Last Updated:December 27, 2025, 08:29 IST
India-Bangladesh Relation: भारत एक लोकतांत्रिक देश है और ग्लोबल लेवल पर डेमोक्रेसी का बड़ा पैरोकार भी. दुनिया में कहीं भी और जब भी लोकतांत्रिक मूल्यों का गला घोंटा जाता है तो भारत उन चंद देशों में होता है जो मुखर होकर आवाज उठाता है. बांग्लादेश में लोकतंत्र इन दिनों ICU में है. अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा बेलगाम हो चुकी है. जिस मोहम्मद यूनुस से काफी उम्मीदें थीं, वे कट्टरपंथियों के हिमायती निकले.
India-Bangladesh Relation: मोहम्मद यूनुस के भारत विरोधी रुख से बांग्लादेश को लॉन्ग टर्म में फायदा के बजाय नुकसान ही उठाना पड़ेगा. (फोटो: Reuters)India-Bangladesh Relation: बांग्लादेश में फरवरी 2026 में आमचुनाव होने हैं. शेख हसीना सरकार की तख्तापलट के बाद देश में पहली बार चुनाव होने वाला है. उससे पहले नेताओं की हत्या का सिलसिला शुरू हो गया है. अल्पसंख्यकों खासकर हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा और लिंचिंग की घटनाएं लगातार हो रही हैं. इकोनोमिक्स में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले मोहम्मद यूनुस ने जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की कमान संभाली तो आवाम में उम्मीद जगी थी कि सबकुछ ठीक हो जाएगा. यूनुस के आगमन से बांग्लादेश में तीन चीजें खासतौर पर हुई हैं, जिसने पड़ोसी देश को अंधेरे की तरफ धकेल दिया है. पहला, कट्टरपंथियों का उभार और अल्पसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा. दूसरा, भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने का चलन और तीसरा बांग्लादेश की इकोनोमी गर्त में चली गई, जो शेख हसीना के कार्यकाल में कुलांचे मार रही थी. मोहम्मद यूनुस के कमान संभालने के बाद से भारत विरोधी मुहिम को हवा देनी शुरू हो गई. धीरे-धीरे इस चिंगाड़ी ने भयानक आग का रूप धारण कर लिया है. शेख हसीना सरकार के पतन के बाद ढाका के पॉलिटिकल कॉरिडोर में चीन और पाकिस्तान की चहलकदमी बढ़ गई है. भारत विरोध में मोहम्मद यूनुस उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जहां बर्बादी के अलावा कुछ नहीं. पाकिस्तान अपने दशकों पुराने मंसूबों को अंजाम देने में जुट गया है, वहीं चीन भारत के खिलाफ बफर बनाने की कोशिश में है.
बांग्लादेश तीन तरफ से भारत से घिरा है. ढाका की इकोनोमी का अधिकांश हिस्सा नई दिल्ली पर निर्भर है, पर इसके बावजूद मोहम्मद यूनुस अलग रास्ता अख्तियार कर लिया है. वे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का मोहरा बनते जा रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में दशकों बाद पाकिस्तानी आर्मी के कमांडर और ISI के अफसरों का बांग्लादेश आना-जाना बढ़ा है. बांग्लादेश की भौगोलिक और आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वह भारत के बिना न तो सांस ले सकता है और न ही सर्वाइव कर सकता है. एक्सपर्ट भी इस बात को मानते हैं. बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों और बढ़ते उग्रवाद को लेकर भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव की आशंका गहराती जा रही है. विदेशी मामलों के विशेषज्ञ वाइल अव्वाद ने साफ शब्दों में कहा है कि बांग्लादेश भारत के बिना सर्वाइव नहीं कर सकता, लेकिन मौजूदा दौर में वहां कट्टरपंथी ताकतें सड़कों पर हावी होती दिख रही हैं, जो दोनों देशों के रिश्तों को नुकसान पहुंचा रही हैं.
बांग्लादेश: 2024 में क्या-क्या हुआ था?
