पटना. वर्ष 1997 में पटना उच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा सहाय की याचिका पर सुनवाई के दौरान बिहार की स्थिति को “जंगलराज” करार दिया. जस्टिस वी.पी. आनंद और धर्मपाल सिन्हा की बेंच ने कहा, “बिहार में सरकार नहीं, भ्रष्ट अफसर और अपराधी राज्य चला रहे हैं.” यह टिप्पणी उस समय की अराजकता, अपराध और भ्रष्टाचार की स्थिति को बताने के लिए काफी है जब लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल में कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी. चारा घोटाले, हत्याओं और अपहरण की घटनाओं ने बिहार को बदनाम किया. आईएएस अधिकारी की भीड़तंत्र द्वारा की गई हत्या और तत्कालीन पत्रकारों पर हमले ने स्थिति को और बदतर किया. इसको पटना हाई कोर्ट ने अपनी सख्त टिप्पणी के जरिये ”जंगलराज” जैसे शब्द से रेखांकित किया था जो आज भी बिहार की राजनीति में गूंजती रहती है.
दरअसल, पटना हाईकोर्ट ने 1990 से 2005 तक बिहार में लालू-राबड़ी शासनकाल को “जंगलराज” की संज्ञा 1997 में दी थी. लेकिन, पटना के मनेर से राजद विधायक भाई वीरेंद्र के कथित वायरल ऑडियो के आधार पर एक बार फिर ”बिहार में जंगलराज की दस्तक” वाली बात एनडीए के दल बार-बार दोहरा रहे हैं. वह यह बताना चाह रहे हैं कि अगर बिहार में सत्ता बदली हुई तो प्रदेश फिर उसी ”अराजक दौर” में चला जाएगा जब सूबे में ”जंगलराज” की स्थिति थी. ऐसे में आइये जानते हैं कि वो मुख्य घटनाएं कौन सी हैं जिसको लेकर ”बिहार में जंगलराज” का नैरेटिव बार-बार गूंजता है और इसके आधार पर राजनीति भी परवान चढ़ती है.
सत्ता की क्रूरता का उदाहरण चंपा बिस्वास बलात्कार कांड
1998-99 में आईएएस अधिकारी बी.बी. बिस्वास ने आरोप लगाया कि उनकी पत्नी चंपा, मां, भाभी, भतीजी और घरेलू कर्मचारियों के साथ राजद की सहयोगी हेमलता यादव के बेटे मृत्युंजय यादव और उनके साथियों ने दो साल तक सुनियोजित तरीके से बलात्कार किया. चंपा बिस्वास की याचिका ने राष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश पैदा किया. लालू प्रसाद यादव का कथित जवाब, “जाने दो, जिंदा तो हो,” ने सत्ता की असंवेदनशीलता को उजागर किया था. वर्ष 2002 में हेमलता को दोषी ठहराया गया, लेकिन जमानत और चंपा बिस्वास की भतीजी के लापता होने से न्याय अधूरा रहा. यह कांड जंगलराज में महिलाओं की असुरक्षा का प्रतीक बना.
शिल्पी जैन और गौतम हत्याकांड में लालू यादव के साले साधु यादव का नाम आया था.
शिल्पी जैन-गौतम सिंह हत्याकांड का रहस्य और लीपापोती
3 जुलाई 1999 को पटना में विधायक आवास के पास एक कार में मॉडल शिल्पी जैन और युवा नेता गौतम सिंह के अर्ध-नग्न शव मिले थे. इस कार का संबंध राबड़ी देवी के देवर साधु यादव से था. पटना पुलिस ने पोस्टमार्टम से पहले इसे आत्महत्या घोषित कर दिया और गौतम का अंतिम संस्कार कुछ ही घंटों में कर दिया गया. सीबीआई जांच में वीर्य के अंश मिले जो बलात्कार की आशंका को जाहिर कर रहे थे. लेकिन, साधु यादव ने डीएनए टेस्ट देने से इनकार किया और मामला जहर से आत्महत्या मानकर बंद हो गया. शिल्पी जैन का परिवार आज भी असंतुष्ट है और ‘अन्याय का दंश’ झेल रहा है. यह घटना जंगलराज में जांच की नाकामी और सत्ता के दुरुपयोग का प्रतीक बनी थी.
बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के आतंक का ‘काला दौर’
सीवान के राजद सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन अपहरण, जबरन वसूली और हत्याओं के लिए कुख्यात थे. मार्च 1999 में भाकपा-माले कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता का अपहरण कर उनकी हत्या की गई जिसके लिए शहाबुद्दीन को आजीवन कारावास मिला. वर्ष 1997 में एक छात्र सभा में सामूहिक गोलीबारी की साजिश में चंद्रशेखर प्रसाद की हत्या हुई. पत्रकार राजदेव रंजन ने उस दौर में शहाबुद्दीन की गतिविधियों पर लिखा तो उनकी भी हत्या कर दी गई. शहाबुद्दीन का आतंक और सत्ता का संरक्षण जंगलराज की पहचान बन गया था. बाद में चंदा बाबू के दो बेटों को तेजाब से नहला कर मार देने का कांड भी लालू-राबड़ी के शासनकाल में हुआ था. गवाह रहे तीसरे बेटे की भी कथित तौर पर हत्या को भी शहाबुद्दीन की साजिश कहा गया था.
