बदन पर कपड़ा तक न था... मेढ़क-टिड्डे खाए, यूरिन पीकर 71 दिन जिंदा रहा ये शख्स

51 minutes ago

Weired story: नौकरी आज भी युवाओं की पहली पसंद है. जॉब का नोटिफिकेशन (विज्ञापन) हो या उससे जुड़ी कोई भी चीज, युवाओं के बीच खूब पॉपुलर होती है. 'जब नौकरी मिलेगी तो क्या होगा...' किसी फिल्म का गाना भी बहुत मशहूर हुआ था. कुछ ऐसे ही नई नौकरी के पहले दिन के ख्यालों में डूबा रिकी बढ़िया म्यूजिक बजाकर अच्छाखासा गाड़ी ड्राइव करके नई कंपनी ज्वाइन करने जा रहा था, अचानक उसके साथ ऐसी घटना घटती है कि ढाई महीनों तक लापता रहा एक हट्टाकट्टा नौजवान हाड़मांस का पुतला बनकर दुनिया के लिए एक खबर बन जाता है.  

रिकी के साथ क्या हुआ?

रिकी के साथ क्या हुआ था ये बताएं उससे पहले उसकी हालत जान लीजिए क्योंकि जब होश आया तब वो रेगिस्तानी कब्र पर था. बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था. हालत बावलों जैसी हो रखी थी. वो अपने साथ घटी घटनाओं की कड़ियां भी नहीं जोड़ पा रहा था. उसे तेज भूख लगी थी. चारो ओंर रेत थी, एक पेड़ भी न था जिसके पत्तियां चबाकर वो खुद को दिलासा देता. ऐसे नारकीय हालातों में वो 71 दिन मेढ़क-सांप खाकर जिंदा रहा. जब कुछ लोगों की नजर उसपर पड़ी तो उसकी जान में जान आई.

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वो 'मनहूस' दिन!

रिकी मेगी ऑस्ट्रेलियाई के दूसरे छोर पर नई शुरुआत करने जा रहे थे, तभी उन्होंने एक सहयात्री को लिफ्ट देने का फैसला किया. किसी की मदद करने का ख्याल जल्द ही बुरे सपने में बदल गया क्योंकि उन्हें नशीला पदार्थ देकर दुनिया के सबसे खतरनारक परिस्थितियों वाले इलाके में मरने के लिए छोड़ दिया गया. ये वो गुत्थी है जो अबतक अनसुलझी है. जो ऑस्ट्रेलिया के सबसे विचित्र और विवादास्पद अनसुलझे मामलों में से एक है.

अनसुलझा किस्सा

'द मिरर' की रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना का खुलासा तब हुआ जब 2006 में एक दुर्गम इलाके से गुजर रहे मवेशी फार्म के मजदूरों के एक समूह ने एक गंभीर रूप से कुपोषित शख्स को उजाड़ निर्जन रेगिस्तान में अकेला भटकते देखा. वो चलता-फिरता कंकाल बन चुका था. यह रिकी मेगी था, जो करीब 10 हफ्ते पहले नई नौकरी के लिए ब्रिस्बेन, क्वींसलैंड से पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पोर्ट हेडलैंड जाते समय बिना किसी सुराग के लापता हो गया था.

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रिकी अपने समय का मशहूर घुमक्कड़ था. उसने पोर्ट हेडलैंड को जिंदगी की नई शुरुआत के एक मौके के रूप में देखा. नया मिशन ज्वाइन करने से पहले उन्हें 3000 किलोमीटर के खतरनाक आउटबैक से होकर गुजरना था. जिसे ऑस्ट्रेलिया के सबसे सुनसान इलाकों में से एक माना जाता है. बेफिक्र रिकी अपनी भरोसेमंद मित्सुबिशी चैलेंजर के साथ ऐतिहासिक यात्रा पर निकले. ये पूरा सफर उन्हें करीब दो से तीन दिनों में पूरा करना था. रिकी को कभी पूरी तरह से ये यकीन नहीं हुआ कि आखिरकार उनके साथ क्या हुआ था?

अबूझ पहेली

शुरुआत में, उन्होंने दावा किया कि उनकी गाड़ी में खराबी आ गई थी. बाद में उन्होंने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने एक आदिवासी सहयात्री को गाड़ी में बिठाकर लिफ्ट दी थी. जिसने उनके सॉफ्ट ड्रिंक में एक नशीला पदार्थ मिला दिया था, जिससे वे भ्रमित और फंस गए और अपने होशोहवास गंवा बैठे.

रिकी ने 2010 में लेखक और निर्देशक ग्रेग मैकलीन के साथ मिलकर लिखे अपने संस्मरण में एक बार फिर अपने साथ घटी उस घटना का विवरण बदल दिया. मैकलीन को 2005 में आई उनकी हॉरर फिल्म वुल्फ क्रीक के लिए पहचान मिली, जिसमें सीरियल किलर मिक टेलर उसी आउटबैक में दिखाया गया था.

अपने संस्मरण में, उन्होंने लिखा - 'नंगे पांव अकेले एक आदमी के लिए यह कठिन और वीरान इलाका था. फिर भी मैंने चलना शुरू किया. मैंने सोचा कि जितना ज़्यादा चलूंगा, मुझे ढूंढ़ने के लिए निकले लोगों को उतनी कम दूरी तय करनी पड़ेगी. जिंदा रहने के लिए मैंने सांपों, चींटियों, छिपकलियां, मेंढक और टिड्डों को खाया. छोटे-छोटे पानी के कुंड मिले तो वहां पानी पिया. छोटे-छोटे जीवों को वो कच्चा खा जाता था. जब प्यास लगती तब अपना यूरिन पीकर या सुबह की ओस इकट्ठा करके गला तर करता था'.

एक बार उन्होंने आशंका जताई कि या तो उन्हें नशीला ड्रिंक दिया गया या फिर नशीला इंजेक्शन लगाया गया. होश आया तो वो एक तंबू में थे, जहां उन्हें पानी दिया गया. मौत के मुंह से लौटने की यात्रा के दौरान उन्होंने 10 दिनों तक 40 डिग्री सेल्सियस से भी ज़्यादा तापमान वाले भीषण तापमान में पैदल यात्रा की, कई बार गर्मी से थककर बेहोश हो गए.

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