नई दिल्ली (Career Options after 12th). 12वीं के बाद स्टूडेंट्स के सामने सबसे बड़ा सवाल होता है कि वे करियर के लिए किस राह का चयन करें. ग्रेजुएशन कोर्स कितने सालों वाला करें- 3 साल, 4 साल या 5 साल? इन दिनों करियर के इतने ऑप्शन उपलब्ध हैं कि मन में ऐसे सवाल होना आम है. वक्त बदलने के साथ न सिर्फ कोर्सेस की भरमार आई है, बल्कि पढ़ाई के तौर-तरीके भी बदल गए हैं. नई शिक्षा नीति के लागू होने से 3 साल के कोर्स के साथ ही 4 साल के ऑनर्स/रिसर्च कोर्स और 5 साल के इंटीग्रेटेड कोर्स भी उपलब्ध हैं.
कम अवधि के कोर्स जल्दी नौकरी दिलवा सकते हैं. वहीं, लंबी अवधि के कोर्स विषय की गहरी समझ, रिसर्च के अवसर और हायर एजुकेशन में सीधी एंट्री दिलवा सकते हैं. इसलिए हर अवधि के कोर्स के फायदे और नुकसान समझना जरूरी है. तभी छात्र अपनी रुचि, लक्ष्य और आर्थिक स्थिति के आधार पर सही निर्णय ले सकेंगे. अगर आप भी 12वीं के बाद सही कोर्स को लेकर कंफ्यूजन में हैं तो जानिए 3 साल, 4 साल और 5 साल वाले ग्रेजुएशन कोर्स में क्या अंतर है और इनके फायदे-नुकसान क्या हैं.
12वीं के बाद क्या करें?
12वीं के बाद अपनी पसंद और करियर गोल्स के आधार पर बेस्ट कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं. जानिए 12वीं के बाद कितनी तरह के ग्रेजुएशन कोर्स किए जा सकते हैं-
3 साल का ग्रेजुएशन कोर्स (बीए, बीएससी, बीकॉम आदि)
ज्यादातर स्टूडेंट्स 3 साल के ग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन लेते हैं. यह फॉर्मेट पुराना और सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. जानिए इसके फायदे और नुकसान:
फायदे
करियर की जल्दी शुरुआत: 3 साल में कोर्स पूरा होने से स्टूडेंट्स जल्द ही नौकरी या आगे की पढ़ाई (मास्टर्स, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी) शुरू कर सकते हैं, जिससे उनका समय और पैसा बचता है.
आर्थिक बचत: कोर्स की अवधि कम होने के कारण फीस और हॉस्टल/रहने का खर्च कम होता है.
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए समय: जो स्टूडेंट्स यूपीएससी, एसएससी या बैंकिंग जैसी सरकारी नौकरी की तैयारी करना चाहते हैं, उन्हें कोर्स के साथ या तुरंत बाद अतिरिक्त समय मिल जाता है.
नुकसान
सीमित विशेषज्ञता: कम अवधि के कारण विषय का ज्ञान अक्सर व्यापक रहता है, जिससे स्पेशलाइजेशन की कमी हो सकती है.
उच्च शिक्षा में अधिक समय: अगर छात्र को मास्टर्स (एमए, एमएससी, एमकॉम) करना हो तो उसे 2 साल और देने होंगे, जिससे कुल एकेडमिक समय 5 साल हो जाता है.
अंतर्राष्ट्रीय मान्यता में चुनौती: कुछ पश्चिमी देशों में 3 साल की डिग्री को मास्टर्स में सीधे एंट्री के लिए पर्याप्त नहीं माना जाता है.
4 साल का ग्रेजुएशन कोर्स (ऑनर्स विद रिसर्च)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत अब कई यूनिवर्सिटी 4 वर्षीय स्नातक कोर्स प्रदान कर रही हैं. इनमें ऑनर्स के साथ ही रिसर्च का विकल्प मिलता है.
फायदे
गहन विषय ज्ञान और रिसर्च: चौथे वर्ष में रिसर्च कंपोनेंट जुड़ने से विषय की गहरी समझ और शोध का अनुभव मिलता है, जो एकेडमिक करियर के लिए बेहतरीन है.
