जमीन पर बैठकर खाते थे मुगल बादशाह, कैसे सजता था दस्तरख्वान,पीते थे केवल गंगाजल

1 hour ago

ये बात तो सही है कि मुगल बादशाह खाने के बहुत शौकीन थे. उनकी शाही रसोई हमेशा मसालों और पकवानों से महकती रहती थी. उन्होंने भारतीय खाने में तमाम प्रयोग किए. ना जाने कितने नए व्यंजन दिए. लेकिन अगर आपको लगता है कि वो आजकल की तरह टेबल और कुर्सियों पर बैठकर खाना खाते थे. उनका दस्तरख्वान वहीं सजता था तो आप गलत हैं, क्योंकि वो हमेशा जमीन पर बैठकर ही खाते थे.

ज़्यादातर मुगल बादशाह जमीन पर बिछे कालीन, गद्दों और “दस्तरख़्वान” पर ही भोजन करते थे. मुगल बादशाहों के भोजन का तरीका बेहद औपचारिक, संपन्न और परंपरागत भारतीय-अरबी–फ़ारसी शैली का संगम था.

दस्तरख़्वान एक बड़ा, शक्तिशाली कपड़ा या कालीन होता था, जो रेशमी, मखमली या दमिश्क कपड़ा होता था. कभी कभी इसकी कढ़ाई सोने के धागे से होती थी. इसके नीचे मोटा कालीन होता था. शाही भोजन बिना दस्तरख़्वान के कभी नहीं परोसा जाता था.

सलमा हुसैन की किताब “द एम्परर्स टेबल – द आर्ट ऑफ मुगल कुजीन ” में बताया गया है, भोजन फर्श पर खाया जाता था. चमड़े से बनी और सफेद फ़ारसी केलिको से ढकी चादरें महंगे कालीनों की रक्षा करती थीं. इसे दस्तरख्वान कहा जाता था. राजा के लिए भोजन करने से पहले गरीबों के लिए भोजन का एक हिस्सा अलग रखना प्रथा थी. सम्राट अपने भोजन की शुरुआत और समाप्ति प्रार्थना से करते थे.

बादशाह कैसे बैठकर खाते थे

मुगल बादशाह ज़मीन पर ही बैठते थे, लेकिन यह आम आदमी वाले तरीके से नहीं, बल्कि टेक लगाकर मुलायम गद्दों पर बैठते थे, जिन पर कुशन लगे होते थे. भारतीय सभ्यता के प्रभाव से वे पैर मोड़कर बैठते थे. फारसी शैली में इसे “तहा बाज़दन” कहा गया है. औरंगज़ेब सबसे साधारण मुद्रा में बैठता था. वह कम गद्दे, कम सजावट वाले कक्ष में एक साधारण कालीन और छोटे कुशन पर बैठकर खाना खाता था.

मुगलों के महलों जैसे आगरा किला, फतेहपुर सीकरी, लाल किला, शालीमार बाग, नूरमहल में बादशाह का एक निजी भोजन क्षेत्र बना रहता था. हालांकि मुगल बादशाह जहां चाहें, वहीं अपना शाही दस्तरख़्वान लगवा देते थे. चाहे वह बाग़ में हो, संगमरमर के चबूतरे पर, किसी बरामदे या हवादार कक्ष में या फिर अपने निजी भोजन कक्ष में.

भोजन कैसे सजा होता था

उनका भोजन हमेशा समृद्ध, रंगीन और सोने-चांदी के पत्तों से सजा होता था. हर रसोइया अपनी ओर से कुछ अनोखा और बेहतरीन बनाने की पूरी कोशिश करता था. खाने की कुछ चीज़ें रत्नों और जवाहरातों जैसी दिखती थीं, फलों को फूलों और पत्तों के आकार में काटा जाता था, सूखे मेवों को बबूल के गोंद से चमकाकर पुलाव में डाला जाता था.

पकाने के लिए घी को रंगा और सुगंधित किया जाता था. दही सात रंगों में एक ही कटोरी में परोसा जाता था. पनीर को इसाम्बू की टोकरियों में परोसा जाता था. जहांगीर के शासनकाल में खाने के रंग और सजावट ने एक नया आयाम छुआ, क्योंकि नूरजहां कलात्मक थीं.

सम्राट के लिए रोज कई तरह के भोजन तैयार किए जाते थे. कुछ व्यंजन आधे पके हुए रखे जाते थे, ताकि सम्राट के मांगने पर उन्हें तुरन्त परोसा जा सके. उनके दस्तरख्वान में कई तरह के फल, अचार जरूर रखे होते थे. फलों से भूख बढ़ती थी, बीमारियां दूर रहती थीं और पाचन क्रिया भी अच्छी रहती थी. बादशाह की थाली केवल शाही खानसामा प्रमुख ही छूता था. हर थाली को खाने से पहले परखा जाता था ताकि ज़हरीले पदार्थ से बचाव हो सके.

