Last Updated:July 04, 2025, 21:44 IST
Mahabharata Katha: क्या गांधारी महाभारत की सबसे दुखियारी महिला थीं. शादी से लेकर जीवन तक हर दौर में उनके हिस्से में केवल दुख और उदासी ही आया. जानिए कैसे

महाभारत में आमतौर पर हर पात्र की बात की जाती है लेकिन गांधारी की बहुत ज्यादा चर्चा नहीं होती. वह महाभारत की सबसे दुखी स्त्री थीं. जिंदगीभर अपने भाग्य से ही लड़ती रहीं. पुत्रों की दुष्टताओं से लेकर पति की दुर्बलता लेकर घुलती रहीं. रही सही कसर भाई शकुनि ने पूरी कर दी. वह बेटों से लेकर पति तक पर गुस्सा जरूर करती रहीं लेकिन कुछ कर नहीं पाईं. वह ऐसी महिला भी थीं कि मन की बात कभी किसी से नहीं कह पाईं.
जबकि गांधारी न्यायप्रिय और गलत और सही का आंकलन करने वाली महिला थीं. उनकी जिंदगी लगातार एक के बाद एक दुख आते रहे. पहले तो उनका विवाह ही उनके लिए बहुत बड़ा धक्का था. उन्हें विवाह से पहले तक अंदाज ही नहीं था कि उनकी शादी एक नेत्रहीन शख्स से कराई जा रही है. गांधार की इस राजकुमारी ने जब ये जाना तो वह स्तब्ध रह गईं. कुछ करने की स्थिति में ही नहीं थीं.
गांधारी का विवाह हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र से हुआ, जो जन्म से अंधे थे. यह विवाह उनके पिता गांधारी के राजा सुबल और हस्तिनापुर के बीच एक राजनीतिक गठजोड़ के रूप में हुआ. कुछ विद्वानों का मानना है कि गांधारी इस विवाह से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थीं, क्योंकि धृतराष्ट्र की अंधता और हस्तिनापुर की जटिल राजनीति उनके लिए चुनौतीपूर्ण थी.
शादी होते ही जीवन में लगा पहला झटका
शादी के बाद जब उन्हें मालूम हुआ कि पति नेत्रहीन है, तो वह सकते में आ गईं. उसी समय उन्होंने क्षोभ में ये फैसला लिया कि ताजिंदगी अब अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर रखेंगी. हालांकि ये भी कहा गया कि उन्होंने पति के प्रति निष्ठा और समर्पण के तौर पर लिया. लेकिन कई जगह ये कहा गया कि पट्टी बांधकर उन्होंने जिंदगीभर अपने साथ अन्याय का प्रदर्शऩ किया.
पति के अस्थिर चित्त और स्वाभाव ने दुख और बढ़ाया
वह दुखी थीं. जिंदगी कठिन. आंखों पर पट्टी बांधने से उनकी स्वतंत्रता और जीवन का आनंद सीमित हो गया, जो उनके दुख का एक बड़ा कारण बना. महाभारत के आदिपर्व अध्याय 110 में इसका उल्लेख आया है. शायद गांधारी नियति की इस विडंबना को भी स्वीकार कर लेतीं लेकिन पति के अस्थिर चित्त ने उनके दुख को बढ़ाया. धृतराष्ट्र में नीचता भी थी और उदारता भी. जबरदस्त पुत्रमोह भी.
तब धृतराष्ट्र के संबंध दासी से बन गए
जब गांधारी गर्भवती थीं, तो धृतराष्ट्र पत्नी की ही एक दासी के प्रति आशक्त हो गए. उससे उनके दैहिक संबंध बने. दासी गर्भवती हुई और उसको युयुत्सु नाम का पुत्र हुआ. गांधारी को जब ये मालूम हुआ तो वह खून का घूंट पीकर रह गई.
गांधारी का जीवन उनके पति धृतराष्ट्र की कमजोरियों, उनके पुत्रों के अनैतिक आचरण, और कुरुक्षेत्र युद्ध में उनकी मृत्यु के कारण दुखों से भरा रहा. (news18)
धृतराष्ट्र शक्तिशाली राजा थे लेकिन उनके पुत्रमोह और कमजोर निर्णय क्षमता ने गांधारी के जीवन में दुख को बढ़ाया. धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन को लेकर इतने पुत्रमोह में थे कि उसकी भयंकर गलतियों को बार-बार नजरअंदाज करते थे. ये बात उनके और गांधारी के बीच लगातार मतभेद का कारण बनता था.