चंदा बाबू के दो बेटों को तेजाब से नहला कर मारने का आरोप शहाबुद्दीन पर लगा था.
जी कृष्णैया हत्याकांड में दिखा था अराजक भीड़ का उन्माद
5 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार जुलूस के दौरान गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया की हत्या कर दी गई. तब आनंद मोहन सिंह के भड़काऊ भाषणों से उन्मादित हजारों की भीड़ ने उनकी लाल बत्ती वाली कार रोकी. अपने अंगरक्षक को बचाने के लिए रुकने पर भीड़ ने जी कृष्णैया को घसीटकर बाहर निकाला, पत्थरों और ईंटों से पीटा और सिर में गोली मार दी. यह घटना जंगलराज में कानून के पतन और भीड़तंत्र की भयावहता को बताती है.
डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड भी लालू यादव के शासनकाल में हुआ था.
बिहार में अपहरण उद्योग, सामाजिक-आर्थिक संकट का दौर
2001-2005 के बीच बिहार में 1,778 अपहरण की घटनाएं दर्ज हुईं जिसमें डॉक्टरों और व्यापारियों को निशाना बनाया गया. 2002 में पटना के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. भरत सिंह का अपहरण हुआ जिसके बाद विरोध प्रदर्शन हुए. ये घटनाएं जंगलराज में सामाजिक और आर्थिक जीवन को प्रभावित करने वाली थीं. अपहरण उद्योग ने बिहार से निवेश और व्यापार को भगा दिया जिससे विकास ठप हो गया.
लालू यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल को पटना हाईकोर्ट ने अराजक और जंगलराज कहा था.
आईएएस अधिकारी को धमकी दी, दिखी सत्ता की दबंगई
2001 में साधु यादव पर परिवहन आयुक्त एन.के. सिन्हा के कार्यालय में घुसकर बंदूक की नोंक पर स्थानांतरण आदेश पर हस्ताक्षर कराने का आरोप लगा. 2022 में उन्हें तीन साल की सजा हुई, लेकिन जमानत पर रिहा हो गए. यह घटना सत्ता के दुरुपयोग और प्रशासन पर दबाव का उदाहरण थी.
बिहार में बाढ़ राहत घोटाला, बड़ी लूट का था उदाहरण
2004 में साधु यादव 17 करोड़ रुपये के बाढ़ राहत घोटाले में शामिल थे. मुख्य अभियुक्त से पैसे लेने और संदिग्ध वाहन लेन-देन के आरोपों ने उनके अराजक आचरण को उजागर किया. इस घोटाले ने बिहार की बदहाली को और गहरा दिया.
लालू यादव की बेटी की शादी में कार शो रूम कांड, लूटपाट
साधु यादव पर लालू की बेटी रोहिणी आचार्य की शादी के बहाने पटना के शोरूम से कारें, गहने और फर्नीचर लूटने का आरोप लगा. यह घटना जंगलराज में सत्ता के दुरुपयोग और लूट की संस्कृति को जाहिर करती है.
चारा घोटाला-भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा
चारा घोटाले में 950 करोड़ रुपये की लूट हुई जिसमें लालू प्रसाद यादव मुख्य अभियुक्त थे. सरकारी अधिकारियों ने चारा, दवाइयां और “जानवरों के लिए ऑक्सीजन” जैसे फर्जी बिल बनाए. लालू यादव को जेल हुई, लेकिन उन्होंने पत्नी राबड़ी को मुख्यमंत्री बनाकर सत्ता में कायम रहीं. यह घोटाला जंगलराज में भ्रष्टाचार को व्यवस्था का हिस्सा बनने का प्रतीक था.
सुशील मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी ने मिलकर बिहार में जंगलराज के खिलाफ संघर्ष किया.
जंगलराज का अंत: सुशील मोदी और नीतीश की भूमिका
सुशील मोदी और नीतीश कुमार ने 2005 में जंगलराज को खत्म करने के लिए संघर्ष किया. बूथ लूट के बावजूद उनकी जीत ने बिहार को नई दिशा दी. हालांकि, जंगलराज की छवि आज भी राजद पर सवाल उठाती है.जंगलराज ने बिहार की सामाजिक-आर्थिक संरचना को तोड़ दिया था. अपराध और भ्रष्टाचार ने निवेशकों का पलायन कराया जिससे बिहार विकास में पिछड़ गया. यह दौर आज भी राजद की छवि पर दाग है और बिहार की सियासत में बहस, विमर्श और राजनीतिक हमले का विषय बना हुआ है.