2 जुलाई 2024: बांग्लादेश की राजधानी ढाका में सिविल सेवा भर्ती में लागू कोटा प्रणाली को रद्द करने की मांग को लेकर प्रदर्शन हुए. इस कोटा प्रणाली के तहत 56 प्रतिशत नौकरियां अलग-अलग वर्गों के लिए आरक्षित हैं. छात्रों का कहना है कि यह व्यवस्था भेदभावपूर्ण है. ये प्रदर्शन जून में हाई कोर्ट द्वारा कोटा प्रणाली को दोबारा लागू करने के बाद शुरू हुए. कोर्ट ने 2018 में सरकार के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें कोटा खत्म किया गया था. सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन छात्र फैसले का इंतजार करने को तैयार नहीं थे और नए सरकारी आदेश से कोटा रद्द करने की मांग करने लगे. 10–12 जुलाई 2024: छात्रों ने ढाका के प्रमुख चौराहों और शहर से बाहर हाईवे पर धरना दिया. इससे सड़कों, हाईवे और रेल यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ. 14 जुलाई 2024: प्रधानमंत्री शेख हसीना ने युद्ध सेनानियों के बच्चों और पोते-पोतियों के लिए कोटा खत्म करने की मांग पर छात्रों की आलोचना की. इससे छात्र नाराज हो गए. 15 जुलाई 2024: सत्तारूढ़ अवामी लीग के एक वरिष्ठ नेता ने मीडिया से कहा कि पार्टी का छात्र संगठन बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) छात्रों को माकूल जवाब देगा. 15 जुलाई 2024: बीसीएल कार्यकर्ताओं ने ढाका विश्वविद्यालय और ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोटा विरोधी छात्रों पर हमला किया, यहां तक कि घायल छात्रों को भी नहीं छोड़ा. झड़पों में 300 से ज्यादा लोग घायल हुए. 16 जुलाई 2024: हिंसा फैल गई और ढाका, चटगांव और उत्तर के रंगपुर में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई. आम छात्रों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए बीसीएल को ढाका और राजशाही विश्वविद्यालयों से बाहर खदेड़ दिया और छात्रावासों में उनके नेताओं के कमरों में तोड़फोड़ की 17 जुलाई 2024: छात्रों ने मारे गए लोगों के लिए प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने तीन विश्वविद्यालयों में उनकी सभाओं पर हमला किया. विश्वविद्यालय प्रशासन ने कैंपस बंद कर दिए और छात्रों को हॉस्टल खाली करने का आदेश दिया. 17 जुलाई 2024: प्रधानमंत्री हसीना ने टीवी पर देश को संबोधित किया. उन्होंने मौतों पर दुख जताया और न्यायिक जांच की घोषणा की. कोटा के मुद्दे पर उन्होंने छात्रों से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने को कहा. इसके जवाब में छात्रों ने अगले दिन देशभर में यातायात पूरी तरह बंद करने का आह्वान किया. 18 जुलाई 2024: पूर्ण बंद के दौरान ढाका और 19 अन्य जिलों में भारी हिंसा हुई. पुलिस और अज्ञात लोगों की फायरिंग में कम से कम 29 लोगों की मौत हुई. हजारों छात्रों के साथ अन्य लोग भी सड़कों पर उतरे. गाड़ियां, बसें और ढाका का सरकारी टीवी केंद्र जला दिया गया. मेट्रो रेल सेवा अनिश्चितकाल के लिए बंद हो गई. 19 जुलाई 2024: प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पों में कम से कम 66 लोगों की मौत हुई. नरसिंदी जिले में एक जेल से करीब 900 कैदियों को छुड़ा लिया गया और हथियार लूट लिए गए. सरकार ने रात का कर्फ्यू लगाया और सेना तैनात की. 20 जुलाई 2024: कर्फ्यू के पहले दिन कम से कम 21 लोगों की मौत हुई. सरकार ने दो दिन की सामान्य छुट्टी घोषित की और आंदोलन के कुछ नेताओं व विपक्षी बीएनपी नेताओं को हिरासत में लिया गया. 21 जुलाई 2024: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए ज्यादातर कोटे खत्म कर दिए और 93 प्रतिशत पद सामान्य वर्ग के लिए खोल दिए. कर्फ्यू जारी रहा और सात और लोगों की मौत हुई. 23 जुलाई 2024: सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार नई कोटा व्यवस्था लागू की. लेकिन छात्र नेताओं ने कहा कि यह कदम बहुत देर से उठाया गया और बहुत ज्यादा जानें जा चुकी हैं. डेली स्टार अखबार के अनुसार मृतकों की संख्या 146 हो गई. विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां जारी रहीं. 