इंदिरा की थोड़ी चालाकी से भारत के लिए सिरदर्द नहीं बनता बांग्लादेश, औकात में..

1 month ago

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल बदलने का श्रेय दिया जाता है. 1971 की जंग में भारत ने पाकिस्तान के साथ एक लंबी लड़ाई लड़कर इस भूभाग पर बांग्लादेश के रूप में एक आजाद मुल्क की स्थापना करवाई. इस जंग में दिवंगत पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के नेतृत्व कौशल की हर कोई तारीफ करता है. इसके बाद इंदिरा गांधी को आयरन लेडी की संज्ञा दी गई. पार्टी लाइन से ऊपर उठकर उस वक्त के तमाम राजनेताओं ने इंदिरा गांधी की तारीफ की थी.

वर्ष 1947 में आजादी मिलने और देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के साथ यह तीसरी जंग थी. सबसे पहले 1948 में पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों के साथ कश्मीर में घुसपैठ किया. इस पहले जंग में ही पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी. फिर दोनों मुल्कों के बीच 1965 में जंग लड़ी गई. उस वक्त देश का नेतृत्व लालबहादुर शास्त्री के हाथों में था. भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई थी. इस जंग में दोनों तरफ जान-माल का भारी नुकसान हुआ था. लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री शास्त्री ने सोवियत संघ (मौजूदा रूस) के हस्तक्षेप के बाद पाकिस्तान से साथ समझौता कर लिया.

यह समझौता ताशकंद समझौते के नाम से चर्चित हुआ. इस समझौते में पीएम शास्त्री ने एक झटके में भारतीय सेना द्वारा कब्जाई गई जमीन लौटने की बात कह दी. दोनों देश जंग से पूर्व की स्थिति में पहुंचने को तैयार हो गए. उनके इस फैसले की देश के एक धड़े ने आलोचना की.

सवाल यही उठा कि भारत को इस जंग से क्या मिला? कूटनीतिक गलियारों में एक तबका आज तक यह कहता है कि 1965 में भारत के पास एक अच्छा मौका था. वह पाकिस्तान के साथ कश्मीर को लेकर निर्णायक डील कर सकता था. अगर ऐसा हुआ होता तो आज भारत कश्मीर की समस्या में नहीं उलझा होता. खैर, इस समझौते के तुरंत बाद ताशकंद में ही पूर्व पीएम शास्त्री की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई.

1971 की जंग
पाकिस्तान के साथ जंग के केवल छह साल बाद भारत के सामने एक बार फिर विकराल संकट पैदा हो गया. पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना का जुर्म चरम पर पहुंच गया. पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लाभाषी लोगों के खिलाफ उनके जुर्म, कत्लेआम और रेप की घटनाओं से तंग आकर करोड़ों की संख्या में लोग भारत की सीमा में घुस आए. भारत के सामने एक भीषण शरणार्थी संकट पैदा हो गया. इसके लिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से काफी अपील की, लेकिन अमेरिका सहित सभी पश्चिमी शक्तियों ने इस संकट से मुंह मोड़ लिया.

फिर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जबर्दस्त नेतृत्व कौशल का परिचय दिया. भारत ने बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी संगठन को सहयोग करने का फैसला लिया. फिर भारत और पाकिस्तान में जंग हुई. भारतीय सेना ने ढाका शहर पर कब्जा कर लिया. पाकिस्तान की पूरी सप्लाई लाइन काट दी गई. फिर 16 दिसंबर 1971 को 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. यह दुनिया के युद्ध इतिहास में समर्पण की सबसे बड़ी घटना था. पाकिस्तान के आत्मसमर्पण करने के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश नाम से एक स्वतंत्र देश बना.

in 1971 war india indira gandhi bargained better to bangladesh for a corridor from kolkata to agartala so that today situation will be difference

फिर डील का मौका
बांग्लादेश की स्थापाना में भारत से सहयोग के बाद वहां की आवाम और सरकार हर कोई भारत की शुक्रगुजार थी. लेकिन, यहां भी यही सवाल उठा कि इतनी बड़ी जीत हासिल करने के बाद भारत को इस जंग से क्या मिला? अगर भारत के कूटनीतिज्ञ 1948 और 1965 की जंग से सीख लिए होते तो वह लंबे समय में भारत के हित के बारे में जरूर सोचते. ऐसी स्थिति में वे बांग्लादेश के भीतर भारत के लिए एक गलियारे की मांग कर सकते थे. उस परिस्थित में यह मांग भारत की दृष्टि से अनुचित भी नहीं थी.

