Doodh Pilai Ritual: राजस्थान की शादियां महलों की भव्यता को जीवंत कर देती हैं. समारोह इतने शानदार होते हैं कि सीधे किसी बॉलीवुड सेट से उठाए हुए लगें. इसी शाही ठाठ-बाठ के बीच एक पुरानी और बेहद निजी रस्म ने इन दिनों डिजिटल दुनिया में तूफान मचा रखा है, इसका नाम है ‘दूध पिलाई’. यह रस्म क्या है? शादी के लिए तैयार खड़े बेटे को उसकी मां बारात निकलने से ठीक पहले प्रतीकात्मक रूप से स्तनपान कराती है. स्थानीय लोगों के लिए यह मां का दिल को छू लेने वाला और भावुक आशीर्वाद है. जो उसे बचपन के प्यार और मां के पोषण की आखिरी निशानी देता है.
मगर, जहां एक ओर यह परंपरा मां के प्यार और स्नेह का प्रतीक है, वहीं सोशल मीडिया पर इसे लेकर जमकर बहस छिड़ गई है. इस विवाद की जड़ बना है भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया का एक वायरल वीडियो, जिसमें दूल्हा सुरेश भादू अपनी बारात निकलने से ठीक पहले अपनी मां से यह प्रतीकात्मक आशीर्वाद लेते हुए दिखाई देते हैं. एक वीडियो में सुरेश भादू को अपनी मां द्वारा प्रतीकात्मक रूप से अपने पल्लू के नीचे से दूध पिलाते हुए दिखाया गया है.
वायरल हुई एक्स की क्लिप
एक्स पर साझा की गई यह क्लिप तब वायरल हुई जब एक यूजर ने लिखा, “राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया की अनूठी परंपरा. दूल्हा – सुरेश भादू (जाट), पिता – जेठा राम जी भादू (जेआर भादू). मां के दूध का कर्ज याद रहे, यह रिवाज इसलिए है ताकि शादी के बाद मां को भुलाया न जाए.” पोस्ट में कहा गया है कि यह रस्म ब्राह्मण, राजपूत, जाट, विश्नोई, कुम्हार आदि जातियों में मनायी जाती है.
क्या है ‘दूध पिलाई’ रस्म
न्यूज-18 इंग्लिश वेबसाइट की एक रिपोर्ट के अनुसार दूध पिलाने की रस्म प्रतीकात्मक है, शाब्दिक नहीं. यह दूल्हे के बचपन से वैवाहिक जिम्मेदारियों की ओर बढ़ने को दर्शाने के लिए की जाती है. राजस्थानी समुदायों में आमतौर पर निभाई जाने वाली इस रस्म में मां अपने ब्लाउज को थोड़ा ऊपर उठाती है ताकि दूल्हा दूध पीते बच्चे की नकल कर सके. यह रस्म बारात के दौरान सार्वजनिक रूप से की जाती है, अक्सर महिला रिश्तेदारों की उपस्थिति में. यह एक मां के अंतिम आशीर्वाद ‘मां के दूध का कर्ज’ चुकाने का प्रतीक है.
इससे मिलती-जुलती रस्में
हरियाणा, पश्चिमी नेपाल और बिहार के कुछ हिस्सों में भी ऐसी ही प्रथाएं प्रचलित हैं. दुल्हनों के लिए कोई समान अनुष्ठान नहीं है. इन जगहों पर दूल्हे को कभी-कभी उसकी मां या किसी महिला रिश्तेदार द्वारा प्रतीकात्मक रूप से दूध पिलाया जाता है. ताकि बचपन का अंत दिखाया जा सके और शादी से पहले उसका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके. ये रस्में मां की देखभाल और सुरक्षा को दर्शाती हैं और आमतौर पर शादी की बारात के दौरान या उससे ठीक पहले की जाती हैं. राजस्थान का दूध पिलाई इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है.
इसका सांस्कृतिक महत्व
ऐतिहासिक रूप से यह रस्म लड़कपन के अंत का प्रतीक है. दूल्हा शाही पोशाक पहनकर अक्सर तलवारें या कटार लेकर और धूमधाम से घर से निकलता था. समय के साथ ये सैन्य इशारे औपचारिक परंपराओं में विकसित हो गए, जबकि दूध पिलाई मातृ देखभाल और पारिवारिक बंधनों का प्रतीक बनी रही. कई लोगों ने इस तरह के अंतरंग हाव-भावों से सार्वजनिक सहजता पर सवाल उठाए. एक्स पर एक यूजर ने कहा, “परंपरा सही हो सकती है, लेकिन एक मां की गरिमा से तब खिलवाड़ होता है जब कुछ लोग उसका वीडियो बनाकर इंटरनेट पर डाल देते हैं. क्या आपने उस मां से पूछे बिना यह वीडियो ट्विटर पर पोस्ट नहीं किया है? और अगर इसमें उस मां की सहमति नहीं है तो क्या आपने उसकी निजता का उल्लंघन नहीं किया है?”
लोगों ने जताया ऐतराज
एक अन्य यूजर ने लिखा, “पहली बात तो यह कि इस उम्र में दूध नहीं आता. दूसरी बात लड़का बड़ा हो गया है. तीसरी बात सार्वजनिक रूप से वक्षस्थल दिखाना गलत है. मुझे नहीं लगता कि यह धर्म का हिस्सा है, यह सांस्कृतिक भी हो सकता है. संस्कृति सही भी हो सकती है और गलत भी. दहेज भी एक सांस्कृतिक प्रथा है, तो क्या यह सही है?”
किसी ने प्रतिवाद किया, “यह रस्म तब निभाई जाती है जब बारात शादी के लिए रवाना होती है. हालांकि इस रस्म में गोपनीयता होनी चाहिए, लेकिन दूसरे राज्यों के लोग इस रस्म का मजाक उड़ा रहे हैं, जो बिल्कुल गलत है, रीति-रिवाज, परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं, उन्हें निभाना गलत नहीं है, तो फिर पारंपरिक ढंग से शादी मत करो, सिर्फ कोर्ट मैरिज करो.”
वायरल वीडियो ने इस बात पर चर्चा शुरू कर दी है कि मौजूदा समय में विरासत के संरक्षण और गरिमा, सहमति और बाल सुरक्षा मानदंडों को बनाए रखने के बीच की रेखा कहां खींची जाए. कई यूजर्स दूध पिलाई को सनसनीखेज या मनगढ़ंत ‘रिवाजों’ के एक व्यापक पैटर्न से जोड़ते हैं. लेकिन वो क्षेत्रीय रीति-रिवाजों की तथ्य-जांच और अधिक जिम्मेदारी से चित्रण की मांग करते हैं.

50 minutes ago
