खाक में मिल जाएंगे चीन और पाकिस्तानी ड्रोन, खास तकनीक पर भारत में हो रहा काम

3 weeks ago
ड्रोन हमलों से निपटने के लिए भारतीय सेना हाई पावर माइक्रोवेव सिस्टम पर काम कर रही है.ड्रोन हमलों से निपटने के लिए भारतीय सेना हाई पावर माइक्रोवेव सिस्टम पर काम कर रही है.

नई दिल्ली. रूस के सेरातोव में 9/11 जैसा हमला हुआ है. यह हमला ड्रोन विमान के ज़रिये किया गया. सोशल मीडिया पर वायरल विडियो में साफ़ दिखाई दे रहा है कि एक ड्रोन तेज़ी से उड़ता हुआ आया और एक 38 मंज़िला इमारत में जा घुसा. रिपोर्ट के मुताबिक़ ये ड्रोन यूक्रेन की तरफ़ से दागा गया था. चौंकाने वाली बात तो ये है कि इस तरह के हमले उस देश के खिलाफ सफल हो रहे हैं, जिसके पास दुनिया के सबसे बेहतरीन एंटी ड्रोन सिस्टम मौजूद हैं. रूस के पास करशुका, लीर-3, रेपलेंट-1, पोल 21 एंटी ड्रोन एंड जैंमिग सिस्टम होने के बावजूद ड्रोन उनके घर तक पहुंच रहे हैं.

ये साफ़ दिखाने के लिए काफ़ी है कि ड्रोन का सौ फ़ीसदी काट निकाल पाना अभी असंभव नज़र आ रहा है. भारतीय सेना भी इस समस्या का हल ढूंढने के लिए अब एक एंटी ड्रोन पावर माइक्रोवेव सिस्टम की ख़रीद करने जा रही है. भारतीय सेना ने बाकायदा उसके लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है. स्वदेशी कंपनियों से रिक्वेस्ट फ़ॉर इंफ़ॉरमेशन (आरएफआई) के ज़रिए जानकारी मांगी गई है. ये ख़रीद ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत स्वदेशी कंपनियों से की जाएगी.

काउंटर ड्रोन सिस्टम
काउंटर ड्रोन सिस्टम दो तरह के होते हैं-एक सॉफ़्ट किल और एक हार्ड किल. भारतीय सेना एक ऐसे सिस्टम की तलाश कर रही है जिसमें ये दोनों खूबी हो. सॉफ़्ट किल का मतलब किसी भी ड्रोन को जाम करना या फिर स्पूफिंग के जरिए उसे गिराया जाना. जैंमिग में ग्राउंड स्टेशन से किसी फ़्रीक्वेंसी पर ऑपरेट करने वाले ड्रोन की फ़्रीक्वेंसी को बाधित कर दिया जाता है, जिससे ड्रोन नीचे गिर जाता है. सॉफ़्ट किल अस्थायी, तो हार्ड किल स्थायी होता है.

हार्ड किल के लिए कई अलग-अलग तहर के सिस्टम इस्तेमाल में लाए जाते हैं, जिसमें पहला- लेज़र वेपन सिस्टम, दूसरा- हाई पावर माइक्रोवेव सिस्टम, तीसरा- एंटी ड्रोन गन, चौथा- ड्रोन किल सिस्टम जिसमें दुश्मन के ड्रोन को काउंटर करने के लिए ड्रोन लॉन्च किया जाता है और वो उसे नष्ट करता है और पांचवा है व्हिकल माउंटेड काउंटर ड्रोन सिस्टम, जिसे स्वार्म ड्रोन अटैक के दौरान इस्तेमाल किया जाता है और एक साथ कई रॉकेट दागे जाते हैं और वो उस मदर ड्रोन को हिट करता है जिससे स्वार्म ड्रोन ऑपरेट होते हैं.

भारतीय सेना के पास ड्रोन को मार गिराने के लिए गन तो है, लेकिन अब उन्हें नए तरीक़े का एम्यूनेशन चाहिए और इसीलिए लो लेवल लाइट वेट रडार की ख़रीद जारी है. इंटिग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन एंड इंट्रिडेक्शन सिस्टम के तहत सेना को ‘मेक इन इंडिया’ के तहत ऐसा सिस्टम चाहिए जो कि कम से कम 10 किलोमीटर दूर से ड्रोन को डिटेक्ट भी कर सके और ट्रैक भी कर सके और 5 किलोमीटर के दायरे में उसे पूरी तरह से नष्ट कर दे. साथ ही एक साथ वो 100 टारगेट को डिटेक्ट कर सके और 20 को एंगेज कर सके.

ये सिस्टम ऐसा होने चाहिये जिसे सड़क, रेल, एयर और समुद्र के रास्ते आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सके. ये सिस्टम व्हिकल माउंटेड किया जा सके और ये सिस्टम आसानी से एयर डिफेंस कमांड और रिपोर्टिंग सिस्टम के साथ इंटीग्रेटे किया जा सके. ये सिस्टम गर्म रेगिस्तान के 55 डिग्री तापमान पर भी पूरी तरह से काम कर सके और इसे हाई ऑल्टिट्यूड के माइनस 40 डिग्री में भी आसानी से ऑपरेट किया जा सके. हाई पावर माइक्रोवेव सिस्टम से दागी गई इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स ड्रोन के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को डिस्टर्ब कर देती है. ये पल्स रेडियो लिंक में दखल देता है और ड्रोन के अंदर के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को नष्ट कर देता है.

ये एक नॉन काइनेटकि सिस्टम है जो कि रेंज के अंदर किसी भी ड्रोन को नष्ट कर सकता है, लेकिन इसका एक बड़ा नुक़सान ये भी है कि एक तो ये बहुत महंगा है और इसके चपेट में आकर उस इलाके के उसी प्रकार के अन्य रेडियो लिंक वाले अन्य उपकरणों को भी नष्ट कर सकता है. ऐसे में सेना को ज़रूरत है नैरो बैंड नॉन काइनेटिक हार्ड किल सिस्टम की, जो कि बाक़ी अन्य उपकरणों को नुक़सान ना पहुंचाए. आरएफआई के मुताबिक़ सिस्टम ऐसा होना चाहिए जो कि दुश्मन के ड्रोन की पहचान कर उसे ट्रैक कर सके और फिर उसे नष्ट कर दे.

Tags: Anti Drone System, China, Drone Attack, Indian army

FIRST PUBLISHED :

August 26, 2024, 17:01 IST

Read Full Article at Source