Last Updated:June 21, 2025, 11:29 IST
Israel-Iran War News: सोनिया गांधी ने इजरायल-ईरान युद्ध पर भारत के रुख की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने गाजा का मसला उठाते हुए कहा कि भारत को अब स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए.

सोनिया गांधी ने इजरायल-ईरान युद्ध पर भारत के रुख से असहमति जताई है. (फाइल फोटो/PTI)
हाइलाइट्स
सोनिया गांधी ने इजरायल-ईरान युद्ध भारत के रुख की आलोचना की हैकांग्रेस की दिग्गज नेता ने पश्चिम एशिया के हालात पर जताई गंभीर चिंतासोनिया गांधी ने कश्मीर मसले पर ईरान के साथ की भी दिलाई यादकांग्रेस की दिग्गज नेता और राज्यसभा सदस्य सोनिया गांधी ने इजरायल-ईरान युद्ध पर सरकार की नीतियों की आलोचन की है. उन्होंने पश्चिम एशिया में मौजूदा हालात पर गंभीर चिंता जताई है. सोनिया गांधी ने कहा कि आज नई दिल्ली का गाज़ा और ईरान पर चुप रहना हमारी नैतिक और कूटनीतिक परंपराओं से एक खतरनाक भटकाव है. यह केवल हमारी आवाज़ खोने का मामला नहीं है, बल्कि हमारे मूल्यों के आत्मसमर्पण का भी संकेत है. भारत को अब स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए. उसे सभी अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मंचों का उपयोग करके तनाव कम करने की कोशिश करनी चाहिए और शांति और नियमों के पालन को बढ़ावा देना चाहिए. बता दें कि इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने का हवाला देते हुए अटैक किया है. अब दोनों पक्षों की तरफ से मिसाइल अटैक हो रहे हैं.
अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ में लिखे लेख में कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने इजरायल-ईरान युद्ध पर भारत सरकार की चुप्पी पर गंभीर सवाल उठाए हैं. सोनिया गांधी ने लेख में लिखा, ’13 जून 2025 को दुनिया ने एक बार फिर एकतरफा सैन्यवाद के खतरनाक परिणामों का गवाह बना, जब इज़राइल ने ईरान पर एक गंभीर, चिंताजनक और अवैध हमला किया, जो उसकी संप्रभुता का उल्लंघन था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इन बमबारी और टारगेटेड मर्डर की निंदा की है, जो ईरानी क्षेत्र में हुईं और जो क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर गंभीर परिणामों की आशंका पैदा करती हैं. गाज़ा में हाल ही में इज़राइल द्वारा किए गए क्रूर और असमान हमलों की तरह ही यह अभियान भी नागरिकों की जान की कोई परवाह किए बिना और क्षेत्रीय स्थिरता को अनदेखा करते हुए अंजाम दिया गया. ऐसे काम केवल अस्थिरता को बढ़ावा देंगे और आगे संघर्ष का बीज बोएंगे.’
भारत की चुप्पी चिंताजनक, अभी भी देर नहीं हुई
सोनिया गांधी ने आगे कहा कि हालिया घटनाएं इस बात को दर्शाती हैं कि पश्चिमी शक्तियों से बिना शर्त समर्थन मिलने के कारण इज़राइल ने दंड से मुक्ति का माहौल बना लिया है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा किए गए हमलों की कड़ी निंदा की थी, लेकिन इसके बाद इज़राइल के रिएक्शन में 55,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और पूरे मोहल्ले, अस्पताल, स्कूल तक नष्ट हो चुके हैं. इसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. गाज़ा अकाल के कगार पर है. इसके बावजूद मोदी सरकार की चुप्पी शर्मनाक है. उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार ने भारत की लंबे समय से चली आ रही दो-राष्ट्र सिद्धांत पर आधारित नीति को लगभग त्याग दिया है, जो स्वतंत्र फिलिस्तीनी राष्ट्र के निर्माण और इज़राइल के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत करती थी. आज नई दिल्ली का गाज़ा और ईरान पर चुप रहना हमारी नैतिक और कूटनीतिक परंपराओं से एक खतरनाक विचलन है. यह केवल हमारी आवाज़ नहीं खोने का मामला नहीं है, बल्कि हमारे मूल्यों के आत्मसमर्पण का भी संकेत है. भारत को अब स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए. उसे सभी अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मंचों का उपयोग करके तनाव कम करने की कोशिश करनी चाहिए और शांति और नियमों के पालन को बढ़ावा देना चाहिए.
भारत-ईरान संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ईरान कश्मीर के मुद्दे पर भी भारत के पक्ष में खड़ा रहा है. 1994 में ईरान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत के खिलाफ प्रस्ताव को रोकने में मदद की थी. इस्लामी गणराज्य ईरान भारत के साथ अपने पूर्ववर्ती की तुलना में अधिक सहयोगी रहा है. पिछले कुछ दशकों में भारत और इज़राइल के बीच रणनीतिक संबंध भी बने हैं. यह भारत को एक ऐसी अनूठी स्थिति में लाता है, जहां वह क्षेत्रीय शांति और संवाद का सेतु बन सकता है. यह केवल सैद्धांतिक बात नहीं है. लाखों भारतीय नागरिक पश्चिम एशिया में काम कर रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र में शांति भारत के लिए एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित का विषय बन जाता है.
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
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