क्यों कटे राहुल के भाषण के अंश, क्या प्रक्रिया, क्या इसे दी जा सकती है चुनौती

2 days ago

हाइलाइट्स

संसद की कार्यवाही से किसी वाक्य या शब्द को निकालने का फैसला स्पीकर का होता हैस्पीकर को अगर कुछ आपत्तिजनक या अमर्यादित लगता है तो वो ऐसा कर सकता हैस्पीकर के इस फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है

लीडर ऑफ अपोजिशन के तौर पर राहुल गांधी के भाषण के अंश को रिकॉर्ड से हटाने के बाद ये सवाल लाजिमी है कि लोकसभा में किसी भी नेता के भाषण के अंश किस आधार पर रिकॉर्ड या कार्यवाही से हटा दिये जाते हैं. किस नियम के आधार पर ऐसा किया जाता है. मसलन राहुल गांधी ने अपने भाषण के कई अंशों को हटाने के बाद तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए पूछा है कि उनके वो अंश क्यों हटाए गए. तो क्या इस प्रक्रिया को चुनौती दी जा सकती है.

आमतौर पर लोकसभा में नेताओं के भाषण के रिकॉर्ड से आपत्तिजनक शब्दों, वाक्यों या भाषण के अंशों को हटाना एक सामान्य प्रक्रिया है और इसे निर्धारित नियमों के अनुसार किया जाता रहा है. लेकिन अक्सर इस पर विवाद भी उठता रहा है कि कई बार विपक्षी नेताओं के भाषण के वो अंश मनमानी तरीके से हटा दिये जाते हैं, अगर वो सत्ताधारी पार्टी को नागवार गुजरते हैं.

– ये अंश या शब्द रिकॉर्ड से स्पीकर खुद संज्ञान लेकर निकलवा देते हैं
– कई बार सत्ताधारी पार्टी के नेता अगर स्पीकर से मिलकर उनका ध्यान किसी भाषण के कुछ शब्दों या अंशों की ओर खींचते हैं तो स्पीकर उसका रिकॉर्ड मंगाते हैं अगर उन्हें लगता है कि ये वाकई आपत्तिजनक है तो उसे हटा दिया जाता है. अन्यथा वो रिकॉर्ड में बने रहते हैं. हालांकि कार्यवाही के किस भाग को हटाया जाए, इसका फैसला केवल स्पीकर के विवेकानुसार ही होता है.

रिकार्ड से हटाने के नियम क्या हैं?
– सांसदों को सदन के अंदर अपनी बात कहने की आजादी तो है लेकिन कुछ भी कहने की आजादी नहीं है. इसमें अपमानजनक बातें, आपत्तिजनक शब्द, अससंदीय और गैर मर्यादित शब्द या बातें शामिल हैं.
सांसदों का भाषण संसद के नियमों के अनुशासन, उसके सदस्यों की “अच्छी समझ” और स्पीकर द्वारा कार्यवाही के नियंत्रण के अधीन है. लिहाजा जब ये लगता है कि सांसदों के भाषण इस पैमाने पर खरे नहीं हैं तो उन्हें स्पीकर के संज्ञान में लाकर उन्हें हटाने का काम किया जाता है

लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 380 (‘‘निष्कासन’’) में कहा गया है: ‘‘यदि अध्यक्ष की राय है कि वाद-विवाद में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो अपमानजनक या अशिष्ट या असंसदीय या अशोभनीय हैं, तो अध्यक्ष अपने विवेक का प्रयोग करते हुए आदेश दे सकते हैं कि ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया जाए।’’

नियम 381 कहता है: “सदन की कार्यवाही का वह भाग जो इस प्रकार हटाया गया है, उसे तारांकन चिह्न से चिह्नित किया जाएगा और कार्यवाही में निम्नानुसार एक व्याख्यात्मक फुटनोट डाला जाएगा ‘. इसे अध्यक्ष के सामने लाया जाएगा और उनके आदेशानुसार हटाया जाएगा.

क्या हर संसद के भाषण को मॉनिटर करने का काम कोई संसद का कोई स्टाफ भी करता है?
– हां लोकसभा सचिवालय में हर संसद सत्र के दौरान एक पूरी टीम हर भाषण और कार्यवाही के हर अंश को लिखित और वीडियो के आधार पर रिकॉर्ड करती है. उसे अगर कहीं भी लगता है कि ये असंसदीय या गैरमर्यादित है तो उसे तारांकित करके अध्यक्ष के पास लाते हैं. इस पर अध्यक्ष अपना नोट लिखते हैं. फिर उसी अनुसार वीडियो में वो बीप कर दिया जाता है और लिखित रिकॉर्ड से हटा देते हैं.

राहुल गांधी के भाषण के अंशों को हटाने के पीछे क्या कहा गया है?
– उनके भाषण के कुछ अंशों, वाक्यों और शब्दों को संसद की मर्यादा के अनुसार सही नहीं माना गया. इसी वजह से उसे स्पीकर के आदेशानुसार कार्यवाही से हटा दिया गया.

