कांग्रेस, जदयू, भाजपा... सबको आजमाया बारी-बारी, शहाबुद्दीन को निर्दलीय दी मात

1 week ago

Last Updated:April 09, 2025, 15:03 IST

Bihar Politics: सीवान की राजनीति में लंबे समय तक राजद के नेता रहे दिवंगत शहाबुद्दीन का दबदबा था, लेकिन 2009 में ओमप्रकाश यादव ने निर्दलीय जीत हासिल कर राजनीति बदल दी. 2019 में जेडीयू की कविता सिंह सांसद बनीं. 2...और पढ़ें

कांग्रेस, जदयू, भाजपा... सबको आजमाया बारी-बारी, शहाबुद्दीन को निर्दलीय दी मात

सीवान के पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव.

हाइलाइट्स

2009 में ओमप्रकाश यादव ने शहाबुद्दीन को हराया.2019 में जेडीयू की कविता सिंह सांसद बनीं.2020 में ओमप्रकाश विधानसभा चुनाव हार गए.

Bihar Politics: बिहार के सीवान जिले की गिनती राज्य के एक सबसे समृद्ध जिलों में होती है. यहां की राजनीति में लंबे समय से पावर और पैसे का गेम चला. इस कारण इलाके में क्राइम का ग्राफ भी हमेशा ऊपर ही रहा. यहां के संसदीय इतिहास की बात करें तो यह 1957 से लोकसभा सीट है. हालांकि एक जिले के रूप में इसकी पहचान 1972 में मिली. उससे पहले यह सारण जिले का हिस्सा था.

इस जिले की करीब सात दशक की राजनीति पर नजर डालें तो यहां से 11 नेताओं को जनता ने अपना सांसद चुना. लेकिन, सबसे चर्चित व्यक्ति शहाबुद्दीन रहे. 1996 से 2004 के बीच चार यहां से सांसद चुने गए. समाज के एक वर्ग में उनकी छवि एक दबंग और बाहुबली नेता की रही है. शहाबुद्दीन राजद के प्रभावी नेता थे और सीवान ही नहीं आसपास के जिलों में भी उनका प्रभाव था.

सीवान की राजनीति ने बदली करवट
फिर 2009 का चुनाव आया और सीवान की राजनीति ने करवट बदली. शहाबुद्दीन को सजा हो जाने की वजह से वह चुनाव नहीं लड़ पाए. उनकी जगह राजद ने उनकी पत्नी हीना शाहाब को मैदान में उतारा. उस चुनाव में उनके सामने मैदान में निर्दलीय उम्मीदवार ओम प्रकाश यादव थे. उन्होंने शानदार जीत हासिल की. उनको कुल 2 लाख 36 हजार वोट मिले. जबकि हीना शाहाब को 1.72 लाख वोट मिले.

ओमप्रकाश यादव की इस जीत ने जिले की पूरी राजनीति बदल दी. 2009 में सीवान में भाजपा और जेडीयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था. यह सीट जेडीयू के खाते की है. जेडीयू से वृषण पटेल मैदान में थे और उनको मात्र 44 हजार वोट मिले. जनता ने निर्दलीय उम्मीदवर ओमप्रकाश यादव पर प्यार बरसाया.

शहाबुद्दीन की पत्नी के खिलाफ एक निर्दलीय नेता की जीत ने सीवान को पूरे देश में चर्चा के केंद्र में ला दिया. इसके बाद ओमप्रकाश यादव भाजपा में शामिल हो गए. भाजपा में शामिल होने से पहले वह कांग्रेस पार्टी और फिर जेडीयू में रह चुके थे. 2009 में वह जेडीयू से टिकट चाहते थे लेकिन टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय मैदान में उतरने का फैसला किया था.

2024 में हीना शाहेब ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था.

2014 में फिर बदली जिले की राजनीति
वर्ष 2014 में चुनाव में बिहार की राजनीति फिर बदली. भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार के रूप में पेश करने की वजह से जेडीयू के साथ उसका गठबंधन टूट गया. फिर भाजपा ने सीवान से ओमप्रकाश यादव को अपना उम्मीदवार बनाया. इस बार पूरे देश में मोदी लहर थी. ओमप्रकाश यादव भी बड़े अंतर जीत हासिल करने में कामयाब रहे.

लेकिन, 2019 आते-आते चीजें एक बार फिर बदली और सीवान की राजनीति पर इसका फिर से सीधा असर पड़ा. 2019 के चुनाव तक भाजपा और जेडीयू के बीच फिर से गठबंधन हो गया और सीवान सीट जेडीयू के खाते में चली गई. इस कारण ओमप्रकाश यादव को लोकसभा का टिकट नहीं मिला. दो बार सीवान से सांसद चुने जाने के बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में घर बैठना पड़ा. 2019 में सीवान से जेडीयू की कविता सिंह सांसद चुनी गईं. फिर 2024 में भी यह सीट जेडीयू के पास थी और विजय लक्ष्मी कुशवाहा यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं. दूसरी और 2009 से 2024 तक यहां से शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शाहाब चुनाव मैदान में उतरती रहीं लेकिन उनको जीत नहीं मिली.

विधानसभा में समायोजित करने की कोशिश
भाजपा ने ओमप्रकाश यादव को विधानसभा में समायोजित करने की कोशिश की. वर्ष 2020 में पार्टी ने ओमप्रकाश यादव को सीवान विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह राजद के वरिष्ठ नेता अवध बिहारी चौधरी से हार गए. उनको करीब दो हजार वोटों से मात मिली. उसके बाद से ओमप्रकाश यादव कोई जनप्रतिनिधि नहीं हैं.

स्थानीय लोगों का एक बड़ा यह मानता है कि जिले की राजनीति को शहाबुद्दीन के प्रभाव से मुक्त कराने में ओमप्रकाश यादव की अहम भूमिका थी. लेकिन उनेके लिए स्थानीय स्तर पर गणित सुलझ नहीं रहा है. अब देखना है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उनको सीवान से टिकट देती है या नहीं. हालांकि उनको टिकट का प्रबल दावेदार माना जा रहा है.

First Published :

April 09, 2025, 15:03 IST

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