इनके खिलाफ केस SC में... दुख है... जस्टिस नागरत्ना ने क्यों कही यह बात?

1 month ago

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) शनिवार को राज्यपालों की भूमिका पर चिंतित नजर आईं. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि ‘सर्वोच्च न्यायालय में राज्यपालों के खिलाफ मामले भारत में राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति की एक दुखद कहानी है.’ बता दें कि शनिवार नेशनल नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU)-पीएसीटी कॉन्फ्रेंस में “राष्ट्र में घर: भारतीय महिलाओं की संवैधानिक कल्पनाएं” विषय पर बोल रही थीं.

अपने भाषण में जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा ‘आज के समय में, दुर्भाग्य से, भारत में कुछ राज्यपाल ऐसी भूमिका निभा रहे हैं जहां उन्हें नहीं निभाना चाहिए और जहां उन्हें होना चाहिए वहां निष्क्रिय हैं.’ उन्होंने भारतीय संविधान सभा की सदस्य दुर्गाबाई देशमुख के एक कथन के साथ ‘राज्यपाल की तटस्थता’ के विचार को स्पष्ट किया, जिन्होंने कहा था: ‘राज्यपाल से कुछ कार्य निष्पादित करने की अपेक्षा की जाती है. हम अपने संविधान में राज्यपाल को शामिल करना चाहते थे क्योंकि हमें लगा कि इससे सद्भाव का तत्व पैदा होगा और यह संस्था परस्पर विरोधी समूहों के बीच किसी प्रकार की समझ और सद्भाव लाएगी, अगर राज्यपाल वास्तव में अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत है और वह अच्छी तरह से काम करता है. यह केवल इसी उद्देश्य के लिए प्रस्तावित है. शासन का विचार राज्यपाल को पार्टी की राजनीति, गुटों से ऊपर रखना है और उसे पार्टी के मामलों के अधीन नहीं करना है.’

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जस्टिस नागरत्ना ने क्या-क्या कहा
अपने भाषण में जस्टिस नागरत्ना ने बंधुत्व के मूल्य पर भी बात की और कहा: ‘आज भी, बंधुत्व, भारत के संविधान की प्रस्तावना में वर्णित संघवाद, बंधुत्व, मौलिक अधिकार और सैद्धांतिक शासन जैसे चार आदर्शों में से सबसे कम समझा जाने वाला, सबसे कम चर्चा वाला और शायद सबसे कम व्यवहार में लाया जाने वाला आदर्श है.’

उन्होंने आगे कहा कहा कि संविधान बंधुत्व को व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता की पुष्टि करने के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण मानता है. पूर्व की प्राप्ति व्यक्तियों की नैतिक समानता को मान्यता देकर होती है, जिसे धार्मिक विश्वास, जाति, भाषा, संस्कृति, जातीयता, वर्ग और लिंग के हमारे सभी मतभेदों के बावजूद आपसी सम्मान के माध्यम से बनाए रखा जाता है. राष्ट्र की एकता का विचार बंधुत्व से प्राप्त होता है, जो और भी महत्वपूर्ण है. बंधुत्व, शायद, हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने की कुंजी भी हो सकता है.

जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा “यह इस संदर्भ में है कि मैं कहती हूं कि बंधुत्व के आदर्श को प्राप्त करने की खोज प्रत्येक नागरिक द्वारा अपने मौलिक कर्तव्यों की स्वीकृति के साथ शुरू होनी चाहिए, जो संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत उल्लिखित हैं.”

Tags: Supreme Court, Supreme court of india

FIRST PUBLISHED :

August 5, 2024, 09:31 IST

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