Last Updated:June 26, 2025, 08:12 IST
इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपी गई इमरजेंसी को इस 25 जून को 50 साल पूरे हो गए हैं. जब भी इसकी चर्चा होती है, जहन में कई किरदार उभर आते हैं. इमरजेंसी के दौर के तीन अहम किरदारों की कहानी बता रहे हैं सीनियर पत्रका...और पढ़ें

संजय गांधी और रुखसाना सुल्ताना: एक विवादित संबंध की कहानी.
हाइलाइट्स
रुखसाना सुल्ताना संजय गांधी की करीबी थीं.आपातकाल के दौरान मुस्लिम बस्तियों में काम किया.अंबिका सोनी ने रुखसाना की गतिविधियों की आलोचना की.संजय गांधी की मंडली में अधिकांश लोग वे थे, जिनका किसी न किसी तरह से राजनीति से नाता था, फिर चाहे वो बंसीलाल हों या विद्याचरण शुक्ल अथवा अंबिका सोनी. लेकिन उनकी सियासी मंडली में एक सोशलाइट रुखसाना सुल्ताना की मौजूदगी कई लोगों को चौंकाती भी थी तो मेनका से लेकर अंबिका तक… अनेक नेताओं की आंखों में खटकती भी थी.
रुखसाना एक अलग तरह की मुखर शख्सियत रहीं. आपातकाल के दौरान उन्होंने दिल्ली की मुस्लिम बस्तियों में संजय की प्रतिनिधि के रूप में काम किया था. युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर अंबिका सोनी अक्सर संजय के साथ मंच साझा करती थीं और उनकी तारीफ में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखती थीं. संजय के साथ अपनी नजदीकी जताने के लिए उधर रुखसाना भी कभी मौका नहीं छोड़तीं और कहतीं कि वह और संजय तो ‘आइसक्रीम बडीज’ हैं. अब इसका मतलब तो वही जानती थीं.
अभिनेत्री बेगम पारा की भतीजी और 1950 के दशक की एक पिन-अप गर्ल रहीं रुखसाना ने एक सिख से शादी की थी. लेकिन यह ज्यादा समय तक चली नहीं. कनॉट सर्कस पर उनका एक बुटीक था, जहां से वे कमीशन पर हीरों के महंगे गहने बेचती थीं. एक दिन प्रधानमंत्री के बेटे को अपनी बुटीक पर देखकर रुखसाना बेहद उत्साहित हो गईं. उन्होंने संजय से यह कहने में देरी नहीं की कि वे उनके नेतृत्व गुणों से अत्यंत प्रभावित हैं और अपना पूरा जीवन उनके ‘मिशन’ को समर्पित करना चाहती हैं.
मेनका, इंदिरा को रास नहीं
रुखसाना का इतनी तेजी से उभार मेनका, इंदिरा, अंबिका और कई अन्य लोगों को रास नहीं आ रहा था, लेकिन संजय उन्हें लगातार झुग्गियों और मुस्लिम बहुल जामा मस्जिद क्षेत्र में काम करने के लिए प्रेरित करते रहे. एक बार इंदिरा गांधी को यह कहते सुना गया था, ‘वह (रुखसाना) बड़ी बेढंगी सोच वाली औरत है.’ मेनका ने भी कहा था, रुखसाना बड़ी बकवास बातें करती है.
‘मैं अपनी असल पहचान क्यों छोड़ूं?’
जामा मस्जिद क्षेत्र में रुखसाना को परफ्यूम लगाए, भारी मेकअप किए, ढेर सारे गहने पहने, आंखों पर गुलाबी चश्मा लगाए, रेशमी साड़ी और लो-कट वाली चोली में देखकर पुरुष और महिलाएं दोनों बिल्कुल असहज हो जाते थे. लेकिन उनकी प्रतिक्रियाओं से रुखसाना को कोई फर्क नहीं पड़ता था. वे कहा करती थीं कि उनके गहने तो उनकी शख्सियत का हिस्सा हैं. वे पूछती, ‘मैं अपनी असल पहचान क्यों छोड़ूं?’. उन्हें जामा मस्जिद इलाके में अपनी नाक पर कोलोन से भीगा रूमाल रखे और अपने मशहूर बड़े-से ‘गो-गो’ चश्मे में घूमते हुए अक्सर देखा जाता था.