पीएचडी में डायरेक्ट एंट्री: 4 साल की ऑनर्स विद रिसर्च डिग्री पूरी करने वाले स्टूडेंट्स पीएचडी के लिए आवेदन कर सकते हैं. इससे 2 साल के मास्टर्स कोर्स का समय बचता है.
अंतर्राष्ट्रीय समकक्षता: यह डिग्री कई पश्चिमी देशों के ग्रेजुएशन स्टैंडर्ड्स के समकक्ष मानी जाती है, जिससे विदेश में उच्च शिक्षा के अवसर बढ़ जाते हैं.
एग्जिट विकल्प: NEP के तहत, 1 साल बाद सर्टिफिकेट, 2 साल बाद डिप्लोमा और 3 साल बाद सामान्य स्नातक की डिग्री लेने का विकल्प भी होता है. इस कोर्स में फ्लेक्सिबिलिटी है.
नुकसान
समय और लागत: 3 साल के कोर्स की तुलना में 1 एक्सट्रा साल देना होता है. इससे समय और शैक्षणिक लागत बढ़ जाती है.
सभी के लिए जरूरी नहीं: अगर किसी छात्र का लक्ष्य केवल सरकारी नौकरी या जल्दी से जॉब मार्केट में एंट्री करना है तो 4 साल का कोर्स उसके लिए समय की बर्बादी लग सकता है.
अभी भी नया: यह पैटर्न अभी भी भारत में नया है. इसलिए सभी संस्थानों में समान रूप से इसकी गुणवत्ता और समझ विकसित नहीं हुई है.
5 साल का इंटीग्रेटेड कोर्स (बीए एलएलबी, बीबीए, एमबीए, एमएससी इंटीग्रेटेड)
ये कोर्स स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) की डिग्री को मिलाकर बनाए गए हैं. एजुकेशन सेक्टर में इनकी वैल्यू बढ़ रही है.
फायदे
समय की बचत: अलग-अलग UG (3/4 साल) और PG (2 साल) करने के बजाय सीधे 5 साल में दोनों डिग्रियां हासिल कर सकते हैं. इससे अमूमन 1 साल तक की बचत हो सकती है.
करियर फोकस: ये कोर्स एक खास प्रोफेशनल करियर (जैसे कानून, प्रबंधन, विज्ञान) पर केंद्रित होते हैं. इससे स्टूडेंट्स को संबंधित इंडस्ट्री में गहरी समझ और एक्सपर्टीज मिलती है.
एडमिशन की सुनिश्चितता: एक बार एडमिशन लेने पर मास्टर्स डिग्री में प्रवेश के लिए अलग से तैयारी और परीक्षा देने की जरूरत नहीं होती.
उद्योग में बेहतर वेतन: इंटीग्रेटेड एक्सपर्टीज के कारण ये डिग्रियां लेकर अच्छी सैलरी वाली नौकरी हासिल कर सकते हैं.
नुकसान
फ्लेक्सिबिलिटी की कमी: एक बार कोर्स शुरू करने के बाद बीच में विषय या कॉलेज बदलने का ऑप्शन कम होता है.
शुरुआती कमिटमेंट: 12वीं के तुरंत बाद 5 साल के लिए एक ही फील्ड के प्रति कमिटेड होना पड़ता है, जबकि कई स्टूडेंट्स उस समय तक करियर को लेकर उतने गंभीर नहीं होते हैं.
पढ़ाई का दबाव: 5 साल तक लगातार एकेडमिक प्रदर्शन बनाए रखने का दबाव अधिक हो सकता है.
बेस्ट ऑप्शन का चुनाव आपके करियर गोल्स और पर्सनल प्रिफरेंस पर निर्भर करता है. अगर आप सरकारी नौकरी या सामान्य जॉब की तलाश में हैं और समय/पैसा बचाना चाहते हैं तो 3 साल की डिग्री उपयुक्त है. अगर आप रिसर्च, एकेडमिक या विदेश में उच्च शिक्षा चाहते हैं तो 4 साल का रिसर्च-आधारित कोर्स सबसे अच्छा है और अगर आप कानून या मैनेजमेंट जैसे किसी खास प्रोफेशनल क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं तो 5 साल का इंटीग्रेटेड कोर्स सबसे ज्यादा फायदेमंद है.

4 hours ago
