देश की सियासत में ‘इतिहास’ को लेकर एक नई और बड़ी जंग छिड़ गई है. मोदी सरकार ने गांधी परिवार से पंडित जवाहर लाल नेहरू के वे सारे दस्तावेज वापस मांगें हैं, जिन्हें कभी सोनिया गांधी लेकर चली गई थीं. केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि पंडित नेहरू के दस्तावेज किसी परिवार की निजी जागीर नहीं, बल्कि देश की संपत्ति हैं. उन्होंने एक्स पर खुलासा किया कि गांधी परिवार ने साल 2008 में नेहरू से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजों के 51 बक्से प्रधानमंत्री म्यूजियम और लाइब्रेसी (PMML, जो पहले NMML था) से वापस ले लिए थे. अब सरकार ने उन बक्सों को वापस मांगा है. संस्कृति मंत्री ने सीधे शब्दों में पूछा है- आखिर इन बक्सों में ऐसा क्या है, जिसे देश से छिपाया जा रहा है?
‘लापता’ नहीं, ‘कब्जे’ में हैं दस्तावेज
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (X) पर एक विस्तृत पोस्ट में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उन खबरों का खंडन किया जिनमें कहा जा रहा था कि नेहरू पेपर्स PMML से ‘लापता’ हो गए हैं. शेखावत ने स्पष्ट किया कि लापता शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी चीज की मौजूदगी का स्थान अज्ञात हो. लेकिन इस मामले में सरकार को और देश को अच्छे से पता है कि वे दस्तावेज कहां और किसके पास हैं. शेखावत ने लिखा, नेहरू पेपर्स लापता नहीं हैं. यह ज्ञात है कि वे कहां और किसके अधिकार में हैं. जवाहरलाल नेहरू जी से जुड़े कागजात वाले 51 बक्सों को गांधी परिवार ने 2008 में PMML से वापस ले लिया था. यह बयान साफ करता है कि यूपीए सरकार के दौरान, जब केंद्र में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और सोनिया गांधी यूपीए अध्यक्ष थीं, तब एक प्रक्रिया के तहत ये दस्तावेज सरकारी रिकॉर्ड से निकालकर परिवार के पास चले गए थे.
जनवरी और जुलाई में भेजी गई चिट्ठियां, पर कोई जवाब नहीं
इस विवाद का सबसे अहम पहलू यह है कि सरकार अब चुप बैठने के मूड में नहीं है. संस्कृति मंत्री ने खुलासा किया कि PMML प्रशासन ने इन दस्तावेजों को वापस हासिल करने के लिए गांधी परिवार से कई बार संपर्क किया है. वर्ष 2025 में ही दो बार- पहले जनवरी और फिर जुलाई में, सोनिया गांधी और परिवार को आधिकारिक पत्र भेजे गए. इन पत्रों में आग्रह किया गया कि वे ऐतिहासिक दस्तावेज, जो शोध और इतिहास के नजरिए से बेहद अहम हैं, उन्हें वापस संग्रहालय को सौंप दें. लेकिन, सरकार के मुताबिक, इन पत्रों का कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला और न ही दस्तावेज वापस आए. दस्तावेजों को वापस न करने के लिए जो तर्क दिए जा रहे हैं, उन्हें सरकार ने असंगत और अस्वीकार्य करार दिया है.
सोनिया गांधी से सीधा सवाल: क्या छिपा रही हैं आप?
गजेंद्र सिंह शेखावत ने कूटनीतिक भाषा का लिहाज छोड़ते हुए सीधे सोनिया गांधी को कटघरे में खड़ा किया है. उन्होंने पूछा, “मैं आदरपूर्वक श्रीमती सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं कि क्या छिपाया जा रहा है? यह सवाल सियासी गलियारों में भूचाल लाने वाला है. बीजेपी का तर्क यह है कि पंडित नेहरू केवल कांग्रेस के नेता या गांधी परिवार के पूर्वज नहीं थे, वे भारत के प्रधानमंत्री थे. उनके कार्यकाल के दौरान लिए गए फैसले, विदेशी नेताओं के साथ उनका पत्राचार और उस दौर की घटनाएं- ये सब भारत के इतिहास का हिस्सा हैं. इसे किसी प्राइवेट लॉकर या बंद कमरे में रखना इतिहास के साथ नाइंसाफी है.