जब नसबंदी के प्रचार के लिए मिले पैसे
कहा जाता है कि एक बार केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने उन्हें 8,000 पुरुषों को नसबंदी के लिए ‘प्रेरित’ करने के एवज में कथित तौर पर 84 हजार रुपए की राशि दी थी. जून 1976 में जब वे दिल्ली के पुराने हिस्से में स्थित तुर्कमान गेट क्षेत्र में कई दुकानों को ध्वस्त किए जाने के अभियान की निगरानी कर रही थीं, तो उसी समय अनेक लोग विरोध पर उतर आए थे. भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा. अंतत: गोलीबारी की गई, जिसमें कई लोग मारे गए थे.
अंबिका सोनी ने की रुखसाना की आलोचना
पत्रकार एवं लेखिका प्रोमिला कल्हण को दिए एक इंटरव्यू में अंबिका सोनी ने रुखसाना की गतिविधियों की आलोचना करते हुए कहा था कि वो (अंबिका) इंदिरा के आवास पर रुखसाना की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं कर सकतीं. बकौल अंबिका, उन्होंने इंदिरा को रुखसाना व संजय की नजदीकियों को लेकर आगाह करने की कोशिश की थी, लेकिन इंदिरा ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. जब अंबिका ने दोबारा से यही प्रयास किए तो इंदिरा ने उनसे (अंबिका) ही कह दिया कि वे स्वयं इस बारे में संजय से बात करें. लेकिन संजय ने अंबिका की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा था: “युवा कांग्रेस को रुखसाना की जरूरत है, रुखसाना को युवा कांग्रेस की नहीं..’ (प्रोमिला कल्हण, ब्लैक वेडनेसडे, स्टर्लिंग पब्लिशर्स, नई दिल्ली, 1977).
मगर थी सभी की फिक्र!
मेनका की नजर में संजय सदैव एक फिक्रमंद और देखभाल करने वाले पति रहे. मेनका की तबीयत थोड़ी भी ठीक नहीं होती तो संजय संसद छोड़कर उनके साथ रहते. असामयिक मृत्यु से तीन महीने पहले जब उनके बेटे वरुण फिरोज का जन्म होना था, तब मेनका को लेकर संजय एम्स गए और बच्चे के जन्म के दौरान पूरे समय उनके साथ ही रहे. बकौल मेनका, ‘बाद में एम्स के डॉक्टरों ने मुझे बताया था कि वे ऐसे पहले पुरुष थे, जो प्रसव के समय अपनी पत्नी के साथ डिलीवरी रूम में थे.’ (मेनका गांधी, ‘संजय गांधी’, वकील, फेफर्स एंड सायमन्स लिमिटेड, मुंबई, 1980).
स्तंभकार कुमकुम चड्ढा, जिन्होंने आपातकाल के दौरान और उसके बाद संजय गांधी को कवर किया था, याद करती हैं कि एक बार संजय ने न्यायपालिका की आलोचना करते हुए उन्हें एक विवादास्पद इंटरव्यू दिया. अगली सुबह उन्होंने कुमकुम को यह पूछने के लिए फोन किया कि कहीं उन्हें कोई परेशानी तो नहीं हो रही या उन्हें किसी कानूनी मदद की दरकार तो नहीं है? संजय ने तब एक वकील आर.के. आनंद (जो बाद में सांसद बने) को उनके घर यह बताने के लिए भेजा कि जरूरत पड़ने पर वे (संजय) सिर्फ एक फोन कॉल की दूरी पर हैं.
रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. 'सोनिया: ए बायोग्राफी', 'बैलट: टेन एपिस...और पढ़ें
रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. 'सोनिया: ए बायोग्राफी', 'बैलट: टेन एपिस...
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