100 फीट ऊपर टांगा और... हिरोशिमा-नागासाकी से पहले ही अमेरिका ने यहां किया था पहला परमाणु धमाका

1 week ago

World First Nuclear Test: दुनिया में सबसे पहले परमाणु बम का धमाका जापान के हिरोशिमा या नागासाकी में नहीं हुआ था. जी हां, 6 अगस्त 1945 को सुबह 8.15 बजे अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर बी-29 बॉम्बर से लिटिल बॉय नाम का पहला परमाणु बम गिराया था. दूसरा बम 9 अगस्त को नागासाकी में तबाही मचाई. हालांकि क्या आप जानते हैं कि इससे पहले ही अमेरिका ने एक बड़ा विस्फोट कर दिया था. वो तारीख थी 16 जुलाई 1945 और दुनिया का पहला न्यूक्लियर एक्सप्लोजन अमेरिका ने अपनी धरती पर किया था. न्यू मेक्सिको में लॉस एलामॉस के दक्षिण में यह एक सुनसान जगह थी. इस टेस्ट का कोडनेम था ट्रिनिटी. 

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100 फीट ऊपर टांगा बम

जापान पर तो अमेरिका ने बॉम्बर से यह महाविनाशक बम गिराया था लेकिन अपने देश में अपनों के बीच ऐसा करना खतरनाक हो सकता था इसलिए न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान में एक प्लान तैयार हुआ. 100 फीट ऊंचा टावर बनाया गया. उस पर प्लूटोनियम डिवाइस को रखा गया. उस दिन तड़के ठीक 5.30 बजे बटन दबा दिया गया. सेकेंड में ही 18.6 किलो टन उष्मा चारों तरफ दौड़ गई थी. पलक झपकते ही पूरा टावर आग में भस्म हो चुका था. पहला धमाका कम तीव्रता का था, कुछ सेकेंड के गैप में बहुत बड़ा विस्फोट हुआ था. रेगिस्तान में सुबह के समय भयंकर गर्मी पैदा हुई थी. दूर से इस नजारे को देख रहे लोग भी जमीन पर गिर गए थे. काफी ऊपर होने से विकिरण निकला लेकिन नुकसान उतना नहीं हुआ जितना जापान में हुआ था. 

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150 मील दूर मौजूद एक फॉरेस्ट रेंजर ने बताया था कि उसने देखा कि ऐसा धमाका हुआ कि आसमान को सूरज की तरह रोशन कर दिया. उस समय अमेरिकी नौसेना के एक पायलट न्यू मेक्सिको के अल्बुकर्क के पास 10 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहे थे. उन्होंने बताया था कि धमाके से कॉकपिट में रोशनी हो गई और ऐसा लगा जैसे दक्षिण में सूरज उग रहा हो. 

In 1942, Oppenheimer was appointed as the scientific director of the Manhattan Project. Under his leadership, the project culminated in the creation of two types of atomic bombs, which were subsequently dropped on Hiroshima and Nagasaki in 1945.
(Los Alamos Laboratory… pic.twitter.com/5aCNskaOmE

— Physics In History (@PhysInHistory) April 22, 2024

जब पायलट ने अल्बुकर्क एयर ट्रैफिक कंट्रोल को रेडियो पर संपर्क किया तो उन्हें बस इतना कहा गया कि दक्षिण की ओर मत जाइए. टेस्ट के बाद पास के अमेरिकी एयर बेस ने भी प्रेस में बयान जारी किया था. इसमें कहा गया कि उच्च विस्फोट हुआ लेकिन किसी को नुकसना नहीं हुआ. 6 अगस्त को जापान के हिरोशिमा पर अमेरिकी बमबारी के बाद ही लोगों को पता चला कि उस दिन वो धमाका कैसा था. 

महाविनाशक बम बनाने का डेरा

वास्तव में ट्रिनिटी टेस्ट की सफलता का मतलब था कि अमेरिकी सेना अब किसी भी समय परमाणु बम का इस्तेमाल कर सकती थी. वो द्वितीय विश्व युद्ध का दौर था और माना गया कि इस हमले के बाद युद्ध तो समाप्त हो गया लेकिन एक नई रेस शुरू हो गई. 

ट्रिनिटी साइट अब व्हाइट सैंड्स मिसाइल रेंज का हिस्सा है और यह अमेरिकी रक्षा विभाग के अधीन है. ग्राउंड जीरो पर बाद में एक स्मारक चिह्न लगाया गया. इसके चारों ओर कई सौ गज की दूरी तक धंसी हुई जमीन दिखाई देती है. कुछ टुकड़े अब भी संरक्षित करके रखे गए हैं. 

1945 की गर्मियों में करीब 200 वैज्ञानिकों, सैनिकों और टेक्निशियनों ने वहां अस्थायी बसेरा बसाया था. यह जगह ग्राउंड जीरो से लगभग 10 मील दक्षिण-पश्चिम में है. इनके हेड थे रॉबर्ट ओपेनहाइमर जिन्हें परमाणु बम का जनक कहा जाता है. उन्होंने संस्कृत के श्लोक भी पढ़े थे. 

ओपेनहाइमर ने पढ़ा था गीता का श्लोक

एटम बम बनाने वाले ओपेनहाइमर को भगवद्गीता का एक श्लोक बहुत पसंद था. वह था, 'अब मैं मृत्यु बन गया हूं, संसारों का विनाशक'. यह श्लोक गीता के 11वें अध्याय के 32वें श्लोक का है. ओपेनहाइमर ने दावा किया था कि जब उन्होंने परमाणु बम का पहला विस्फोट देखा, तब उनके दिमाग में यह श्लोक आया था.

हालांकि ओपेनहाइमर परमाणु परीक्षण के कुछ समय बाद उदास रहने लगे थे. उन पर पिछले साल डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनी थी. 

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