26 जुलाई 2024: पुलिस की डिटेक्टिव ब्रांच ने छात्र आंदोलन के तीन आयोजकों को हिरासत में लिया. बीएनपी ने सरकार हटाने की मांग की. 27 जुलाई 2024: ढाका में 14 पश्चिमी देशों के दूतावासों ने संयुक्त पत्र जारी कर कानून लागू करने वालों को जवाबदेह ठहराने की मांग की. दो और छात्र नेता हिरासत में लिए गए. छात्रों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी जारी रही. 28 जुलाई 2024: डिटेक्टिव ब्रांच की हिरासत में छह छात्र नेताओं ने आंदोलन खत्म करने का बयान पढ़ा. लेकिन उनके साथियों ने आंदोलन जारी रखने की बात कही और अगले दिन फिर प्रदर्शन शुरू हो गए. 31 जुलाई 2024: सरकार ने हिंसा में मारे गए लोगों की याद में शोक दिवस मनाया, लेकिन छात्रों ने इसे खारिज कर दिया. समर्थकों ने सोशल मीडिया प्रोफाइल लाल रंग की कर ली. 1 अगस्त 2024: सरकार ने जमात-ए-इस्लामी और उसके छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिबिर पर प्रतिबंध लगा दिया. इन्हें आतंकवादी संगठन बताया गया. आंदोलन के छह आयोजकों को रिहा कर दिया गया. 3 अगस्त 2024: ढाका की एक बड़ी रैली में छात्रों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे और सभी को स्वीकार्य व्यक्ति के नेतृत्व में “राष्ट्रीय सरकार” बनाने की मांग की. हसीना ने बातचीत की पेशकश की, लेकिन छात्रों ने ठुकरा दिया. 4 अगस्त 2024: ढाका और 21 अन्य जिलों में भारी झड़पें हुईं. मीडिया के अनुसार कम से कम 90 लोगों की मौत हुई. मृतकों में 13 पुलिसकर्मी भी शामिल थे. सरकार ने देशभर में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया. छात्रों ने सरकार गिराने के लिए देशभर से ढाका मार्च का ऐलान किया. सेना और पुलिस ने कर्फ्यू न तोड़ने की अपील की. 5 अगस्त 2024: ढाका और आसपास के इलाकों से हजारों लोग कर्फ्यू तोड़कर राजधानी के केंद्र में पहुंचे. सेना ने पहले रोकने की कोशिश की, फिर लोगों को आगे बढ़ने दिया. भीड़ ने प्रधानमंत्री हसीना के सरकारी आवास में घुसपैठ कर ली.कट्टरपंथियों का बोलबाला
न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में अव्वाद ने कहा कि बांग्लादेश में जिस तरह से कट्टरपंथ और हिंसक घटनाएं बढ़ रही हैं, उससे न केवल आंतरिक शांति प्रभावित हो रही है, बल्कि भारत-बांग्लादेश के दशकों पुराने मैत्रीपूर्ण संबंध भी तनाव में हैं. उन्होंने कहा, ‘बांग्लादेश भारत के बिना नहीं टिक सकता, लेकिन यह वह दौर है जब हम देख रहे हैं कि वहां उग्रवादी ताकतें नियंत्रण संभाल रही हैं और सड़कों पर कट्टरता हावी हो रही है.’ अव्वाद ने इस अशांति को भारत विरोधी माहौल से जोड़ते हुए कहा कि बांग्लादेश के भीतर कुछ तत्व जानबूझकर भारत और बांग्लादेश के बीच दरार पैदा करना चाहते हैं. उनके मुताबिक, बांग्लादेश के अंदर ऐसे कुछ गुट हैं जो भारत-बांग्लादेश के रिश्तों को खराब करना चाहते हैं. उन्होंने जानबूझकर ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया है, जिससे भारत विरोधी भावना बढ़ रही है. उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार इन घटनाओं को अलग-थलग बताकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती. अव्वाद ने आगे कहा कि सरकार यह नहीं कह सकती कि यह केवल एक isolated incident है. उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों. उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंसा पर सख्त कार्रवाई और दोषियों के खिलाफ ठोस कदम ही हालात को संभाल सकते हैं.
