Last Updated:April 19, 2025, 23:52 IST
ISRO Space Mission: स्पेस की दुनिया सिर्फ रॉकेट और सैटेलाइट की नहीं रही. अब सवाल शरीर का है, सेल्स का है, DNA का है. हम जानना चाहते हैं कि किस जीव में वो ताकत है जो स्पेस की सजा भी झेल जाए. और इसरो की नजर में ज...और पढ़ें

टार्डिग्रेड्स का सीक्रेट जानना चाहता है ISRO! (AI Image)
हाइलाइट्स
Axiom-4 मिशन में ISRO एक बहुत खास एक्सपेरिमेंट करने जा रहा है.एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला के साथ टार्डिग्रेड्स भी स्पेस स्टेशन पर जाएंगे.इन जीवों से अंतरिक्ष में जिंदा रहने का सीक्रेट जानना चाहते हैं वैज्ञानिक.नई दिल्ली: क्या कोई ऐसा जीव है जो मर कर भी जिंदा रह सकता है? जवाब है- हां, और इस बार वो जीव अंतरिक्ष में जा रहा है. ISRO अब टार्डिग्रेड्स को लेकर एक नया एक्सपेरिमेंट करने जा रहा है. मिशन का नाम है– Axiom-4. पार्टनर है अमेरिका की कंपनी Axiom Space और सफर शुरू होगा SpaceX के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट से. इस मिशन की खास बात ये है कि भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला 14 दिनों के लिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर जाएंगे. लेकिन साथ में जो जाएंगे, वो हैं कुछ ऐसे सूक्ष्म प्राणी जिन्हें वैज्ञानिक ‘water bears’ या ‘moss piglets’ भी कहते हैं. नाम भले ही क्यूट हो, लेकिन ये प्राणी किसी विज्ञान फिक्शन फिल्म के हीरो से कम नहीं.
कौन हैं ये ‘water bears’?
टार्डिग्रेड्स, माइक्रोस्कोपिक जानवर हैं. आकार में बस 0.1 से 1.3 मिमी तक. लेकिन काम में, क्या बताएं! बर्फीली घाटियों से लेकर ज्वालामुखियों तक, समुद्र की गहराइयों से लेकर स्पेस की खालीपन तक, ये हर जगह जिंदा रह सकते हैं. और अगर हालात बहुत ही खराब हों, तो ये खुद को ‘cryptobiosis’ में डाल लेते हैं. यानी ऐसा मोड जिसमें उनकी सारी बॉडी लगभग फ्रीज़ हो जाती है. न खाना, न पानी, न सांस… लेकिन जैसे ही थोड़ा सा पानी मिला, ये दोबारा जिंदा हो जाते हैं.
ये कोई नई कहानी नहीं है. 2007 में यूरोपियन स्पेस एजेंसी की एक फ्लाइट में टार्डिग्रेड्स को स्पेस में भेजा गया था. उन्हें दस दिन तक स्पेस के वैक्यूम में रखा गया. बिना ऑक्सीजन, बिना दबाव… लेकिन वापस आने पर पानी डालते ही ये फिर से चलने लगे. और तभी से इन पर रिसर्च जारी है.
अब ISRO क्यों भेज रहा है टार्डिग्रेड्स?
Axiom-4 मिशन में भारत की ओर से भेजा गया Voyager Tardigrades Experiment दिखाएगा कि स्पेस में ये जीव कैसे बिहेव करते हैं. जब कोई जीव इतनी कट्टर परिस्थितियों में भी जिंदा रह सकता है, तो उसकी बॉडी में ऐसा क्या है जो इंसानों में नहीं?
इस मिशन में टार्डिग्रेड्स को ISS की माइक्रोग्रैविटी और कॉस्मिक रेडिएशन में रखा जाएगा. देखा जाएगा कि वहां ये कैसे रीवाइव होते हैं, कैसे रिप्रोड्यूस करते हैं और क्या उनके जीन का व्यवहार बदलता है. यानी हम ये जानना चाहते हैं कि अगर कल को इंसानों को मंगल या चांद पर भेजा जाए, तो क्या हमारी बॉडी भी कुछ ऐसा ही सीख सकती है? या क्या हम टार्डिग्रेड्स से कुछ बायोलॉजिकल ट्रिक्स सीख सकते हैं?
Gaganyaan मिशन से सीधा कनेक्शन
ये एक्सपेरिमेंट सिर्फ रिसर्च के लिए नहीं है. इसका सीधा फायदा इसरो के Gaganyaan मिशन को होगा, जिसमें भारत अपने पहले मानव अंतरिक्ष मिशन की तैयारी कर रहा है. Gaganyaan में भारतीय एस्ट्रोनॉट्स स्पेस में जाएंगे लेकिन सवाल है: क्या उनकी बॉडी उस रेडिएशन को सह पाएगी? क्या उनके DNA में कोई बदलाव आएगा?
टार्डिग्रेड्स के जीन और सेल बिहेवियर को देखकर वैज्ञानिक समझ पाएंगे कि लंबे समय तक स्पेस में रहने से बॉडी पर क्या असर होता है. ये उस दिन के लिए भी मदद करेगा जब हम स्पेस में कॉलोनी बसाने की सोचेंगे.
स्पेस में कौन-कौन सी लड़ाइयां लड़ चुके हैं टार्डिग्रेड्स?
2007 में स्पेस गए. 2011 में NASA के साथ ISS पर गए. 2019 में इजरायल का लैंडर ‘Beresheet’ उन्हें लेकर चांद पर पहुंचा लेकिन लैंडर क्रैश हो गया. आज भी वैज्ञानिक मानते हैं कि टार्डिग्रेड्स शायद वहां अभी भी मौजूद हैं- सूखे पड़े, लेकिन जिंदा. यानी मरने का सवाल ही नहीं.
अगर हम इन छोटे-से प्राणियों को समझ पाए, तो शायद एक दिन स्पेस में जाने से पहले इंसानों को भी वैसी ही तैयारी दी जा सकेगी. शायद वो दिन दूर नहीं जब किसी रॉकेट में सिर्फ इंसान नहीं, बल्कि टार्डिग्रेड-जैसी क्षमता वाला इंसान बैठेगा.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
April 19, 2025, 23:51 IST