शेखावत ने कहा, ये निजी पारिवारिक दस्तावेज तो बिल्कुल भी नहीं हैं, ये भारत के प्रथम प्रधानमंत्री से जुड़े महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अभिलेख हैं. ऐसे दस्तावेज सार्वजनिक अभिलेखागार (Public Archives) में होने चाहिए, किसी बंद कमरे में नहीं.
51 बक्सों का रहस्य: इतिहास को ‘फिल्टर’ करने की कोशिश?
सरकार के इस कदम ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है. सवाल उठ रहे हैं कि आखिर उन 51 बक्सों में ऐसा क्या है जो गांधी परिवार उन्हें सार्वजनिक नहीं करना चाहता? क्या उनमें 1962 के चीन युद्ध, कश्मीर मुद्दे, या आजादी के बाद के आंतरिक राजनीतिक संघर्षों से जुड़े कुछ ऐसे सच दफन हैं जो बाहर आने पर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं? शेखावत ने अपने बयान में इसी ओर इशारा करते हुए कहा, एक तरफ हमें उस दौर की गलतियों पर चर्चा न करने को कहा जाता है, दूसरी ओर उनसे जुड़े मूल दस्तावेज सार्वजनिक पहुंच से बाहर रखे जा रहे हैं, जबकि उनके माध्यम से तथ्यपरक चर्चा हो सकती है. सरकार का आरोप है कि इतिहास को चुनकर पेश करने की कोशिश की जा रही है. जो दस्तावेज परिवार या पार्टी की छवि के अनुकूल हैं, उन्हें दिखाया जाता है, और जो दस्तावेज असहज सवाल खड़े कर सकते हैं, उन्हें 51 बक्सों में कैद कर लिया गया है.
शोधकर्ताओं और छात्रों के अधिकार का हनन
संस्कृति मंत्री ने इस मुद्दे को केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि अकादमिक और लोकतांत्रिक अधिकारों का मुद्दा भी बताया. उनका कहना है कि विद्वानों, शोधकर्ताओं (Researchers), छात्रों और आम नागरिकों को यह जानने का पूरा हक है कि उनके पहले प्रधानमंत्री के दौर में क्या हुआ था.
जब तक मूल दस्तावेज (Original Documents) उपलब्ध नहीं होंगे, तब तक इतिहास का सही और संतुलित मूल्यांकन नहीं हो सकता. शेखावत ने जोर देकर कहा, “जवाहरलाल नेहरू जी के जीवन और दौर को समझने के लिए सत्य पर आधारित संतुलित दृष्टिकोण विकसित हो सके, इसके लिए इन दस्तावेजों की वापसी जरूरी है.”
लोकतंत्र में पारदर्शिता ही सब कुछ
अपने बयान के अंत में गजेंद्र सिंह शेखावत ने गांधी परिवार को उनकी “नैतिक जिम्मेदारी” याद दिलाई. उन्होंने लिखा, “यह कोई साधारण मामला नहीं है. इतिहास को चुनकर नहीं लिखा जा सकता. लोकतंत्र की बुनियाद पारदर्शिता है और अभिलेख उपलब्ध कराना नैतिक दायित्व है, जिसे निभाना श्रीमती गांधी और उनके ‘परिवार’ की भी जिम्मेदारी है.”
अब आगे क्या होगा?
सरकार के इस आक्रामक रुख से साफ है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा और गरमाएगा. यह अब केवल एक संग्रहालय और एक परिवार के बीच का पत्र-व्यवहार नहीं रह गया है. सरकार ने इसे ‘राष्ट्रीय धरोहर’ बनाम ‘निजी संपत्ति’ की लड़ाई बना दिया है. क्या सोनिया गांधी उन 51 बक्सों को वापस करेंगी? या फिर यह मामला कानूनी लड़ाई की ओर बढ़ेगा? फिलहाल, गेंद गांधी परिवार के पाले में है, लेकिन सरकार ने साफ कर दिया है कि वह इतिहास के उन पन्नों को वापस लेकर रहेगी जो 2008 में सरकारी फाइलों से निकलकर एक परिवार की अलमारियों में बंद हो गए थे.

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