CJI बीआर गवई ने अपनों को दी नसीहत, हाईकोर्ट जजों के रोस्‍टर पर कही बड़ी बात

1 week ago

Last Updated:August 11, 2025, 09:45 IST

Supreme Court News: इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले पर सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की अध्‍यक्षता वाली पीठ ने दो टूक टिप्‍पणी की है. शीर्ष अदालत की दो जजों पीठ ने कहा कि सुप्रीम...और पढ़ें

CJI बीआर गवई ने अपनों को दी नसीहत, हाईकोर्ट जजों के रोस्‍टर पर कही बड़ी बातनई दिल्‍ली. भारत के प्रधान न्‍यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई और उनके उत्‍तराधिकारी बनने जा रहे जस्टिस सूर्य कांत ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच कामकाज के तौर-तरीकों को लेकर महत्‍वपूर्ण बयान दिया है. दोनों ने शीर्ष अदालत के जजों द्वारा निचली अदालतों या हाईकोर्ट के जजों की योग्‍यता और क्षमता पर सार्वजनिक टिप्‍पणी करने की प्रवृत्ति को अनुचित बताया है. CJI जस्टिस गवई ने कहा, 'हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं हैं. दोनों संवैधानिक अदालतें हैं. सुप्रीम कोर्ट का काम केवल उच्‍च न्‍यायालयों के आदेशों/निर्णयों को संशोधित, सुधारने या पलटने तक सीमित है. संविधान किसी भी जज की व्‍यक्तिगत क्षमता, ज्ञान या योग्‍यता पर टिप्‍पणी करने का अधिकार नहीं देता.'जस्टिस सूर्य कांत ने इस बात से सहमति जताते हुए कहा कि सुपीरियर कोर्ट के जजों को निचली अदालतों के लिए दोस्‍त, दार्शनिक और मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए. उन्‍होंने कहा, 'तीन-स्तरीय न्‍याय व्‍यवस्‍था में आलोचना और निंदा की बजाय समझाने और मार्गदर्शन से बेहतर नतीजे मिलते हैं.' इन दोनों की टिप्‍पणियां ऐसे समय आई हैं, जब हाल में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के आदेश को सबसे खराब और त्रुटिपूर्ण करार दिया था और उन्‍हें आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोकने का निर्देश दिया था. हालांकि, बाद में पीठ ने यह आदेश वापस लेते हुए मामले को हाई कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश पर छोड़ दिया.CJI की बड़ी टिप्‍पणीCJI गवई ने कहा, 'कोई भी जज ऐसा नहीं है जिसने कभी गलती न की हो. यही सिद्धांत हाईकोर्ट के जजों पर भी लागू होता है. अपील सुनते समय उनकी क्षमता या ज्ञान पर प्रहार करने से बचना चाहिए. जरूरत पड़ने पर प्रशासनिक तरीके से सुधार के बिंदु बताए जा सकते हैं. इस काम में हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश की अहम भूमिका है.' जस्टिस सूर्य कांत ने जोड़ा कि हाईकोर्ट के जज और निचली अदालतों के न्‍यायिक अधिकारी अलग-अलग सामाजिक पृष्‍ठभूमि से आते हैं और अपने साथ व्‍यापक जीवन अनुभव लाते हैं, जिसे कानूनी प्रशिक्षण के जरिए और निखारा जा सकता है.'सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार नहीं'जस्टिस सूर्य कांत ने यह भी स्‍पष्‍ट किया कि सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट का रोस्‍टर तय करने या यह निर्देश देने का अधिकार नहीं है कि कौन सा जज कौन सा मामला सुनेगा. यह पूरी तरह संबंधित हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश का विशेषाधिकार है. CJI गवई ने अंत में कहा, 'हर संवैधानिक अदालत का जज (चाहे वह हाईकोर्ट में हो या सुप्रीम कोर्ट में) का दायित्‍व है कि हर मामले में न्‍याय सुनिश्चित करे. आदेश लिखते समय या टिप्‍पणी करते समय गरिमा और शालीनता बनाए रखना सुपीरियर कोर्ट की गंभीर जिम्‍मेदारी है.'

