'सोसाइटी के लिए हार्मफुल, तलाक बेस्‍ट ऑप्‍शन', 24 साल के 'सूखे' का यूं हुआ अंत

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Last Updated:December 17, 2025, 08:46 IST

Supreme Court On Divorce: कोर्ट आमतौर पर परिवारों को जोड़े रखने पर जोर देता है, लेकिन कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनमें तलाक के अलावा कोई विकल्‍प नहीं बचता है. सुप्रीम कोर्ट में ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसमें दो जजों की बेंच को कहना पड़ा कि इस केस में तलाक ही बेस्‍ट ऑप्‍शन है.

'सोसाइटी के लिए हार्मफुल, तलाक बेस्‍ट ऑप्‍शन', 24 साल के 'सूखे' का यूं हुआ अंतSupreme Court On Divorce: सुप्रीम कोर्ट ने 24 साल से अलग रहे पति-पत्‍नी को लेकर लैंडमार्क जजमेंट सुनाया है. (फाइल फोटो/PTI)

Supreme Court On Divorce: दो इंसान एक-दूसरे से प्‍यार करते हों और जब इस अनकहे रिश्‍ते को पति-पत्‍नी का नाम दे दिया जाए तो इससे खूबसूरत पल कोई और नहीं हो सकता है. देश और समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें कपल्‍स जाति और मजहब की दीवार तोड़ कर एक-दूजे के हो गए. दूसरी तरफ, ऐसे भी केस हैं जिनमें प्‍यार का खुमार वैवाहिक बंधन में बंधने के कुछ महीनों के बाद ही उतर गया. ऐसे रिश्‍ते दोनों पक्षों के लिए दर्दनाक के साथ ही काफी खतरनाक भी हो जाते हैं, क्‍योंकि दरार पड़े रिलेशनशिप में बदले की भावना प्रबल हो जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में तकरीबन ढाई दशक से अलग रह रहे पति-प‍त्‍नी की तलाक की अर्जी को मंजूर कर दोनों को कानूनी रूप से अलग रहने की अनुमति दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाने के लिए संविधन के अनुच्‍छेद 142 का इस्‍तेमाल किया, जिसके तहत सर्वोच्‍च न्‍यायालय को विशेषाधिकार मिल जाता है.

दरअसल, तलाक की एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पूरी तरह टूट चुके विवाह को जबरन बनाए रखना न केवल पति-पत्नी दोनों के लिए क्रूरता है, बल्कि यह समाज के लिए भी नुकसानदेह है. ऐसे मामलों में तलाक देना ही सभी के हित में बेहतर विकल्प होता है. इसी आधार पर अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए 24 साल से अलग रह रहे एक दंपती का विवाह खत्म कर दिया. जस्टिस मनमोहन और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि आमतौर पर अदालतों को विवाह की पवित्रता बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन जब पति-पत्नी एक ही छत के नीचे साथ रहने को तैयार न हों और मेल-मिलाप की कोई संभावना न बचे, तो अदालत के पास विवाह खत्म करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता.

क्‍या बोली सुप्रीम कोर्ट की बेंच?

अदालत ने कहा कि लंबे समय तक अलग-अलग रहना और वर्षों तक चलने वाला मुकदमा अपने-आप में विवाह खत्म करने का आधार बन सकता है. इस मामले में दोनों पक्षों के विचार और जीवन जीने का तरीका अलग-अलग था और वे लंबे समय से एक-दूसरे के साथ तालमेल बैठाने से इनकार कर रहे थे. ऐसे में उनका व्यवहार एक-दूसरे के प्रति क्रूरता माना जाएगा. ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने यह भी साफ किया कि वैवाहिक मामलों में यह अदालत या समाज का काम नहीं है कि वह यह तय करे कि पति या पत्नी में से कौन सही है. समस्या यह है कि दोनों एक-दूसरे को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं और यही क्रूरता है.

क्‍या है संविधान का अनुच्‍छेद 142?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह विशेष अधिकार देता है कि वह अपने सामने आए किसी भी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए कोई भी आदेश या फैसला दे सकता है.

कौन-कौन से फैसले ले सकता है सुप्रीम कोर्ट?
इसके तहत सुप्रीम कोर्ट जटिल कानूनी प्रावधानों को बाइपास कर फैसला दे सकता है. कानूनी की कमी को दरकिनार करते हुए मानवाधिकार या जनहित जैसे मामलों में दिशानिर्देश तय कर सकता है.

इस प्रावधान पर किस बात का लेकर बहस?
इस अधिकार के इस्तेमाल को लेकर यह बहस भी होती रहती है कि यह न्याय के लिए जरूरी है या फिर न्यायपालिका की सीमा से आगे जाने जैसा है.

महज 24 महीने में ‘सूखा’ प्‍यार

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि यह एक प्रेम विवाह था, लेकिन शादी के दो साल के भीतर ही मतभेद सामने आ गए. इसके बाद पत्नी ने ससुराल छोड़ दिया और पिछले 24 वर्षों से अपने माता-पिता के साथ रह रही है. दिलचस्प बात यह है कि दोनों एक ही कार्यालय में काम करते थे, फिर भी आपस में बातचीत नहीं थी. पति ने पहले फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी थी, जिसे मंजूरी मिल गई थी. हालांकि, गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद्द कर दिया था. इसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. पहले के कई फैसलों का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि जो विवाह चल ही नहीं सकता, वह किसी काम का नहीं होता और दोनों पक्षों के लिए दुख का कारण बनता है.

ऐसी शादियां बस कागजों पर

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि लंबे समय तक लगातार अलग-अलग रहने के मामलों में यह माना जा सकता है कि वैवाहिक रिश्ता अब पूरी तरह टूट चुका है. अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में विवाह केवल कागजों पर बचा रहता है. इस तरह के रिश्ते को जबरन बनाए रखना विवाह की पवित्रता की रक्षा नहीं करता. अदालत ने यह भी ध्यान में रखा कि इस मामले में कोई संतान नहीं है, इसलिए तलाक से किसी तीसरे पक्ष पर नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा.

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Manish Kumar

बिहार, उत्‍तर प्रदेश और दिल्‍ली से प्रारंभिक के साथ उच्‍च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्‍लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

December 17, 2025, 08:44 IST

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