वो रियासत, जहां गांधीजी की हत्या पर नहीं झुकाया झंडा, बाद में महाराजा साजिश...

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अलवर के महाराजा पर था गांधी की हत्या में हाथ होने का संदेह.

अलवर के महाराजा पर था गांधी की हत्या में हाथ होने का संदेह.

Flag was not lowered on the Assassination of Gandhiji: अलवर राज्य प्रशासन ने गांधीजी की हत्या की खबर को नजरअंदाज कर दिय ...अधिक पढ़ें

News18 हिंदीLast Updated : March 27, 2024, 15:32 ISTEditor picture

आजादी से पहले तक अलवर राजस्थान की एक मामूली रियासत थी. लेकिन इसे इतिहास में किसी और वजह से जाना जाता है. 15 अगस्त 1947 को अलवर में स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया गया. न ही प्रजामंडल कार्यालय और कुछ निजी भवनों को छोड़कर किसी भी सार्वजनिक भवन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया. 15 अगस्त 1947 आया और चला गया. अलवर में किसी भी सार्वजनिक भवन पर भारत का तिरंगा नहीं फहराया गया. इसे केवल कांग्रेस पार्टी के स्थानीय सहयोगी प्रजा मंडल के कार्यालय में या कुछ घरों पर ही देखा जा सकता था. 

वेब. आर्काइव. ओआरजी के मुताबिक अलवर के निवासी और भारतीय रिजर्व बैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी आर.सी. मोदी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि और फिर 1948 की 30 जनवरी का मनहूस दिन आया. उस दिन महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई. शुरुआत में राज्य प्रशासन ने इस बड़ी राष्ट्रीय त्रासदी की खबर को नजरअंदाज कर दिया. अलवर का पांच रंगों वाला (पचरंगा) राज्य ध्वज 31 जनवरी को फहराता रहा; तब तक अलवर में कभी भी भारत का राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया था. लेकिन एक दिन बाद जनता के विरोध के कारण थोड़ी घबराहट हुई. राज्य का झंडा आधा झुका दिया गया. महाराजा तेज सिंह पुरजन विहार (सिटी गार्डन) में एक शोक सभा को संबोधित करने आए थे. तेज सिंह को आम तौर पर एक निडर वक्ता माना जाता था, लेकिन वह उस दिन घबरा गए और भाषण अचानक समाप्त कर दिया. 

महाराजा पर गांधीजी की हत्या में हाथ होने का शक
शोक सभा अफरा-तफरी में समाप्त हो गई. और यह अलवर के महाराजा के रूप में तेज सिंह का अपनी राजधानी में आखिरी दिन साबित हुआ. अगले दिन उन्हें दिल्ली बुलाया गया और वे चले गए. रात 9 बजे ऑल इंडिया रेडियो के समाचार में खबर थी कि अलवर के महाराजा पर गांधी की हत्या में हाथ होने का संदेह है. इसलिए, महाराजा को मामले की जांच पूरी होने तक दिल्ली नहीं छोड़ने के लिए कहा गया था. इसके अलावा, राज्य का प्रशासन भारत सरकार द्वारा नियुक्त एक प्रशासक द्वारा संभालने की व्यवस्था की गई. प्रशासक को साथ-साथ जांच भी करनी थी.

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फरवरी 1948 में फहराया गया तिरंगा
एक युवा आईसीएस अधिकारी के.बी. लाल ने अगली सुबह अलवर के प्रशासक के रूप में पदभार संभाला और साथ ही जांच भी शुरू कर दी. के. बी. लाल बाद में भारत के रक्षा सचिव और यूरोपीय संघ में भारत के राजदूत रहे. यह घोषणा भी की गई कि  डॉ. एनबी खरे को अलवर के प्रधान मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया है. महाराजा की संविधान सभा की सदस्यता रद्द कर दी गई. अलवर में करीब तीन सप्ताह तक पूछताछ चली. प्रशासक ने समाज के सभी वर्ग के लोगों से मुलाकात की, जिनमें कुछ प्रमुख नागरिक भी शामिल थे, जिन्होंने धर्म परिवर्तन कराया था. इस बीच राज्य सचिवालय पर पहली बार फरवरी 1948 में राष्ट्रीय ध्वज (पक्के तौर पर दिन का पता नहीं) फहराया गया. इसे फहराते समय प्रशासक ने कहा कि इसे छह महीने पहले ही फहराया जाना चाहिए था. 

सरदार पटेल ने की अलवर की यात्रा
उसके तुरंत बाद, भारत के उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने अलवर की एक दिन की यात्रा की. जिस सार्वजनिक सभा को उन्होंने संबोधित किया, उसमें बड़े पैमाने पर लोग उपस्थित थे. सरदार पटेल काफी विनोदी थे.उन्होंने कहा, “प्रिय लोगों, आप लोगों को क्या हो गया था. मुझे बताया गया है कि आप में से कुछ लोग हमसे लड़ने के लिए तलवारें निकाल रहे थे. आजकल तलवारें किसी काम की नहीं हैं; वे आपके फर्श को साफ करने वाली झाड़ू की लकड़ी से अच्छी नहीं हैं. भूल जाओ यह सब हो चुका है और भारत के अच्छे नागरिक बनें.” 

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महाराजा की बेगुनाही, राज्य का विलय
पूछताछ से यह निष्कर्ष निकला कि गांधी जी की हत्या में तेज सिंह का कोई हाथ नहीं था. हालांकि, वह ऐसे व्यक्ति नहीं थे जिनके साथ लगभग दस लाख व्यक्तियों के भाग्य को ऐसे ही रहने दिया जा सकता था. हालांकि, गांधी की हत्या में उनकी बेगुनाही सार्वजनिक होने से पहले, तेज सिंह से पूछा गया था कि क्या वह अपने राज्य को एक बड़ी इकाई में विलय करने के लिए सहमत होंगे. 7 मार्च 1948 को, उन्होंने चुपचाप अलवर राज्य के विलय पर हस्ताक्षर किए. इस प्रकार 173 वर्ष पूर्व स्थापित राज्य का अस्तित्व समाप्त हो गया.

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Tags: Alwar News, Gandhi, Gandhi History, History, Indian Flag, Tricolor flag

FIRST PUBLISHED :

March 27, 2024, 15:32 IST

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