हिमाचल का एक ऐसा डॉक्टर, जो लोगों को देहदान के लिए करता है प्रेरित

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Last Updated:November 10, 2025, 11:08 IST

Body Donations News: हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में डा. प्रदीप कश्यप श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक में देहदान के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं, अब तक 330 से अधिक पंजीकरण और 10 देह प्राप्त हुई हैं.

हिमाचल का एक ऐसा डॉक्टर, जो लोगों को देहदान के लिए करता है प्रेरितडॉक्टर प्रदीप कश्यप.

मंडी. देहदान! कुछ बुद्धिजीवी लोग इस शब्द से परिचित हैं और इसका महत्व भी समझते हैं. लेकिन अधिकतर लोगों को इसका महत्व पता नहीं. एक डॉक्टर की पढ़ाई तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक वह किसी मृत देह पर प्रेक्टिकल वर्क नहीं कर लेता. शायद इसी बात को डॉक्टर प्रदीप कश्यप ने समझा और उन्होंने लोगों को देहदान के लिए प्रेरित करने का जिम्मा उठाया है. कौन हैं डॉक्टर प्रदीप कश्यप और क्यों जरूरी है देहदान, आईए जानते हैं हमारी इस खास रिपोर्ट में.

दरअसल, जब इंसान की मृत्यु हो जाती है तो उसके मृत शरीर को अंतिम संस्कार के माध्यम से जलाकर या दफनाकर नष्ट कर दिया जाता है. क्योंकि आम नजरों में यह मृत शरीर किसी काम का नहीं होता. लेकिन इस मृत शरीर की महता सिर्फ वही समझ सकता है जो डॉक्टर की पढ़ाई कर या करवा रहा हो. 10 डॉक्टरों को पढ़ाने के लिए एक मृत देह की जरूरत पड़ती है और यह जरूरत कभी पूरी नहीं हो पाती. कारण! लोगों द्वारा अपनी देह को दान न करना. इसी बात को समझते हुए श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक के एनाटॉमी विभाग के प्रमुख डा. प्रदीप कश्यप ने लोगों को देहदान के लिए प्रेरित करने का काम शुरू किया है.

डा. प्रदीप कश्यप ने बताया कि वे अभी तक 330 से अधिक लोगों को देहदान के लिए प्रेरित करते हुए उनका पंजीकरण करवा चुके हैं और उसमें से अभी तक 10 लोगों की मृत्यु के उपरांत देह भी प्राप्त हो चुकी है. डा. कश्यप कहते हैं कि आज डॉक्टर की पढ़ाई के लिए कई माध्यम हैं लेकिन जो एक मृत शरीर पर प्रयोग करके सीखा जा सकता है उसका अभी तक कोई विकल्प मौजूद नहीं है. यही कारण है कि इसके लिए मृत देह की जरूरत रहती है और लोगों को इस बात समझते हुए स्वेच्छा से अपनी देहदान करनी चाहिए. एक पूरी मृत देह को अधिकतम एक वर्ष तक और उसके बाद अंगों को अधिकतम चार वर्षों तक ही इस्तेमाल किया जा सकता है.

परिजन पंजीकरण के बाद भी दान नहीं कर रहे देह
डा. प्रदीप कश्यप ने बताया कि बहुत से परिजन ऐसे भी हैं जो पंजीकरण के बाद भी देहदान नहीं कर रहे हैं. अभी तक ऐसे 8 से 10 मामले उनके सामने आ चुके हैं. रिश्तेदार या अन्य परिजन आत्मिक शांति के लिए अंतिम संस्कार का हवाला देकर देहदान नहीं करते और अंतिम संस्कार कर देते हैं. जबकि शास्त्रों में भी देहदान को पुण्य कार्य बताया गया है. उन्होंने बताया कि डॉक्टर की पढ़ाई बिना मृत देह के संभव हीं नहीं है. यही कारण है कि वे जब भी किसी से मिलते हैं तो उससे देहदान की बात करके उन्हें इसके लिए प्रेरित करते हैं और लोग इस पर विचार करके स्वेच्छा से अपना फार्म भरते हैं.

अंगदान और देहदान अलग-अलग

डा. प्रदीप कश्यप ने बताया कि बहुत से लोग अंगदान के लिए भी उनके पास आते हैं लेकिन यह सुविधा अभी मेडिकल कॉलेज नेरचौक में उपलब्ध नहीं है. अंगदान और देहदान दोनों ही जरूरी हैं. अंगदान से किसी को नवजीवन तो मिल जाता है लेकिन देहदान से भविष्य के वो डॉक्टर तैयार होते हैं जो अपने जीवनकाल में लाखों लोगों का उपचार करते हैं.

देहदान स्वेच्छिक, नहीं की जा सकती जोर-जबरदस्ती

बता दें कि देहदान स्वेच्छा से होता है. इसके लिए व्यक्ति को बाकायदा मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में जाकर फार्म भरना पड़ता है और उस पर अपने परिजनों के हस्ताक्षर भी करवाने होते हैं. इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद एक कार्ड जारी किया जाता है. फिर व्यक्ति की मृत्यु होने पर परिजनों द्वारा मेडिकल कॉलेज को सूचित करके देह को उनके हवाले कर दिया जाता है. पूरी प्रक्रिया से आई देह को ही पढ़ाई या अन्य शोध कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

Vinod Kumar Katwal

Results-driven journalist with 14 years of experience in print and digital media. Proven track record of working with esteemed organizations such as Dainik Bhaskar, IANS, Punjab Kesari and Amar Ujala. Currently...और पढ़ें

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Location :

Mandi,Mandi,Himachal Pradesh

First Published :

November 10, 2025, 11:08 IST

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