इस पर विरोध क्यों हो रहा है?
– क्योंकि विपक्ष ये मान रहा है कि इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं था लेकिन ये सत्तापक्ष के अनुकूल नहीं था लिहाजा निकाल दिया गया. इसी वजह से लीडर ऑफ अपोजिशन ने स्पीकर को कड़ा पत्र लिखते हुए विरोध जाहिर किया है.
करीब चार दशक से संसद की कार्यवाही को कवर कर रहे सीनियर जर्नलिस्ट और दो बार दिल्ली प्रेस क्लब के अध्यक्ष रह चुके उमाकांत लखेड़ा कहते हैं कि नेता प्रतिपक्ष का पद काफी बड़ा होता है. उसे सम्मान देना चाहिए. उसके भाषण के अंशों को यूं ही नहीं काटा जा सकता. लेकिन लगता है कि राहुल के भाषण के अंश इसलिए काटे गए, क्योंकि वो सत्तापक्ष को चुभने वाले थे. पहले संसद में इससे भी ज्यादा चुभने वाली बातें विपक्षी नेताओं ने सत्ता पक्ष के लिए कहीं हैं लेकिन उन्हें कभी नहीं हटाया गया.
लखेड़ा का कहना है कि अगर राहुल गांधी के हिंदूत्व शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति थी तो इसी शब्द का इस्तेमाल करने वाले सत्तापक्ष के सीनियर नेताओं के अंश क्यों नहीं कटे.

“असंसदीय” अभिव्यक्तियाँ क्या हैं?
– पिछले कुछ वर्षों में, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में बड़ी संख्या में शब्दों को पीठासीन अधिकारियों – लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा “असंसदीय” पाया गया है. इन असंसदीय अभिव्यक्तियों को संसद के रिकॉर्ड से बाहर रखा जाता है. इसमें सैकड़ों शब्द हैं. लोकसभा सचिवालय ने ‘असंसदीय अभिव्यक्तियां’ नामक एक बड़ी पुस्तक प्रकाशित की है.

इस पुस्तक में ऐसे शब्द या अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें अधिकांश संस्कृतियों में असभ्य या अपमानजनक माना जाएगा. लेकिन इसमें ऐसी सामग्री भी है जो काफी हद तक हानिरहित और अहानिकर भी लगेगी. इसमें पहले लोकसभा से लेकर दसवीं लोकसभा और विधानसभा से वो शब्द लिए गए, जिन्हें उचित नहीं माना गया. ये पुस्तक 900 पृष्ठों की है. लोकसभा औऱ राज्य विधानसभाएं भी मुख्य रूप से असंसदीय अभिव्यक्तियों की इसी पुस्तक से निर्देशित होती हैं.

“पीठासीन अधिकारियों के निर्णयों के आधार पर, नियमित अंतराल पर सूची में नए शब्द और वाक्यांश जोड़े जाते रहेंगे.”

किसी शब्द (या भाषण के किसी भाग) को हटाने का निर्णय कैसे लिया जाता है?
लोकसभा सचिवालय के पूर्व निदेशक के. श्रीनिवासन के अनुसार, “यदि कोई सदस्य किसी ऐसे शब्द का प्रयोग करता है जो असंसदीय या अभद्र हो तथा सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाता हो, तो रिपोर्टिंग अनुभाग का प्रमुख उसे संबंधित नियमों और पूर्व उदाहरणों का हवाला देते हुए अध्यक्ष या पीठासीन अधिकारी के पास भेज देता है तथा उसे हटाने की सिफारिश करता है.”नियम 380 के तहत स्पीकर.

हर सत्र में जिन शब्दों या वाक्यों को अमर्यादित या अशालीन मानते हैं, उनका क्या होता है?
एक बार जब स्पीकर शब्द या प्रयोग को हटा देता है, तो यह रिपोर्टिंग सेक्शन में वापस आता है, जो रिकॉर्ड से शब्द को हटा देता है और कार्यवाही में “अध्यक्ष के आदेशानुसार हटाया गया” के रूप में उल्लेख करता है.सत्र के अंत में, रिकॉर्ड से हटाए गए शब्दों का संकलन, कारण सहित, सूचना के लिए अध्यक्ष के कार्यालय, संसद टीवी और संपादकीय सेवा को भेजा जाता है।

किसी शब्द को हटा दिए जाने के बाद क्या होता है?
कार्यवाही के हटाए गए अंश संसद के अभिलेखों से गायब हो जाते हैं. मीडिया द्वारा उन पर रिपोर्ट नहीं की जा सकती, भले ही कार्यवाही के लाइव प्रसारण के दौरान उन्हें सुना गया हो. हालांकि सोशल मीडिया के प्रसार ने निष्कासन आदेशों के सख्त कार्यान्वयन में चुनौतियां पेश की हैं.

क्या किसी भाषण के अंश या वाक्यों को हटाने के स्पीकर के फैसले को चुनौती दी जा सकती है?
नहीं, इसे चुनौती नहीं दी जा सकती बल्कि स्पीकर से मिलकर उन्हें बताया ही जा सकता है कि ये आपत्तिजनक नहीं है. एक दो बार ऐसा हुआ है कि जिसे आपत्तिजनक मानकर हटाया गया, उसे फिर रिकॉर्ड में शामिल कर लिया गया. संसद में कही गई कोई बात या आचरण अदालत में नहीं ले जाया जा सकता है. अलबत्ता स्पीकर के इस फैसले पर असहमति जाहिर करने या विरोध करने का लोकतांत्रिक अधिकार जरूर सांसदों के पास होता है, जिसे लोकतांत्रिक तरीके से ही करना चाहिए.

Tags: Loksabha Speaker, Om Birla, Rahul gandhi

FIRST PUBLISHED :

July 2, 2024, 16:41 IST

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