Last Updated:December 14, 2025, 09:58 IST
Jawaharlal Nehru Kerala Story: देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को दुनियाभर में आधुनिक लोकतंत्र का बड़ा पैरोकार माना जाता है. कोल्ड वॉर के समय उनके द्वारा अपनाई गई गुटनिरपेक्षता की नीति की भी काफी तारीफ होती है, लेकिन उनके पॉलिटिकल करियर से एक ऐसा वाकया भी जुड़ा है, जो उनकी छवि के बिल्कुल इतर है. उनपर एक चुनी हुई सरकार को पहली बार बर्खास्त करने और लोकतांत्रिक मूल्यों को तार-तार करने का तोहमत भी है.
Jawaharlal Nehru Kerala Story: देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू लोकतंत्र के अगुआ माने जाते हैं, पर केरल की एक घटना उनकी इस छवि को तार-तार करती है. (फाइल फोटो/PTI)Jawaharlal Nehru Kerala Story: भारत प्राचीन काल से ही लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए विख्यात रहा है. वैशाली गणराज्य ने पहली बार दुनिया को लोकतंत्र से रूबरू कराया था. 1940 के दशक में कई देशों ने आजादी हासिल की थी, उनमें से भारत ऐसा राष्ट्र है, जहां लोकतंत्र आज भी फल-फूल रहा है. तमाम तरह की घटनाओं और आघात के बाद भी भारत का गणतंत्र आज भी हिमालय की तरह सिर उठाए अडिग और अविचल है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लोकतंत्र का अगुआ माना जाता है, पर उनकी सरकार पर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को एकतरफा तरीके से बर्खास्त करने का दाग भी है. उनके राजनीतिक करियर की उजली चादर पर यह ऐसा दाग है, जो इतिहास में दर्ज है और जिसको मिटाया नहीं जा सकता है. नेहरू सरकार ने संविधान के उस प्रावधान का इस्तेमाल किया, जिसके बारे में देश के नीति-निर्माताओं ने शायद ही इस तरह से सोचा हो. पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने 31 जुलाई 1959 को अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करते हुए केरल की पहली निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया था. बताया जाता है कि केरल की ईएमएस नंबूदरीपाद सरकार दुनियाभर में पहली कम्यूनिस्ट सरकार थी, जिसने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाते हुए सत्ता हासिल की थी.
भारत में किसी चुनी हुई सरकार को पहली बार संविधान के अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करते हुए सत्ता से बेदखल किया गया था. नेहरू सरकार ने आरोप केरल की नंबूदरीपाद सरकार पर राज्य की शासन व्यवस्था को उचित तरीके से न संभालने का आरोप लगाया गया था. केरल की लोकतांत्रिक सरकार को जब बर्खास्त किया गया था तो उस वक्त प्रदेश में मुक्ति संग्राम (विमोचन समरम – Vimochana Samaram) चल रहा था. विरोध-प्रदर्शन के साथ ही हिंसक घटनाएं भी हो रही थीं. हालांकि, वामपंथी नेताओं का कहना था कि प्रदेश में जानबूझकर ऐसी घटना क्रिएट की गई थी. अमेरिकी और ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों (CIA और MI5) के इसमें शामिल होने के भी आरोप लगे थे. कुछ हलकों में तो यह भी कहा जाता है कि केरल के ‘चीन बनने’ के खतरे से अमेरिका से यूरोप तक में खलबली मची हुई थी. वामपंथी सरकार का इस तरह से चुनकर सत्ता में आना उस वक्त न तो अमेरिका और न ही ब्रिटेन को सुहा रहा था. कहा जाता है कि इसी वजह से केरल की चुनी हुई वाम सरकार को गिराने की कथित तौर पर साजिश रची गई थी.
Jawaharlal Nehru Kerala Story: नेहरू सरकार ने जब केरल की चुनी हुई वाम सरकार को जब बर्खास्त किया था, तब इंदिरा गांधी भी राजनीति में एक्टिव होने लगी थीं. (फोटो: AFP)
कैसे बर्खास्त हुई थी देश की पहली लोकतांत्रिक सरकार?
31 जुलाई 1959 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने संविधान के अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करते हुए केरल के निर्वाचित मुख्यमंत्री नंबूदरीपाद और उनकी मंत्रिपरिषद को बर्खास्त कर दिया. राज्य विधानसभा को भंग करने का आदेश दे दिया गया. यह फैसला कई महीनों से चल रहे विरोध-प्रदर्शनों और हिंसा के बाद लिया गया था. इससे एक ऐसी मिसाल कायम हुई, जिसमें गैर-कांग्रेस सरकारों के खिलाफ इस प्रावधान का इस्तेमाल आगे के दशकों में बार-बार किया गया. प्रधानमंत्री नेहरू ने शुरू में इस कदम को लेकर हिचक दिखाई थी (जैसा कि ब्रिटिश रिकॉर्ड से पता चलता है) लेकिन अंत में उन्होंने अपनी कैबिनेट की सलाह मानते हुए नंबूदरीपाद सरकार को हटाने पर सहमति दे दी. सरकार को हटाने का कारण कानून-व्यवस्था के बिगड़ने को बताया गया. हालांकि, आलोचकों का कहना था कि हिंसा जानबूझकर कराई गई थी, ताकि संवैधानिक हस्तक्षेप का बहाना बनाया जा सके.
अनुच्छेद-356 का इस्तेमाल
केरल की कम्युनिस्ट सरकार को हटाए जाने से वह मिसाल बनी जिसे बाद में “केरल मिसाल” कहा गया. इसका मतलब था राजनीतिक और वैचारिक विरोध के आधार पर चुनी हुई राज्य सरकार को हटाने के लिए अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल. इससे पहले यह अनुच्छेद पंजाब (1951) और पेप्सू (1953) में इस्तेमाल हो चुका था, लेकिन केरल का मामला पहली बार किसी कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ इसके प्रयोग का था. इसी से आगे चलकर इस संवैधानिक प्रावधान के राजनीतिक दुरुपयोग का रास्ता खुला. बाद के वर्षों में केंद्र में सत्ता में बैठी पार्टी को जो राज्य सरकारें असुविधाजनक लगीं, उनके खिलाफ अनुच्छेद 356 का बार-बार उपयोग किया गया, जिससे संविधान निर्माताओं द्वारा सोचे गए संघीय संतुलन (Federal Balance) पर गहरा असर पड़ा.
About the Author
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
December 14, 2025, 09:51 IST

5 hours ago
