जाति समूह से कम और अन्य जाति समूह से अपेक्षाकृत अधिक नेताओं को टिकट देना चाहिए था. जैसा कि यूपी के चुनाव में अखिलेश यादव ने किया था.
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FIRST PUBLISHED :
October 8, 2024, 16:49 IST