क्या है जापानी मार्शल आर्ट जिउ-जित्सु और एकिदो, जिसकी प्रैक्टिस करते हैं राहुल

2 weeks ago

हाइलाइट्स

ये दोनों ही मार्शल आर्ट हैं, जो जापान में पैदा हुईं और दुनियाभर में फैल गईंराहुल गांधी इसकी प्रैक्टिस करते रहे हैं, उनका कहना है कि ये एनर्जी देती हैउनकी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वह शाम को बच्चों के साथ रेगुलर प्रैक्टिस करते थे

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि इस साल की शुरुआत में अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान उनकी “हर शाम जिउ-जित्सु का अभ्यास करने की दिनचर्या थी,” जिसके तहत वह जिन शहरों में रहते थे, वहां युवा मार्शल आर्ट के छात्र उनके साथ इस प्रैक्टिस के लिए आते थे. इन्हें जापान में जेंटल आर्ट भी कहते हैं.

उन्होंने हाल ही में इसे लेकर एक्स पर पोस्ट किया, “हमारा लक्ष्य इन युवा दिमागों को ‘जेंटल आर्ट’ की खूबसूरती से परिचित कराना था, जो ध्यान, जिउ-जित्सु, एकिदो और अहिंसक संघर्ष समाधान तकनीकों का समावेश है. इसके जरिए युवा अधिक दयालु होंगे और सुरक्षित समाज बनेगा.” इसी में उन्होंने लिखा, “भारत डोजो यात्रा जल्द ही शुरू होने वाली है”. जापानी भाषा में डोजो मार्शल आर्ट सीखने का स्थान है, जो कुछ हद तक भारत में कुश्ती के लिए अखाड़े के समान है.

जिउ- जित्सु यानि ‘कोमल कला’
जापान में उत्पन्न होने वाली मार्शल आर्ट में जिउ का मतलब “कोमल कला” होता है, जिउ का अर्थ है “नरम/लचीला/कोमल” है और “ जित्सु ” का अर्थ है “कला/तकनीक”.
जिउ- जित्सु की उत्पत्ति जापान में 16वीं शताब्दी के अंत में जापान में समुराई के युग से जुड़ी है. समुराई जापान का वो योद्धा वर्ग था, जिसके पास 12वीं और 19वीं शताब्दियों के बीच महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति थी.

राहुल गांधी ट्वीट करके कहा है कि वह जल्द ही भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने वाले हैं, उसमें फिर लोगों को मार्शल आर्ट्स के साथ भी जोड़ेंगे.

ऐसा माना जाता है कि समुराई योद्धाओं ने युद्ध के दौरान अपने हथियार (पौराणिक कटाना तलवारें) खो देने की स्थिति में कई तरह की कुश्ती और आत्मरक्षा तकनीकों का विकास किया था.

चूंकि भारी कवच ​​वाले विरोधियों के खिलाफ नंगे हाथों से वार करना था, जैसा कि समुराई युद्ध के दौरान करते थे लेकिन कैसे असरदार तरीके से काम करे, इसलिए इसकी प्रैक्टिस करने वालों ने पिन, जॉइंट लॉक और थ्रो के रूप में प्रतिद्वंद्वी को बेअसर करने के अधिक कुशल तरीके खोजे. इन तकनीकों के मूल में प्रतिद्वंद्वी की ऊर्जा से सीधे लड़ने की बजाए उनके खिलाफ अपने को बचाने और अपनी ऊर्जा को हेरफेर करने का सिद्धांत था.

जिउ जित्सु की कई ब्रांच
समय के साथ जब जिउ जित्सु जापान और विदेशों में लोकप्रिय होने लगीं तो इसकी कई शाखाएं पैदा हुईं, जिन्होंने कई अन्य युद्ध खेलों को प्रभावित किया. जिसमें जूडो, कराटे और दूसरे मार्शल आर्ट शामिल हैं.

जूडो को 19वीं शताब्दी के अंत में जिउ जित्सु की कई पारंपरिक शैलियों से विकसित किया गया. 1964 के टोक्यो खेलों में यह एक ओलंपिक खेल बन गया.

सैम्बो 1920 के दशक में सोवियत लाल सेना द्वारा सैनिकों की हाथ से हाथ की लड़ाई क्षमताओं में सुधार करने के लिए विकसित किया एक युद्ध खेल है.

ब्राजीलियन जिउ-जित्सु का विकास 1920 के दशक में हुआ. आज ये सबसे लोकप्रिय आत्मरक्षा शैलियों में एक है, जिसमें एक छोटा, कमजोर व्यक्ति भार वितरण की मदद से बड़े मजबूत प्रतिद्वंद्वी को हरा देता है.

एमएमए या मिश्रित मार्शल आर्ट आज सबसे लोकप्रिय युद्ध खेल है, इसमें काफी कुछ जिउ जित्सु और अन्य शैलियों से लिया है.

एकिदो शत्रु को चोट नहीं पहुंचाने की कला
एकिदो भी जिउ जित्सु की एक ब्रांच है. इसे 20वीं सदी की शुरुआत में मार्शल आर्टिस्ट मोरीही उशीबा ने विकसित किया. ये जापान की मार्शल आर्ट कलाओं में सबसे नई है. एकिदो का अर्थ है “ऊर्जा को सामंजस्य बनाने का तरीका”. यह अन्य मार्शल आर्ट से अलग है.

ये प्रतिद्वंद्वी की ऊर्जा को नियंत्रित करता है और उसको चरम सीमा तक ले जाता है. एकिदो का लक्ष्य संघर्ष को अहिंसक तरीके से समाप्त करना है. ये प्रतिद्वंद्वी पर हावी होने की बजाए उसके हमलों को रोकती है और प्रतिद्वंद्वी की ताकत का मुकाबला करती है. इसका सिद्धांत केवल खुद का बचाव करना ही नहीं है बल्कि हमलावर को भी चोट नहीं पहुंचाना है. एकिदो खुद पर नियंत्रण करने की तकनीक भी है. जो हर स्थिति में कूल रखती है.

यही कारण है कि एकिदो की प्रतियोगिताएं नहीं होती हैं. इसके बजाय इसकी प्रैक्टिस करने वाले बस इसे डिमांस्ट्रेट करते हैं, जो मुख्य तौर पर समग्र मानसिक और शारीरिक विकास के लिए मायने रखता है.हालांकि बहुत से लोग एकिदो की आलोचना करते हैं कि इसके जरिए अधिक हिंसक लड़ाई में खुद को बचा नहीं सकते. हालांकि इसके पक्षधर तर्क देते हैं एकिदो द्वारा विकसित कौशल और अनुशासन न केवल आत्मरक्षा के लिए बल्कि जीवन के लिए भी बहुत जरूरी है.

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FIRST PUBLISHED :

August 30, 2024, 11:56 IST

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