गुस्से से कैसे छुटकारा पाएं?

8 hours ago

हर कोई अपने गुस्से से छुटकारा पाना चाहता है. आप स्वयं को बार-बार समझाते हैं कि गुस्सा नहीं करना है, लेकिन जब कोई स्थिति सामने आती है, तो आप अपने आप को रोक नहीं पाते और भावनाओं के तूफान में बह जाते हैं. भावनाएँ आपके विचारों से कहीं अधिक ताकतवर होती हैं. स्कूल और कॉलेज में हमें हमेशा कहा गया कि गुस्सा मत करो, शांत रहो—लेकिन किसी ने यह नहीं सिखाया कि गुस्सा कैसे न करें.

गुस्सा हमारे स्वभाव का विकृत रूप है

गुस्सा हमारा असली स्वभाव नहीं है. हमारा असली स्वभाव है – प्रेम. हर नकारात्मक भावना प्रेम की ही विकृति है. आप पूर्णता से प्रेम करते हैं, इसलिए अपूर्णता पर गुस्सा करते हैं. आप किसी से बहुत प्रेम करते हैं, तो वह ईर्ष्या या अधिकार में बदल जाता है. आप स्वयं से अधिक प्रेम करते हैं, तो वह अहंकार बन जाता है. जब आप वस्तुओं से लोगों से अधिक प्रेम करते हैं, तो वह लालच बन जाता है. ये सभी विकृतियाँ आत्मा को पूरी तरह प्रकट नहीं होने देतीं, इसलिए इन्हें पाप कहा गया है.

गुस्सा कमजोरी की पहचान है


गुस्सा कमजोरी का संकेत है. जब आप कुछ करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते, तो उस असमर्थता से गुस्सा आता है. जब आपको लगे कि आप सक्षम हैं, ताकतवर हैं, तो आपको गुस्सा क्यों आएगा? आप कभी चींटी पर गुस्सा नहीं करते, न ही किसी बहुत बड़े व्यक्ति पर. आप उनके ऊपर गुस्सा करते हैं जो आपके बराबर या थोड़ा ऊपर हों. जब कोई आपकी बात नहीं मानता, या आपको लगता है किसी ने जानबूझकर कुछ किया है, तब गुस्सा आता है.

इसपर ध्यान दें कि आप कितनी बार गुस्सा करते हैं – जितनी शक्ति कम, उतना गुस्सा अधिक.

वर्तमान को स्वीकार न करने से गुस्सा आता है

प्रायः जब आप वर्तमान क्षण को स्वीकार नहीं करते, तो गुस्सा आता है. आप पूर्णता चाहते हैं, इसलिए अपूर्णता पर चिढ़ते हैं. थोड़ा अपूर्णता के लिए जगह रखिए – यह धैर्य लाता है. अधिक धैर्य होगा, तो कम गुस्सा होगा. कम गुस्सा होगा, तो हिंसा नहीं होगी. आज के युवाओं को विशेष रूप से धैर्य विकसित करने की आवश्यकता है.

अपनों से ही सबसे अधिक चोट लगती है

अगर कोई अनजान व्यक्ति आपको कुछ कह दे, तो आप इतना दुःखी नहीं होते. लेकिन अगर कोई अपना, जिससे आप प्रेम करते हैं, आपको नज़रअंदाज़ कर दे, तो आप टूट जाते हैं. प्रेम एक बहुत ही कोमल भावना है. तनिक-सी चोट, घृणा, गुस्सा या ईर्ष्या में बदल सकती है. इस विकृति से प्रेम को बचाने के लिए ज्ञान एक ढाल का काम करता है. ज्ञान प्रेम को शुद्ध बनाए रखता है.

