Christmas 2025: दुनियाभर में क्रिसमस को लेकर लोग उत्साहित रहते हैं, 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है. क्रिसमस की कई कहानियां फेमस हैं, ऐसी ही एक कहानी से हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, ये बात है साल 1914 की जब क्रिसमस के दिन पहले वर्ल्ड वॉर के बीच अचानक सैनिकों ने अपनी बंदूकें रख दीं और अपनी खाइयों से बाहर निकल आए और फिर फुटबॉल खेलने लगे, ये देखकर लोग आश्चर्य में पड़ गए, उन्होंने कुछ ही घंटों में जंग के बीच इंसानियत का रास्ता बनाया. जानिए आखिर उस दिन ऐसा क्या हुआ था?
कब शुरू हुई थी जंग?
पहला वर्ल्ड वॉर 1914 की गर्मियों में शुरू हुआ था यूरोप टूट गया था क्योंकि देश कॉन्फिडेंस और कुछ हद तक गलत उम्मीद के साथ लड़ाई में कूद पड़े थे, कई सैनिकों को लगा कि जंग छोटी होगी, उन्होंने कहा था कि क्रिसमस तक घर वापस आ जाएंगे, इसके बजाय, दिसंबर तक जंग एक खतरनाक रुकावट में बदल गई थी दोनों तरफ के सैनिक बेल्जियम और उत्तरी फ्रांस में कीचड़ भरी खाइयों में फंसे हुए थे. वहां जिंदगी बर्दाश्त से बाहर थी, कड़ाके की ठंड, लगातार गोलाबारी, बीमारी, भूख और डर रोज के साथी बन गए थे, जवान लड़के, जिनमें से कई मुश्किल से स्कूल से निकले थे, हर घंटे मौत का सामना कर रहे थे.
गानों में दिया गया जवाब
क्रिसमस पास आ रहा था, लेकिन खुशी नामुमकिन लग रही थी, लेकिन भी क्रिसमस वाले दिन ऐसा कुछ ही हुआ कि सब अचानक बदल गया. 24 दिसंबर की रात को ब्रिटिश सैनिकों ने जर्मन खाइयों से गाने की आवाज सुनी. पहले तो उन्हें किसी चाल का शक हुआ लेकिन धुन साफ थी, जर्मन क्रिसमस कैरल गा रहे थे “स्टिल नच्ट”,जिसका इंग्लिश में मतलब है साइलेंट नाइट, ठंडी हवा में धीरे-धीरे बह रहा था. ब्रिटिश सैनिकों ने अपने गानों से जवाब दिया जल्द ही, गोलियों की जगह हंसी ने ले ली “मेरी क्रिसमस” के नारे नो मैन्स लैंड से गुजर रहे थे.
एक-दूसरे को दिए तोहफे
बिना किसी लॉजिक के, गोलियों की तेज आवाजें शांत हो गईं, जैसे ही क्रिसमस के दिन सुबह हुई, सैनिक सावधानी से अपनी खाइयों से बाहर निकले, हाथ ऊपर उठे, कोई हथियार नहीं, कोई ऑर्डर नहीं, किसी ने गोली नहीं चलाई, ब्रिटिश और जर्मन सैनिक बीच में मिले, उन्होंने हाथ मिलाया, वे अजीब तरह से मुस्कुराए उन्होंने सिगरेट, चॉकलेट, बटन, बैज और घर से भेजे गए छोटे-मोटे तोहफे भी एक दूसरे को दिए. अपनों की तस्वीरें दिखाई गईं, कहांनिया शेयर की गईं, पहली बार, सैनिकों ने उन आदमियों के चेहरे देखे जिनसे उन्हें नफरत करने के लिए कहा गया था.
सैनिकों ने खेला फुटबॉल
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद सैनिकों ने फुटबॉल खेलना शुरू किया, कुछ जगहों पर, यह एक असली लेदर फुटबॉल था, दूसरी जगहों पर, यह फटे-पुराने कपड़ों का बंडल था जो एक साथ बंधा हुआ था, खेल में कोई रेफरी नहीं था और न ही कोई नियम था. सैनिकों ने कैप या कोट से गोल मार्क किए थे. ब्रिटिश सैनिकों ने जर्मन सैनिकों के साथ बॉल को किक किया. कुछ लोगों का दावा है कि जर्मनों ने एक मैच 3-2 से जीता था, दूसरे कहते हैं कि नतीजा मायने नहीं रखता, क्योंकि असली जीत तो बस खेलना था. हालांकि जब ये बात अधिकारियों को पता चली तो उन्हें बहुत गुस्सा आया था.

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