जब पुर्तगाली आलू लेकर आए

मुगल काल के बाद के समय में पुर्तगालियों के आने के साथ आलू और मिर्च भी उनकी भोजन की सूची में शामिल किया गये. जहांगीर के बाद के काल में, शाही भोजन में बेहतरीन ढंग से तैयार किए गए आलू कई तरह से पकाए गए. शाहजहां के दस्तरख्वान पर तरह-तरह के क़ुरमा, रोटियां, कबाब और पुलाव के अलावा भरपूर मसालेदार भोजन होता था.

शाही दस्तरख्वान पर कई भारतीय और कुछ यूरोपीय व्यंजन भी परोसे जाते थे. समय के साथ शाही दस्तरख्वान स्थानीय और क्षेत्रीय मसालों और स्वादों के साथ अधिक से अधिक भारतीय होता गया.

सबसे शानदार मेज़ बलिंदिर शाह ज़फ़र की थी. उनकी मेज़ पर हर तरह का व्यंजन मौजूद था – तुर्किश प्रेस अफ़ग़ानी और भारतीय. मुगल सम्राटों ने पाक कला को काफी विकसित कर लिया था.

बादशाह किस जगह भोजन करते थे

दरबार में होने वाले नियमित भोज को छोड़कर सम्राट अपने हरम के एकांत में अकेले भोजन करते थे. किसी भी बाहरी व्यक्ति ने कभी किसी सम्राट को भोजन करते हुए नहीं देखा. हां एक बार हरम के हिजड़े ने पुर्तगाली पादरी फ्रायर सेबेस्टियन मैनरिक्स चुपके से शाहजहां को हरम में चुपचाप भोजन करते दिखाया, जहां शाहजहां नूरजहां के भाई आसफ खान के साथ भोजन कर रहे थे.

वैसे अकबर अक्सर ब्राह्मणों, सूफियों और विद्वानों के साथ बैठकर खाता लेकिन “सुफियाना खाना” अकेले ही खाता. जहांगीर पक्के तौर पर शान दिखाना पसंद करता था. शाहजहां परिवार के साथ भोजन करता था. बड़े जमावड़ों में वह तभी खाता था जबकि खास मेहमान आए हों. औरंगजेब अमूमन अकेले और साधारण भोजन करता था.

खाने के बाद कैसा पान चबाते थे

खाने के बाद पान जरूर चबाया जाता था. ये मुगल संस्कृति का खास अंग था. बादशाह जब खाने के बाद हाथ धो लेते थे तो उन्हें पान का बीड़ा दिया जाता था. पान के पत्तों को कपूर और गुलाब जल से रगड़ा जाता था. ग्यारह पत्तों से एक बीड़ा बनता था. सुपारी को चंदन के रस में उबाला जाता था. नींबू में केसर और गुलाब जल मिलाया जाता था. तांबूल चबाने के कई गुण थे.

क्या कभी मेज़ या ऊंची कुर्सियों पर खाते थे?

ज्यादा मुगल काल के हिस्से में ऐसा नहीं होता था. यूरोपीय शैली की मेज़-कुर्सी का उपयोग केवल मेहमानों के सामने दिखावे में या मन करने पर ही कभी-कभार होता था. शाही भोजन के समय बादशाह अमूमन हमेशा फर्श पर ही बैठते थे. शाहजहां ने यूरोपीय कुर्सियां मंगवाई थीं लेकिन केवल औपचारिक बैठकों के लिए भोजन के लिए नहीं.

गंगा का पानी पीने के लिए था मोटा बजट

पीने का पानी शाही घराने में खर्च का एक बड़ा मद था, क्योंकि मुगल बादशाह पानी के मामले में बहुत नखरेबाज़ थे. आमतौर पर केवल गंगा नदी से ही पीते थे, जिसे काफी दूर से लाना पड़ता था. अकबर ने इसे अमरता का पानी कहा था.

पानी सीलबंद घड़ों में लाया जाता था. औलदार-खाना नामक एक विशेष विभाग शाही घराने में पानी की आपूर्ति का प्रभारी था, अनुभवी जल-चखने वाले शाही दल का एक नियमित हिस्सा थे. शिकार पर भी बादशाहों के साथ जाते थे. खाना पकाने के लिए, यमुना और चिनाब नदी के पानी को गंगा नदी के थोड़े से पानी में मिलाया जाता था. बारिश के पानी को भी इकट्ठा करके रसोई में रखा जाता था.

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