क्या वो 1946 के प्रांतीय चुनाव थे, जिसमें जिन्ना को बंटवारे के लिए मिला समर्थन

1 week ago

Last Updated:April 09, 2025, 15:59 IST

The election that created Pakistan: 1946 के प्रांतीय चुनाव के परिणामों ने मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग पार्टी की पृथक मुस्लिम राष्ट्र की मांग को तेज कर दिया. जिन्ना की मुस्लिम लीग को जोरदार समर्थन मिला, जि...और पढ़ें

क्या वो 1946 के प्रांतीय चुनाव थे, जिसमें जिन्ना को बंटवारे के लिए मिला समर्थन

मुस्लिम लीग का मानना था कि हिंदू बहुसंख्यक प्रभाव में मुस्लिम समुदाय की पहचान सुरक्षित नहीं रहेगी.

हाइलाइट्स

1946 के चुनावों में मुस्लिम लीग को जोरदार समर्थन मिलापंजाब प्रांत में मुस्लिम लीग ने सबसे ज्यादा 73 सीटें जीतींबंगाल और सिंध में भी मुस्लिम लीग का अच्छा प्रदर्शन

The election that created Pakistan: दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद जब पूरी दुनिया आर्थिक दुष्परिणाम के दौर से गुजर रही थी तब भारत के भीतर स्वतंत्रता की मांग तेज हो गई थी. देश में उस समय राजनीतिक चेतना अपने उच्चतम स्तर पर थी. इसके साथ ही ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद से माहौल बदलने लगा था. इसी वजह से ब्रिटिश सरकार को भारत को आजाद देने के लिए ठोस पहल करने की जरूरत पड़ी. 

साल 1945 में भारत में ब्रिटिश सरकार ने राष्ट्रीय और विधान सभाओं के लिए चुनाव कराने की घोषणा की. पंजाब में चुनाव फरवरी 1946 में होने थे. कांग्रेस का लक्ष्य ज्यादातर प्रांतों में बहुमत हासिल करना था ताकि वह एकीकृत भारत की सरकार बनाने का दावा पेश कर सके. वहीं, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (AIML) और उसके सबसे बड़े नेता  मोहम्मद अली जिन्ना का लक्ष्य मुस्लिम बहुल प्रांतों में चुनाव जीतना था ताकि वह न केवल सबसे बड़ी मुस्लिम पार्टी होने का दावा कर सके, बल्कि उन क्षेत्रों से अलग मुस्लिम राष्ट्र-राज्य बनाने की अपनी मांग पर भी जोर दे सके जो मुस्लिम बहुल थे. अविभाजित भारत में बंगाल और पंजाब में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी थी. 

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पंजाब में थी 57 फीसदी मुस्लिम आबादी
पंजाब में स्थिति बहुत ही पेचीदा थी. पंजाब की 57 प्रतिशत आबादी मुस्लिम होने के बावजूद, मुस्लिम लीग ने प्रांत में पिछले चुनावों में बुरी तरह हार का सामना किया था. पंजाब में एक और हार से जिन्ना और उनकी पार्टी के दावों और मांगों को झटका लगना तय था. कांग्रेस ने इसे अच्छी तरह समझा और पंजाब में मुस्लिम लीग को हराने के लिए पूरी ताकत लगा दी. पंजाब प्रांत में यूनियनिस्ट पार्टी का वर्चस्व था. यह एक बड़ा संगठन था जिसका नेतृत्व जमींदार वर्ग और प्रभावशाली पीरों (मुस्लिम आध्यात्मिक नेताओं) से जुड़े मुसलमानों द्वारा किया जाता था. इस पार्टी में कुछ हिंदू और सिख नेता भी थे. यूनियनिस्ट पार्टी का गठन कृषि समाज के हितों की रक्षा करना और प्रांत में बढ़ती सांप्रदायिक भावनाओं को कम करना था.

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लीग को हराने के लिए कांग्रेस ने झोंकी ताकत
पंजाब प्रांत में 1937 में हुए पिछले प्रमुख चुनाव में यूनियनिस्ट पार्टी ने कुल 175 में से 95 सीटें जीती थीं. कांग्रेस को 18 सीटें मिलीं थीं जबकि मुस्लिम लीग को सिर्फ एक सीट मिली थी. पंजाब में मुस्लिम लीग को एक और करारी शिकस्त देने के लिए कांग्रेस पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार सरदार पटेल और पार्टी के प्रमुख मुस्लिम नेता मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद ने तुरंत उसके खिलाफ माहौल तैयार करना शुरू कर दिया. जिन्ना ने पंजाब के मुस्लिम लीग अध्यक्ष खान ऑफ ममदोट के साथ मिलकर एक रणनीति तैयार की, ताकि कांग्रेस द्वारा यूनियनिस्टों, मजलिस अहरार, खाकसार, जमात-उद-दावा और सिख राष्ट्रवादी संगठन अकाली दल की मदद से किए जा रहे हंगामे का मुकाबला किया जा सके.

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मुस्लिम लीग ने जीतीं सबसे ज्यादा सीटें
मतदान के दिन मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक थी. यूनियनिस्ट पार्टी को अधिकांश सीटें जीतने की उम्मीद थी, उसके बाद कांग्रेस का स्थान था. लेकिन नतीजों ने कांग्रेस और यूनियनिस्टों को चौंका दिया. मुस्लिम लीग 175 में से 73 सीटें जीतने में कामयाब रही. यूनियनिस्ट केवल 20 सीटें ही जीत पाए. कांग्रेस को 51 और सिख अकाली दल को 22 सीटें मिलीं. अहरार और खाकसार एक भी सीट जीतने में विफल रहे. मुस्लिम लीग को कुल मुस्लिम वोटों का सबसे बड़ा हिस्सा (65 प्रतिशत) मिला. मुस्लिम वोटों का केवल 19 प्रतिशत अहरार और खाकसार को मिला. हालांकि कांग्रेस, यूनियनिस्ट और अकाली दल पंजाब में एक अस्थिर और अल्पकालिक गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब रहे, लेकिन मुस्लिम लीग भारत की सबसे बड़ी मुस्लिम पार्टी के रूप में खुद को स्थापित करने में कामयाब रही.

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बंगाल-सिंध ने किया बंटवारे का काम आसान
मुस्लिम लीग ने दो अन्य मुस्लिम बहुल प्रांतों में भी अच्छा प्रदर्शन किया. मुस्लिम लीग ने बंगाल में 230 में से 113 सीटें और सिंध में 60 में से 27 सीटें जीतीं. इन परिणामों ने जिन्ना की मुस्लिम लीग पार्टी की पृथक मुस्लिम राष्ट्र की मांग को तेज कर दिया. 1947 की शुरुआत में एक अन्य मुस्लिम बहुल क्षेत्र नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस में प्रांतीय चुनाव जीतने के बाद मुस्लिम लीग और जिन्ना आखिरकार शेष भारत से पाकिस्तान को अलग करने में सफल रहे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत का विभाजन नहीं चाहती थी, लेकिन आल इंडिया मुस्लिम लीग का मानना था कि हिंदू बहुसंख्यक प्रभाव में उनका (मुस्लिम समुदाय का) वजूद, संस्कृति और पहचान सुरक्षित नहीं रहेगी. इसलिए मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र ‘पाकिस्तान’ का निर्माण होना चाहिए. 

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

April 09, 2025, 15:54 IST

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क्या वो 1946 के प्रांतीय चुनाव थे, जिसमें जिन्ना को बंटवारे के लिए मिला समर्थन

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