जब कोई आपके साथ रूखा व्यवहार करे, तो आप क्या करते हैं? आपका मन खराब हो जाता है, आप रूखेपन के साथ प्रतिक्रिया देते हैं, परेशान होते हैं, उस व्यक्ति या परिस्थिति से बचना चाहते हैं, उस व्यक्ति को दोषी ठहराते हैं या उसे उपदेश देते हैं . ये जान लीजिए कि इनमें से कुछ भी आपको मजबूत नहीं बनाता. अगर आप यह मान लें कि हर गलती के पीछे कोई बुरी सोच नहीं होती, तो आप अपने मन को बचा सकते हैं. किसी की नकारात्मकता को दिल पर मत लीजिए, और सकारात्मकता को दिमाग से मत तौलिए. दिल चीज़ों को बढ़ा-चढ़ा कर देखता है इसलिए छोटी बातें भी बड़ी लगती हैं. यह आदत पलटनी होगी. अच्छाई को बढ़ा-चढ़ाकर देखिए, बुराई को समझदारी से तौलिए.

गुस्से और द्वेष का चक्र

गुस्सा और द्वेष एक चक्र की तरह हैं – गुस्सा आता है, फिर द्वेष होता है, फिर गुस्सा और बढ़ जाता है. या तो आप किसी और पर गुस्सा होते हैं, या स्वयं पर. और जब गुस्सा ठंडा होता है, तो आप स्वयं से द्वेष करते हैं,”मैंने ऐसा क्यों किया?” इसलिए सबसे पहले द्वेष से छुटकारा पाइए.

गुस्सा आना स्वाभाविक है – जैसे कोई बच्चे से खिलौना छीन ले तो वह रोता है, लेकिन अगले ही पल हँसता है. वैसे ही हमें भी गुस्सा आ सकता है, लेकिन वह पानी पर खींची रेखा की तरह होना चाहिए – क्षणिक.

गुस्सा दिखाना गलत नहीं है, पर गुस्से में सजगता खो देने से किसी और से अधिक आपको नुकसान होताहै. जब आप गुस्से में पूरी तरह होश में होते हैं, तब गुस्सा एक औजार बन जाता है. लेकिन अगर आप होश खो बैठें, तो आप भीतर से हिल जाते हैं.

गुस्से पर नियंत्रण एक कला है

गुस्से को कब, कहाँ और कैसे प्रदर्शितकरना है, यह समझना एक कला है. और यही कला आत्मज्ञान से आती है. जब आप थके हुए या तनाव में होते हैं, तभी आप संतुलन खोते हैं और गुस्से में आ जाते हैं.

श्वास और ध्यान का महत्व

श्वास के साथ हर भावना जुड़ी होती है. गुस्से में आप जल्दी -जल्दी श्वास छोड़ते हैं, खुशी में अलग ढंग से श्वास लेते हैं. जब आप श्वास पर ध्यान देना सीख जाते हैं, तो आपकी अपनी भावनाओं पर पकड़ बन जाती है. ध्यान आपको यह सिखाता है कि कैसे विकारों को छोड़ना है, कैसे वर्तमान को स्वीकारना है, और हर पल को गहराई से जीना है.


अगर आप गुस्सा करें और उसे व्यक्त न करें, तो भीतर घुटन होती है. और अगर व्यक्त करें, तो पछतावा होता है. इस द्वंद्व से ऊपर उठना ही समाधान है. यह तभी संभव है जब आप चेतना में ऊपर उठते हैं, यहीं पर अध्यात्म की भूमिका आती है.

मुस्कान सस्ती बनाएँ, गुस्सा महँगा

आमतौर पर आप गुस्सा मुफ्त में बाँटते हैं, और मुस्कान को सँभाल कर रखते हैं – जैसे वह कोई मूल्यवान वस्तु हो. अज्ञान में गुस्सा सस्ता होता है, और मुस्कान महँगी. ज्ञान में मुस्कान हवा, पानी और सूरज की तरह मुफ्त होती है, और गुस्सा हीरा जैसा कीमती.

अपनी मुस्कान को सस्ता करिए, और गुस्से को महँगा.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

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