Last Updated:June 18, 2025, 15:19 IST
सवाई माधोपुर जिले के पालीघाट में चंबल नदी का किनारा इन दिनों एक नई कहानी कह रहा है — पुनर्जीवित जीवन की कहानी. यहां शांत लहरों के बीच, इस बार 150 से अधिक घड़ियाल बच्चों ने जन्म लिया है. यह सिर्फ संख्या नहीं, ब...और पढ़ें

पालीघाट में घड़ियालों की किलकारी (इमेज- फाइल फोटो)
चंबल और पार्वती नदी के संगम पर स्थित इस दुर्गम इलाके में न तो सड़क है, न ही मोबाइल नेटवर्क. घने कंटीले जंगलों और बीहड़ के किनारों को पार कर हमारी रिपोर्टिंग टीम जब पालीघाट के उस विशेष स्थान तक पहुंची, तो कैमरे में दर्ज हुआ—घड़ियालों का जीवन चक्र. वही स्थान, जहां इस साल घड़ियालों के प्रजनन की सबसे अधिक गतिविधियां दर्ज की गई.
अंगड़ाई लेता नज़र आया घड़ियालों का झुंड
पालीघाट क्षेत्र में इस साल 25 से अधिक सक्रिय घोंसले चिन्हित किए गए हैं, जिनमें से प्रत्येक में मादा घड़ियालों ने 30 से 50 अंडे दिए. अब तक 6 घौसलों से लगभग 150 घड़ियाल के बच्चे अंडों से बाहर निकल चुके हैं. अनुमान है कि यह संख्या जल्द 200 को पार कर सकती है. यह आंकड़ा पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक है.
रात-दिन निगरानी में लगे हैं वनकर्मी और संरक्षण विशेषज्ञ
इस संवेदनशील प्रजनन स्थल पर वन विभाग के कर्मचारियों और विशेषज्ञों की 24×7 गश्त जारी है. घोंसलों के आसपास वायर फेंसिंग की गई है और हर गतिविधि की मॉनिटरिंग कैमरों व बायो-लॉगिंग उपकरणों के जरिए हो रही है. प्रदेश में मानसून की एंट्री हो चुकी है. ऐसे में वन विभाग की विशेष तैयारी है कि चंबल के प्रचंड बहाव से पहले इन बच्चों को नई हेचरी भेजा जाए. प्राकृतिक वातावरण में अधिकांश शावक जीवित नहीं रह पाते क्योंकि शिकारी और प्राकृतिक आपदाएं उनकी बड़ी दुश्मन हैं. इस बार वन विभाग ने मानसून से पहले 100 नवजात शावकों को सुरक्षित रियरिंग सेंटर में रखने का फैसला किया है, जहां उन्हें कृत्रिम रूप से पालित किया जाएगा और मानसून के बाद टैगिंग के साथ दोबारा नदी में छोड़ा जाएगा.
संरक्षण जरुरी
पालीघाट में प्रस्तावित रियरिंग सेंटर, अंडों से लेकर किशोर अवस्था तक के घड़ियालों की वैज्ञानिक निगरानी और संरक्षण का केंद्र बनेगा. यहां इन्क्यूबेशन पिट, माइक्रो टैगिंग और फील्ड रिलीज़ जैसी आधुनिक तकनीकों से कार्य होगा. संरक्षण की यह कहानी सिर्फ एक प्रजाति की नहीं है. यह लड़ाई पूरी पारिस्थितिकी के संतुलन की है. पालीघाट में घड़ियालों की वापसी यह साबित करती है कि यदि प्रशासन, वैज्ञानिक और समुदाय मिलकर प्रयास करें तो संकटग्रस्त प्रजातियों को भी पुनर्जीवित किया जा सकता है. कभी इन घडियालों की तादाद लाखों में हुआ करती थी. अब देश में महज़ 2500 के करीब बचे हैं. इनमें से ज्यादातर का वास चंबल नदी में है. हर साल बच्चे होते हैं लेकिन बच नहीं पाते. इस बार विशेष प्रयास किये जा रहे हैं.
चंबल की गहराई, शांत बहाव और रेतीले तट घड़ियालों के लिए स्वाभाविक आवास है. यही कारण है कि IUCN द्वारा “अत्यंत संकटग्रस्त” घोषित यह प्रजाति अब मुख्यतः चंबल, गंडक, सोन और रामगंगा जैसी नदियों तक सीमित रह गई है. इनके संरक्षण के रास्ते में चुनौतियां भी कम नहीं है. लेकिन इस साल उम्मीद की लहर बह निकली है.
न्यूज 18 में बतौर सीनियर सब एडिटर काम कर रही हूं. रीजनल सेक्शन के तहत राज्यों में हो रही उन घटनाओं से आपको रूबरू करवाना मकसद है, जिसे सोशल मीडिया पर पसंद किया जा रहा है. ताकि कोई वायरल कंटेंट आपसे छूट ना जाए.
न्यूज 18 में बतौर सीनियर सब एडिटर काम कर रही हूं. रीजनल सेक्शन के तहत राज्यों में हो रही उन घटनाओं से आपको रूबरू करवाना मकसद है, जिसे सोशल मीडिया पर पसंद किया जा रहा है. ताकि कोई वायरल कंटेंट आपसे छूट ना जाए.