कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के अंदर मौजूद बांकड़ा मस्जिद एक बार फिर राजनीतिक और सुरक्षा बहस के केंद्र में है. कोलकाता से बाहर के लोग शायद इस बात से अनजान हों कि एयरपोर्ट के ऑपरेशनल एरिया के बिल्कुल पास, सेकेंडरी रनवे से लगभग 300 मीटर की दूरी पर यह मस्जिद स्थित है. इसे लेकर वर्षों से सुरक्षा मानकों और विमान संचालन पर इसके संभावित प्रभाव को लेकर विवाद उठता रहा है. अब एक बार फिर यह मुद्दा तब सुर्खियों में आया, जब पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य के जवाब पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) का जवाब सामने आया है.
मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि मस्जिद सेकेंडरी रनवे के बेहद करीब स्थित है और यह ‘सुरक्षित विमान संचालन में बाधा डालती है’ और ‘आपात स्थितियों में प्राथमिक रनवे के उपलब्ध न होने पर रनवे के उपयोग पर प्रभाव डालती है.’ बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने उड्डयन मंत्रालय के इस जवाब को शेयर करते हुए कहा कि ‘यात्रियों की सुरक्षा तुष्टीकरण की राजनीति के नाम पर खतरे में नहीं डाली जा सकती.’
मस्जिद को लेकर कैसे शुरू हुआ विवाद?
यह पहला मौका नहीं है, जब यह मस्जिद विवाद में आई है. कुछ महीने पहले ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने इस मस्जिद को लेकर कोलकाता एयरपोर्ट की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था कि एयरपोर्ट की दीवारें सील नहीं हैं, लोग खुले क्षेत्र में नमाज अदा कर रहे हैं और मस्जिद के कारण एयरपोर्ट विस्तार की योजनाएं वर्षों से अटकी हुई हैं.
मस्जिद की मौजूदगी को लेकर उठ रहे सवालों के केंद्र में दो बातें हैं… यात्रियों की सुरक्षा और एयरपोर्ट की संचालन क्षमता. एयरपोर्ट एक हाई-सिक्योरिटी जोन है और इसके भीतर किसी भी नियमित सार्वजनिक गतिविधि या धार्मिक स्थल की मौजूदगी को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है. ऐसे में यह बड़ा प्रश्न फिर उभर रहा है कि आखिर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के भीतर यह मस्जिद पहुंची कैसे?
कब से बनी है यह मस्जिद?
दरअसल, इस मस्जिद का इतिहास एयरपोर्ट से कहीं पुराना है. स्थानीय लोगों और दस्तावेजों के अनुसार बांकड़ा मस्जिद का निर्माण 19वीं सदी के अंत, यानी 1890 के दशक में हुआ था. तब यह पूरा इलाका एक गांव था और वहीं यह मस्जिद स्थित थी. बाद में 1924 में ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र के पास एक एयरोड्रम विकसित किया. उस समय भी मस्जिद के आसपास आबादी मौजूद थी.
1950 और 1960 के दशक में जब हवाई यातायात बढ़ा, तो एयरपोर्ट का विस्तार पश्चिम दिशा में किया गया और सेकेंडरी रनवे का निर्माण हुआ. 1962 में राज्य सरकार ने इस इलाके की जमीन अधिग्रहित कर एयरपोर्ट अथॉरिटी को सौंप दी. उस समय गांव के बड़े हिस्से को खाली करा दिया गया, लेकिन मस्जिद ज्यों की त्यों बनी रही. ऐसा माना जाता है कि जमीन हस्तांतरण के समय मस्जिद को न छेड़ने की कुछ सहमति बनी थी, जिसके कारण यह संरचना वहीं बनी रही.
क्या पहले भी उठा मस्जिद हटाने का मुद्दा?
मस्जिद को हटाने के प्रयास अनेक बार किए गए, लेकिन हर प्रयास विफल रहा. 2003 में तत्कालीन केंद्रीय उड्डयन मंत्री शहनवाज हुसैन और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्जी के बीच बैठक हुई थी. उस समय भी मस्जिद को दूसरी जगह ले जाने की बजाय रनवे को थोड़ा मोड़ने पर सहमति बनी थी. दैनिक उपयोग के हिसाब से मस्जिद में रोज 50-60 लोग ही नमाज अदा करते हैं, जबकि शुक्रवार और रमजान में यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है.
2019 में AAI ने मस्जिद तक पहुंचने के लिए जेसोर रोड से एक अंडरग्राउंड टनल बनाने का प्रस्ताव दिया था, ताकि ऊपर की जमीन का उपयोग टैक्सी ट्रैक के लिए किया जा सके, पर सुरक्षा संबंधित आपत्तियों के चलते यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया. वर्ष 2023 में AAI ने एक बस सेवा शुरू की, जिसके जरिये लोग 225 मीटर लंबे रास्ते से होकर मस्जिद पहुंचते हैं. यह रास्ता टैक्सीवे से होकर गुजरता है, जहां से विमान रनवे तक पहुंचते हैं. इसलिए यह स्थिति संचालन के लिहाज से और भी जटिल हो जाती है.
मुसलमानों के धार्मिक नेताओं से कैसी अपील?
कहने की जरूरत नहीं कि यह मस्जिद ऐतिहासिक है, लेकिन जब बात लाखों यात्रियों की सुरक्षा, एयरपोर्ट संचालन की दक्षता और भविष्य के विस्तार योजनाओं पर आती है, तो इसका स्थान कई चुनौतियां पैदा करता है. मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भी इस मुद्दे पर लिखा है कि ‘मुस्लिम समुदाय के नेताओं को आगे आकर मस्जिद को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने का समाधान ढूँढना चाहिए, इससे समाज की सकारात्मक छवि बनेगी.’
कुल मिलाकर, यह विवाद किसी राजनीतिक बयानों से नहीं, बल्कि 1960 के दशक में लिए गए भूमि-अधिग्रहण निर्णय और उसके बाद वर्षों तक बने रहे गतिरोध का परिणाम है. आज वही 130 साल पुरानी मस्जिद एक अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के बिल्कुल पास स्थित है, जहाँ सुरक्षा और संचालन से जुड़ी जटिलताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं.

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