गलियारे की मांग क्यों
दरअसल, मौजूदा बांग्लादेश के मैप को देखें तो आप पाएंगे कि यह मुल्क तीन तरफ से पूरी तरह भारत से घिरा हुआ है. वैसे ऐसा हो भी क्यों नहीं. दरअसल, मौजूदा बांग्लादेश का इतिहास 1971 और 1947 से नहीं बल्कि 1905 से शुरू होता है. 1905 में ब्रिटिश सरकार ने पहली बार किसी भारतीय प्रांत को धर्म के आधार पर दो भागों में बांट दिया था. उस वक्त बंगाल नाम से एक ही प्रांत हुआ करता था. फिर उसे धर्म पर आधार पर पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल में बांट दिया गया. यही पश्चिम बंगाल आज भी भारत का प्रमुख राज्य है. दूसरी तरफ पूर्वी बंगाल मुस्लिम बहुल होने की वजह से 1947 में बंटवारे के बाद पाकिस्तान में चला गया. फिर उसका नामकरण पूर्वी पाकिस्तान हुआ. 1971 की आजादी के बाद इसे बांग्लादेश नाम दिया गया.

कोलकाता से अगरतला
अब एक बार फिर बांग्लादेश की मैप पर नजर डालते हैं. अगर भारत ने बांग्लादेश के बीचोंबीच एक गलियारा बना लिया होता तो कोलकाता से अगरतला की मौजूदा 1600 किमी की दूरी घटकर केवल 500 किमी रह जाती. इसके साथ ही भारत को ‘चिकन नेक’ के अलावा कोलकाता से अगरतला के बीच एक और मार्ग मिल जाता. गलियारे के अलावा भारत के पास अन्य विकल्प थे. वह अपने चिकन नेक वाले इलाके को और चौड़ा कर सकता था. जिससे कि पूर्वोत्तर भारत में आवागमन की सुविधाएं और बेहतर हो जातीं. भारत उसी वक्त बांग्लादेश के साथ कोई दीर्घकालिक समझौता कर सकता था जिससे कि बंगाल की खाड़ी के साथ बिना रोकटोक भारत कोलकता से पूर्वोत्तर भारत में पहुंच जाता.

…तो नहीं बनता सिरदर्द
अगर ऐसा हुआ होता तो आज भारत के लिए बांग्लादेश सिरदर्द नहीं बनता. जिस तरह से यह मुल्क चीन और पाकिस्तान के प्रभाव में समा रहा है इससे यही लगता है कि भारत को 1971 में दरियादिली दिखाने की कोई जरूरत नहीं थी. वह बांग्लादेश को आजाद कराने के बदले उससे कोई भी कीमत वसूल सकता था. लेकिन, पीएम इंदिरा गांधी ने संभवतः यह सोचकर ऐसा नहीं किया कि नैतिकता भी कोई चीज होती है. दुनिया को यह न लगे कि भारत ने अपने स्वार्थ में बांग्लादेश को पाकिस्तान के अलग करवाया. लेकिन, बांग्लादेश की आवाम के एक बड़े तबके और वहां की कट्टरपंथी ताकतों को देखने के बाद दिवंगत इंदिरा गांधी की आत्मा भी कह रही होगी कि काश! हमने थोड़ी चालाकी की होती…

Tags: Bangladesh, Indira Gandhi, Sheikh hasina

FIRST PUBLISHED :

August 6, 2024, 13:48 IST

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