सबसे बड़ी जंग...सबसे सरल विश्लेषण, परमाणु का बदला क्या परमाणु से लेगा 'खलीफा'?

12 hours ago

इजरायल और ईरान के टकराव की वजह से तेल और सोने के दाम बढ़ रहे हैं. पूरी दुनिया में युद्ध का भय बढ़ रहा है. इस समय ईरान और इजरायल के बीच वॉर चल रहा है और यूएन वीकेंड मना रहा है. दुनिया की सबसे ताकतवर अंतरराष्ट्रीय संस्था ने मुश्किल समय में वॉर रोकने की जगह वीकेंड मनाना ज्यादा जरूरी समझा. जिस संयुक्त राष्ट्र पर वैश्विक संतुलन बनाने की जिम्मेदारी है वो हालात संभालने की बजाय उन्हें बिगाड़ रहा है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं ये जानने के लिए आपको संयुक्त राष्ट्र का ये बयान ध्यान से पढ़ना चाहिए.

यूएन का बयान

अपने बयान में संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि इजरायल और ईरान को अपनी सैन्य कार्रवाई पर अंकुश लगाना चाहिए ताकि ये स्थिति किसी बड़े युद्ध में ना बदले. बातचीत ही हर समस्या का समाधान है और संवाद से ही ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम की सुरक्षा हो सकती है. इस बयान में कुछ शब्दों पर गौर कीजिए. संयुक्त राष्ट्र ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण कहा है. जबकि इजरायल और अमेरिका का दावा है कि ईरान परमाणु बम बना रहा है.

ऐसा बयान देकर संयुक्त राष्ट्र ने इस टकराव से जुड़े एक पक्ष यानी इजरायल की चिंता को दरकिनार कर दिया है. यानी संयुक्त राष्ट्र ने वो अधिकार खो दिया है. जिसके तहत वो इजरायल से सीजफायर करने के लिए कह सकता था. इन हालात से आप समझ गए होंगे कि संयुक्त राष्ट्र का ये एकतरफा रवैया युद्ध की चिंगारी को भड़का सकता है.

IAEA की बड़ी लापरवाही

संयुक्त राष्ट्र कितना निष्पक्ष है ये आपने देख लिया. अब हम आपको संयुक्त राष्ट्र की एक महत्वपूर्ण एजेंसी IAEA यानी इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी की बड़ी लापरवाही दिखाते हैं. इजरायल और ईरान दोनों ने ही एक दूसरे के परमाणु अड्डों पर हमले किए हैं. जो बड़ी त्रासदी की वजह बन सकते हैं. इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी को दिन रात काम करना चाहिए. लेकिन उन्होंने पहले अपना आराम चुना.

ईरान और इजरायल के परमाणु संयंत्रों पर पहली बैठक शुक्रवार को हुई थी. बीच में आ गए शनिवार और रविवार यानी छुट्टियों के दिन. तो अगली बैठक के लिए सोमवार का दिन चुना गया है. यानी IAEA ने युद्ध से ज्यादा साप्ताहिक अवकाश को प्राथमिकता दी. शनिवार तो गुजर गया. लेकिन अगर रविवार को इजरायल या फिर ईरान किसी परमाणु अड्डे पर हमला कर उसे ध्वस्त कर देते हैं तो इससे रेडिएशन लीक होने का खतरा बढ़ जाएगा.

तब क्या संयुक्त राष्ट्र की ये संस्था इस त्रासदी की जिम्मेदारी लेगी. इसी रवैये की वजह से आज दुनिया में कहा जाने लगा है कि जब संयुक्त राष्ट्र और उसकी संस्थाएं  अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते तो उनपर ताला क्यों नहीं लगा देना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र  संघ के लचर रवैये से दुनिया का एक हिस्सा निराश है. तो दूसरी तरफ अमेरिका में हो रही हलचल से पूरी दुनिया हैरान है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं ये समझने के लिए आपको अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन की हलचलों को जरूर पढ़ना चाहिए.

मिलिट्री परेड

क्योंकि वॉशिंगटन की सड़कों पर सैनिक कदमताल कर रहे हैं. सड़क और रेलमार्ग से हजारों टैंक वॉशिंगटन पहुंच रहे हैं और जगह-जगह गोलियां चल रही हैं. इन तस्वीरों को देखकर किसी आम इंसान को लगेगा शायद अमेरिका में गृहयुद्ध हो रहा है. लेकिन ये कोई युद्ध नहीं बल्कि एक आयोजन है. जिसे अमेरिका में मिलिट्री परेड कहा जाता है.

इस बार मिलिट्री परेड की वजह है अमेरिकी सेना का 250वां स्थापना दिवस. इस बार परेड में 6600 सैनिक शामिल हुए. इन सैनिकों के साथ 8 टैंक भी परेड में चले. हवा में 24 हेलीकॉप्टर और 4 विमान अमेरिकी सेना का झंडा फहराते नजर आए.

आमतौर पर ये परेड किसी बड़े य़ुद्ध में विजय के बाद निकाली जाती है. पिछली बार 1991 का खाड़ी युद्ध जीतने के बाद वॉशिंगटन में परेड निकाली गई थी. इसी वजह से सवाल पूछे जा रहे हैं कि अमेरिका कोई युद्ध तो नहीं लड़ रहा तो फिर शांतिकाल में परेड क्यों निकाली जा रही है. जानकारों के मुताबिक इस सवाल का जवाब है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का शक्ति प्रदर्शन.

माना जा रहा है ट्रंप ईरान को ये संदेश देना चाहते हैं कि परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिकी शर्तें तेहरान को माननी ही होंगी.  ट्रंप ये मैसेज भी देना चाहते हों कि ईरान और इजरायल टकराव में वो किसी बड़ी शक्ति का दखल बर्दाश्त नहीं करेंगे. अमेरिका के अंदर इस परेड का विरोध हो रहा है  क्योंकि परेड के आयोजन पर 350 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं. लेकिन ट्रंप किसी विरोध के सामने झुकते नहीं हैं.

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