जगराते में मासूम की मौत और फांसी के साए में 10 साल... SC में खुली पुलिस की पोल

1 week ago

Last Updated:April 08, 2025, 08:49 IST

जगराते की रात... एक मासूम बच्ची की मौत... और एक ऐसा 'दोषी' जिसका उस जुर्म से कोई वास्ता ही नहीं था. ये कहानी है झूठ, जबरन कबूलनामे, पुलिस की साजिश और एक निर्दोष युवक की, जिसने जिंदगी के 10 साल फांसी की सजा के ड...और पढ़ें

जगराते में मासूम की मौत और फांसी के साए में 10 साल... SC में खुली पुलिस की पोल

उत्तराखंड के उधमसिंह नगर में जून 2016 को एक बच्ची की हत्या के मामले में गिरफ्तार शख्स को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया.

हाइलाइट्स

सुप्रीम कोर्ट ने निर्दोष युवक को बरी किया.पुलिस की लापरवाहीपूर्ण जांच पर सवाल उठाए.फॉरेंसिक रिपोर्ट पर भी संदेह जताया.

यह घटना जून 2016 में उत्तराखंड के उधम सिंह नगर की है. वहां एक जगराता चल रहा था, जहां मंत्र, भजन, ढोल और श्रद्धा का समंदर दिख रहा था. लेकिन आस्था की उसी भीड़ में शामिल एक मासूम बच्ची कहीं गायब हो गई. अगले दिन उसका शव एक खेत में मिला. लोग भड़क गए. पुलिस पर दबाव था. भीड़ को जवाब चाहिए था. और पुलिस ने चुना- सबसे आसान शिकार.

एक युवक… जो उस रात साउंड और लाइट ऑपरेट कर रहा था, उसे गिरफ्तार कर लिया गया. वारदात का कोई चश्मदीद नहीं, आरोपी के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं… फिर भी पुलिस ने कहा कि, ‘उसने जुर्म कबूल कर लिया है.’ पुलिस ने दावा किया कि आरोपी ने अपने कपड़े बैग में छिपाए थे. वहीं कपड़े जो वारदात के वक्त पहने थे, लेकिन सवाल ये कि अगर वो दोषी था, तो दो दिन तक कपड़े साथ क्यों रखे? क्यों नहीं उन्हें नष्ट कर दिया?

यही सवाल सुप्रीम कोर्ट में भी उठा, जहां जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता ने मामले की सभी फोरेंसिक और गवाहों की रिपोर्टों की बारीकी से समीक्षा की और पाया कि आरोपी के खिलाफ कोई विश्वसनीय सबूत नहीं था. अदालत ने न सिर्फ ट्रायल कोर्ट बल्कि हाईकोर्ट की तरफ से सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए युवक को बाइज्जत बरी कर दिया.

कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच बेहद लापरवाहीपूर्ण और पूर्वाग्रह से ग्रसित थी. पुलिस ने जबरन आरोपी से कबूलनामा करवाया और दावा किया कि आरोपी ने वारदात के वक्त पहने कपड़े एक बैग में रखे थे, जिसे वह बाद में फेंकने वाला था लेकिन उससे पहले पकड़ा गया.

इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की,

‘यह विश्वास करना मुश्किल है कि आरोपी, जो उस समय आज़ाद था और उसके पास कपड़े नष्ट करने का भरपूर मौका था, वो दो दिन तक कपड़े साथ लेकर घूमता रहा ताकि पुलिस उन्हें बाद में जब्त कर सके. यह पूरी तरह से मनगढ़ंत कहानी लगती है.’

फॉरेंसिक रिपोर्ट पर भी सवाल
कोर्ट ने यह भी कहा कि फॉरेंसिक नमूनों की सीलिंग और हैंडलिंग पर गंभीर संदेह है. डॉक्टर ने न तो यह बताया कि सैंपल किस पुलिसकर्मी को सौंपे गए, न ही यह बताया कि वो सुरक्षित हालत में थे.

कोर्ट ने कहा, ‘ऐसी पूरी संभावना है कि नमूनों में छेड़छाड़ की गई हो ताकि फॉरेंसिक रिपोर्ट पुलिस के पक्ष में जाए और आरोपी को फंसाया जा सके.’

न्याय की प्रक्रिया पर भी चोट
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया कि ट्रायल निष्पक्ष तरीके से नहीं चला. आरोपी को उचित कानूनी प्रतिनिधित्व नहीं मिला. इसके अलावा, एक पुलिस अधिकारी को अदालत में आरोपी का पूरा कबूलनामा ज्यों का त्यों सुनाने की अनुमति दी गई, जिसे कोर्ट ने ‘गंभीर कानूनी उल्लंघन’ बताया.

एक निर्दोष व्यक्ति ने 10 साल फांसी की सजा के साए में जेल में बिताए, जबकि पुलिस और न्यायिक व्यवस्था की नाकामी साफ नज़र आई.

यह फैसला न्यायपालिका और पुलिस व्यवस्था दोनों पर सवालिया निशान छोड़ता है- क्या हम ऐसे सिस्टम में रह रहे हैं, जहां झूठे सबूत और गढ़ी गई कहानियों से किसी की ज़िंदगी छीन ली जा सकती है?

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

April 08, 2025, 08:49 IST

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