भारत बना रहा ब्रह्मोस का बाप, 1000 KMPH की रफ्तार से अटैक, 2500 किलोमीटर रेंज

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Last Updated:December 27, 2025, 06:19 IST

Indian Navy-DRDO SLCM Project: एयरफोर्स और आर्मी के साथ ही भारत नेवी को भी अपग्रेड करने में भी हजारों-लाखों करोड़ रुपये का इन्‍वेस्‍ट कर रहा है. डीआरडीओ ने 23 दिसंबर 2025 को उस वक्‍त ऐतिहासिक सफल‍ता हासिल की थी, जब सबमरीन से लॉन्‍च होने वाली बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण सफल रहा था. K-4 नाम की यह मिसाइल 3500 किलोमीटर तक न्‍यूक्लियर वॉरहेड के साथ अटैक करने में सक्षम है. अब इस दिशा में एक और इतिहास रचने की तैयारी चल रही है.

भारत बना रहा ब्रह्मोस का बाप, 1000 KMPH की रफ्तार से अटैक, 2500 किलोमीटर रेंजIndian Navy-DRDO SLCM Project: सबमरीन-लॉन्‍च्‍ड बैलिस्टिक मिसाइल के बाद अब DRDO सबमरीन-लॉन्‍च्‍ड क्रूज मिसाइल (SLCM) डेवलप करने की योजना बना रहा है. (फाइल फोटो/Reuters)

Indian Navy-DRDO SLCM Project: भारत की सीमा चीन और पाकिस्‍तान दोनों से लगती है. पश्चिम से लेकर उत्‍तर और पूरब तक के बॉर्डर पर भारत को खासतौर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. पाकिस्‍तान की आतंकपरस्‍त और चीन की हड़प नीति भारत को हमेशा सजग और सतर्क रहने को लेकर सावधान करती है. चीन से एक तो पाकिस्‍तान के साथ अभी तक 3 युद्ध हो चुके हैं. छोटी-मोटी झड़प और स्‍ट्राइक की बात ही अलग है. इसके अलावा अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक भारत की तटरेखा भी हजारों किलोमीटर की है. लैंड बॉर्डर के साथ ही 7500 किलोमीटर से भी लंबी कोस्‍टलाइन की सुरक्षा भी अहम हो जाती है. अगर इसमें एक्‍सक्‍लूसिव इकोनोमिक जोन (EEZ) को शामिल कर दिया जाए तो एरिया और भी बढ़ जाता है. हिन्‍द महासागर क्षेत्र में चीन की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं. इस क्षेत्र में अक्‍सर चीन अपने पोत भेजते रहता है. कभी सर्वे तो कभी मैरीटाइम रिसर्च के नाम पर जहाज भेजता है. दूसरी तरफ, अरब सागर में पाकिस्‍तान भी एक्टिव रहता है. समंदर में दुश्‍मन को पस्‍त करने के लिए भारत अपनी नौसेना को ताकतवर बनाने में जुटा है, ताकि नेवी 21वीं सदी की चुनौतियों से निपट सके. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने 23 दिसंबर 2025 को न्‍यूक्लियर वॉरहेड ले जाने में सक्षम सबमरीन-लॉन्‍च्‍ड बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया. K-4 बैलिस्टिक मिसाइल 3500 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम है. DRDO अब इससे एक कदम आगे की योजना बना रहा है. DRDO नेवी के साथ मिलकर सबमरीन से लॉन्‍च होने वाली क्रूज मिसाइल डेवलप करने की योजना बना रहा है. समंदर के अंदर से लॉन्‍च होने वाली इस क्रूज मिसाइल की रेंज ब्रह्मोस से कहीं ज्‍यादा होगी.

भारतीय नौसेना और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने देश की समुद्री ताकत को नई ऊंचाई देने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है. दोनों संस्थानों के बीच परमाणु ऊर्जा से चलने वाली अटैक पनडुब्बियों (SSN) के लिए लंबी दूरी की सबमरीन लॉन्च्ड क्रूज मिसाइल (SLCM) विकसित करने पर सहमति बन गई है. इस मिसाइल की न्यूनतम मारक क्षमता 2,500 किलोमीटर होगी, जिसे भविष्य की SSN परियोजना यानी प्रोजेक्ट-77 के तहत शामिल किया जाएगा. शुरुआती चरण में यह एक सबसोनिक (यानी तकरीबन 1000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार) मिसाइल होगी. सूत्रों के मुताबिक, यह नई मिसाइल मौजूदा ‘निर्भय’ क्रूज मिसाइल पर आधारित होगी, जिसे DRDO पहले ही सफलतापूर्वक विकसित कर चुका है. अभी जो स्वदेशी SLCM उपलब्ध है, उसकी रेंज 500 किलोमीटर है और इसका 1,000 किलोमीटर रेंज वाला संस्करण भी जल्द परीक्षण के लिए तैयार किया जा रहा है. अब भारतीय नौसेना की जरूरतों को देखते हुए इसे और ज्यादा लंबी दूरी तक मार करने लायक बनाया जाएगा.