दुर्योधन और धृतराष्ट्र को कभी समझ में नहीं आई उनकी सलाह
गांधारी ने कई बार धृतराष्ट्र को दुर्योधन के गलत कामों को रोकने की सलाह दी. जैसे पांडवों के साथ अन्याय और द्रौपदी का अपमान लेकिन धृतराष्ट्र ने उनकी बात नहीं मानी. जब दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाने की साजिश रची, तब गांधारी ने इसका विरोध किया, लेकिन धृतराष्ट्र ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. महाभारत का आदि पर्व (लाक्षागृह पर्व) गांधारी के विरोध का उल्लेख करता है.
गांधारी के सौ पुत्रों को कौरव कहा जाता था. दुर्योधन और दु:शासन अपने अनैतिक और अहंकारी व्यवहार के लिए जाने जाते हैं. गांधारी ने अपने पुत्रों को धर्म और नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कोशिश की, लेकिन दुर्योधन की महत्वाकांक्षा और पांडवों के प्रति उसकी ईर्ष्या ने उसे गलत रास्ते पर ले गई.
महाभारत के युद्ध में सभी 100 पुत्रों के निधन ने गांधारी को दुख में पूरी तरह डूबो दिया. हालांकि बाद के जीवन में भी वह खालीपन और दुख के साथ जीती रहीं. (news18)
गांधारी को मालूम था कि युद्ध होकर ही रहेगा
सभा पर्व में जब दुर्योधन और दु:शासन ने द्रौपदी का अपमान किया तो गांधारी ने इसकी कड़ी निंदा की. धृतराष्ट्र को दुर्योधन को दंडित करने की सलाह दी लेकिन जब धृतराष्ट्र ने कुछ नहीं किया तो गांधारी और दुखी ही हुईं. ये दुख उसकी आशंका को लगातार बढ़ाते थे कि भविष्य में इसका परिणाम बहुत गंभीर होगा. वह आगाह भी करती थी लेकिन कोई नहीं सुनने वाला था.
सभी 100 पुत्र महाभारत के युद्ध में मारे गए
गांधारी को यह पहले से ही आभास था कि उनके पुत्रों का गलत आचरण युद्ध कराकर ही मानेगा. युद्ध में उसके सभी पुत्रों की मृत्यु ने उसे पूरी तरह तोड़ दिया. वह जार जार रो रही थी. दुखी थी. अंदर से टूट चुकी थी. ये उसके जीवन का सबसे दुखद अध्याय था. पुत्रों के मारे जाने से वह गहरे शोक में डूब गई. जब गांधारी ने युधिष्ठिर को शाप देने की कोशिश की, तो उसकी पीड़ा और क्रोध स्पष्ट झलकता है. हालांकि तब उन्होंने भगवान कृष्ण को युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराया और शाप दिया.
भाई शकुनि की साजिशों को दुख को और बढ़ाया
गांधारी को अगर पति और बेटों ने जिंदगीभर दुखी रखा तो भाई शकुनि ने भी कहीं का नहीं छोड़ा. महाभारत के आखिरी दिनों में गांधारी इस बुरी तरह अपने भाई पर क्रोधित हो उठीं कि उसे भयंकर श्राप दिया. गांधारी ने शकुनि को श्राप दिया कि जिस तरह उसने हस्तिनापुर में द्वेष और क्लेश फैलाया, उसका फल उसको मिलेगा. इस युद्ध में वह तो मारा ही जाएगा बल्कि उसके गांधार में भी कभी शांति नहीं रहेगी.
गांधारी एक धर्मपरायण और बुद्धिमान महिला थीं, जो हमेशा धर्म के मार्ग पर चलने की कोशिश करती थीं लेकिन पति और बेटों की गलतियां उसे ताजिंदगी दुखी करती रहीं. जब सारे बेटे युद्ध में मारे गए तो जिंदगी और दुखमय हो गई.
कहा जा सकता है कि महाभारत में अगर कोई स्त्री वाकई सबसे दुखी थी और उसके हिस्से में हमेशा दुख ही आए तो वह गांधारी थीं. ये भी भाग्य का खेल देखिए कि पुत्रों के निधन के बाद युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र और गांधारी को अपने साथ ही रखा. पर्याप्त आदर दिया. लेकिन वो अपने जीवन में खालीपन और दुख महसूस करते रहे. जब वो अपने जीवन के आखिरी दिनों को बिताने के लिए वन गए और वहां आश्रम बनाकर रहने लगे तो वन में लगी आग ने उन्हें दर्दनाक तरीके से लील लिया.
संजय श्रीवास्तवडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...
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