बांग्लादेश में हिंसा को देखते हुए सुरक्षाबलों की व्यापक पैमाने पर तैनाती की गई है. (फोटो: Reuters)
अल्पसंख्यकों पर अटैक क्यों?
अल्पसंख्यकों और धार्मिक स्थलों पर हमलों को लेकर चिंता जताते हुए अव्वाद ने कहा कि किसी भी सूरत में पूजा स्थलों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि चाहे वह ईसाई हों, हिंदू हों या अल्पसंख्यक मुसलमान किसी भी धर्म के पूजा स्थलों पर हमला स्वीकार्य नहीं है. उनका मानना है कि बांग्लादेश सरकार को न केवल अपने नागरिकों को सुरक्षा का भरोसा देना होगा, बल्कि भारत को भी यह आश्वासन देना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं होंगी. अव्वाद के ये बयान ऐसे समय आए हैं, जब बांग्लादेश में हाल के दिनों में भीड़ द्वारा की गई हिंसा की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें हिंदू युवकों को निशाना बनाया गया. बांग्लादेश के प्रतिष्ठित अखबार ‘द डेली स्टार’ की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को राजबाड़ी जिले के पांगशा उपजिला के कालीमोहर यूनियन के होसेंदांगा गांव में अमृत मंडल नामक एक हिंदू युवक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. आरोप है कि यह घटना जबरन वसूली के आरोप को लेकर हुई.
दीपू चंद्र दास के बाद अमृत मंडल
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और अमृत मंडल (जिसे सम्राट के नाम से भी जाना जाता था) को गंभीर हालत में बचाकर अस्पताल ले जाया गया, जहां बाद में उसकी मौत हो गई. यह घटना बांग्लादेश के मेमनसिंह जिले में हुई एक और भयावह घटना के कुछ ही दिनों बाद सामने आई, जहां हिंदू युवक दीपू चंद्र दास को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला और बाद में उसका शव जला दिया. दीपू चंद्र दास (जो एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करता था) को 18 दिसंबर को कथित ईशनिंदा के आरोप में निशाना बनाया गया था. आरोप था कि उसने फेसबुक पर पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. भीड़ ने उसे फैक्ट्री के अंदर पीटा, फिर उसके शव को लटका दिया और आग के हवाले कर दिया.
कहां जाएं अल्पसंख्यक?
हालांकि, इस मामले में जांच अधिकारियों के बयान आरोपों पर सवाल खड़े करते हैं. द डेली स्टार के अनुसार, मेमनसिंह के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अब्दुल्ला अल मामुन ने बताया कि फैक्ट्री के एक अधिकारी ने पुलिस को सूचना दी थी कि कुछ मजदूरों ने दीपू पर हमला किया. वहीं, रैपिड एक्शन बटालियन (RAB-14) के कंपनी कमांडर एमडी सामसुझ्जामान ने कहा कि जांच में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे यह साबित हो सके कि दीपू ने फेसबुक पर कोई आपत्तिजनक पोस्ट की थी. न तो स्थानीय लोग और न ही उसके सहकर्मी ऐसी किसी पोस्ट की पुष्टि कर सके. इन घटनाओं ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर न केवल बांग्लादेश की आंतरिक स्थिरता पर पड़ेगा, बल्कि भारत-बांग्लादेश के रणनीतिक और कूटनीतिक संबंधों पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा.
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बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
December 27, 2025, 08:29 IST

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