मौजूदा SLCM की खासियतें

DRDO द्वारा विकसित मौजूदा SLCM निर्भय क्रूज़ मिसाइल का ही कॉम्पैक्ट और सबसोनिक वर्जन है. इसकी लंबाई करीब 5.6 मीटर, वजन लगभग 975 किलोग्राम और व्यास 0.505 मीटर है. इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह नौसेना की मानक 533 मिलीमीटर टॉरपीडो ट्यूब से आसानी से लॉन्च की जा सके. इस मिसाइल में INS और GPS आधारित नेविगेशन सिस्टम है, जबकि अंतिम चरण में लक्ष्य को भेदने के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर का इस्तेमाल किया जाता है. यह मिसाइल जमीन पर मौजूद ठिकानों और दुश्मन के जहाजों दोनों को निशाना बनाने में सक्षम है. फरवरी 2023 में इसका एक अहम परीक्षण पानी के नीचे बने प्लेटफॉर्म से किया गया था, जिसमें मिसाइल ने 402 किलोमीटर की दूरी तय कर सभी मिशन मानकों को पूरा किया. इसके बाद 2024 में दो और परीक्षण हुए, जिनमें गहरे समुद्र और खारे पानी की परिस्थितियों में इसकी विश्वसनीयता साबित हुई.

पनडुब्‍बी से लॉन्‍च होने वाली क्रूज मिसाइल की रेंज ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल से भी ज्‍यादा होगी. (फाइल फोटो/Reuters)

क्‍या है प्‍लानिंग?

यह स्वदेशी SLCM केवल परमाणु पनडुब्बियों तक सीमित नहीं रहेगी. इसे प्रोजेक्ट-751 के तहत बनने वाली छह AIP डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों में भी शामिल किया जाएगा, जिनके 2032 तक नेवी में शामिल होने की उम्मीद है. इसके अलावा पूरी तरह स्वदेशी प्रोजेक्ट-76 पनडुब्बियों में भी इसे लगाया जाएगा, जिनमें 90 से 95 प्रतिशत तक स्वदेशी तकनीक इस्तेमाल करने का लक्ष्य है. इन पनडुब्बियों का डिजाइन 2026 तक और पहला जहाज 2033-34 तक तैयार होने की संभावना है. प्रोजेक्ट-77 के तहत भारत 6 परमाणु ऊर्जा से चलने वाली करीब 10,000 टन वजनी SSN पनडुब्बियां बनाएगा. इनमें से पहली दो के 2036-37 और 2038-39 तक तैयार होने की उम्मीद है. ये पनडुब्बियां समुद्र के बेहद गहरे इलाकों में तट से दूर रहकर ऑपरेशन करेंगी. ऐसे में इन्हें लंबी दूरी से सटीक हमला करने वाली मिसाइलों की जरूरत होगी, ताकि दुश्मन के कमांड सेंटर, एयरफील्ड और लॉजिस्टिक ठिकानों को निशाना बनाया जा सके, वह भी बिना अपनी मौजूदगी उजागर किए.

सुपरसोनिक और सबसोनिक दोनों विकल्प

नेक्‍स्‍ट जेनरेशन SLCM में दो तरह की गति प्रोफाइल होंगी. एक तरफ सुपरसोनिक संस्करण होगा, जो ब्रह्मोस मिसाइल परिवार से प्रेरित होगा. इसकी गति मैक-3 तक हो सकती है और रेंज करीब 800 किलोमीटर होगी, जिससे दुश्मन पर तेजी से और एक साथ कई हमले किए जा सकें. दूसरी ओर, सबसोनिक संस्करण होगा जो निर्भय की तरह बेहद कम ऊंचाई पर उड़ते हुए चुपचाप लक्ष्य तक पहुंचेगा. भविष्य में इसकी रेंज 1,500 से 2,000 किलोमीटर तक बढ़ाई जा सकती है. कुल मिलाकर 2,500 किलोमीटर की बेसलाइन रेंज SSN को सुरक्षित दूरी से हमला करने की क्षमता देगी.

SSN की ताकत और चीन को जवाब

हर प्रोजेक्ट-77 SSN में वर्टिकल लॉन्च सिस्टम (VLS) के जरिए 40 से 50 मिसाइलें तैनात की जा सकेंगी. इनके साथ वरुणास्त्र जैसे भारी टॉरपीडो और डीआरडीओ के उन्नत सोनार सिस्टम भी होंगे. इन पनडुब्बियों में पंप-जेट प्रोपल्शन, लिथियम-आयन बैटरियां और आधुनिक सोनार लगाए जाएंगे, जिससे इनकी आवाज बेहद कम होगी. इसे चीन की बढ़ती टाइप-093B और टाइप-095 पनडुब्बियों के मुकाबले के तौर पर देखा जा रहा है.

आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम

2500 किलोमीटर रेंज वाली SLCM के विकास में करीब एक दशक का समय लग सकता है, जो प्रोजेक्ट-77 की समयसीमा से मेल खाता है. फिलहाल अंतरिम समाधान के तौर पर रूस की ‘कैलिब्र’ या यूरोप की ‘नेवल क्रूज़ मिसाइल’ जैसे विकल्पों पर विचार किया जा रहा है. लेकिन दीर्घकालिक लक्ष्य पूरी तरह स्वदेशी प्रणाली विकसित करना है, जो ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को मजबूती देगा. यह परियोजना भारत की समुद्री रणनीति, रक्षा क्षमता और तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिहाज से एक ऐतिहासिक कदम मानी जा रही है.

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Manish Kumar

बिहार, उत्‍तर प्रदेश और दिल्‍ली से प्रारंभिक के साथ उच्‍च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्‍लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें

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New Delhi,Delhi

First Published :

December 27, 2025, 06:19 IST

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