नई दिल्‍ली. भारत के प्रधान न्‍यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई और उनके उत्‍तराधिकारी बनने जा रहे जस्टिस सूर्य कांत ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच कामकाज के तौर-तरीकों को लेकर महत्‍वपूर्ण बयान दिया है. दोनों ने शीर्ष अदालत के जजों द्वारा निचली अदालतों या हाईकोर्ट के जजों की योग्‍यता और क्षमता पर सार्वजनिक टिप्‍पणी करने की प्रवृत्ति को अनुचित बताया है. CJI जस्टिस गवई ने कहा, ‘हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं हैं. दोनों संवैधानिक अदालतें हैं. सुप्रीम कोर्ट का काम केवल उच्‍च न्‍यायालयों के आदेशों/निर्णयों को संशोधित, सुधारने या पलटने तक सीमित है. संविधान किसी भी जज की व्‍यक्तिगत क्षमता, ज्ञान या योग्‍यता पर टिप्‍पणी करने का अधिकार नहीं देता.’

जस्टिस सूर्य कांत ने इस बात से सहमति जताते हुए कहा कि सुपीरियर कोर्ट के जजों को निचली अदालतों के लिए दोस्‍त, दार्शनिक और मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए. उन्‍होंने कहा, ‘तीन-स्तरीय न्‍याय व्‍यवस्‍था में आलोचना और निंदा की बजाय समझाने और मार्गदर्शन से बेहतर नतीजे मिलते हैं.’ इन दोनों की टिप्‍पणियां ऐसे समय आई हैं, जब हाल में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के आदेश को सबसे खराब और त्रुटिपूर्ण करार दिया था और उन्‍हें आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोकने का निर्देश दिया था. हालांकि, बाद में पीठ ने यह आदेश वापस लेते हुए मामले को हाई कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश पर छोड़ दिया.

CJI की बड़ी टिप्‍पणी

CJI गवई ने कहा, ‘कोई भी जज ऐसा नहीं है जिसने कभी गलती न की हो. यही सिद्धांत हाईकोर्ट के जजों पर भी लागू होता है. अपील सुनते समय उनकी क्षमता या ज्ञान पर प्रहार करने से बचना चाहिए. जरूरत पड़ने पर प्रशासनिक तरीके से सुधार के बिंदु बताए जा सकते हैं. इस काम में हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश की अहम भूमिका है.’ जस्टिस सूर्य कांत ने जोड़ा कि हाईकोर्ट के जज और निचली अदालतों के न्‍यायिक अधिकारी अलग-अलग सामाजिक पृष्‍ठभूमि से आते हैं और अपने साथ व्‍यापक जीवन अनुभव लाते हैं, जिसे कानूनी प्रशिक्षण के जरिए और निखारा जा सकता है.

‘सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार नहीं’

जस्टिस सूर्य कांत ने यह भी स्‍पष्‍ट किया कि सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट का रोस्‍टर तय करने या यह निर्देश देने का अधिकार नहीं है कि कौन सा जज कौन सा मामला सुनेगा. यह पूरी तरह संबंधित हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश का विशेषाधिकार है. CJI गवई ने अंत में कहा, ‘हर संवैधानिक अदालत का जज (चाहे वह हाईकोर्ट में हो या सुप्रीम कोर्ट में) का दायित्‍व है कि हर मामले में न्‍याय सुनिश्चित करे. आदेश लिखते समय या टिप्‍पणी करते समय गरिमा और शालीनता बनाए रखना सुपीरियर कोर्ट की गंभीर जिम्‍मेदारी है.’

Manish Kumar

बिहार, उत्‍तर प्रदेश और दिल्‍ली से प्रारंभिक के साथ उच्‍च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्‍लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें

बिहार, उत्‍तर प्रदेश और दिल्‍ली से प्रारंभिक के साथ उच्‍च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्‍लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

August 11, 2025, 09:42 IST

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CJI बीआर गवई ने अपनों को दी नसीहत, हाईकोर्ट जजों के रोस्‍टर पर कही बड़ी बात

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