Xi Jinping Vs Donald Trump: अमेरिका सुपर पावर, तो चीन दूसरी बड़ी इकॉनमी. दो प्रतिद्वंदियों के बीच ट्रेड वॉर जैसा कंपटीशन होना आम है. यूएस में रिपब्लिकन सरकार हो या डेमोक्रेट्स, चीन के साथ टशन बनी ही रहती है. इस बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बड़ी बेबाकी से ट्रंप की कमजोर नस को ट्रिगर करके उनके बराबर की चोट दी है उसका अंदाजा सिर्फ ट्रंप को होगा या ट्रंप के उन लोगों को जिनके हितों के वो कथित रक्षक बनकर दुनिया को अपने टैरिफ की धौंस से डरा रहे हैं.
'डॉलर पर चीन का प्रहार'
अब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का दिमागी कौशल देखिए कि कैसे उन्होंने ट्रंप के टैरिफ वाले गुब्बारे की हवा निकालते हुए उसे लत्ता कर दिया. दरअसल चीन कभी अमेरिकी सोयाबीन का सबसे बड़ा खरीदार था, उस चीन ने इस साल अमेरिका से सोयाबीन का एक दाना भी नहीं खरीदा है. इस वजह से अमेरिकी सोयाबीन की कीमतें तेजी से गिर रही हैं और अमेरिकी किसानों दहशत में हैं.
जिनपिंग के इस फैसले ने ट्रंप को उनकी हद बता दी है. बीजिंग ने ये फैसला लेकर डायरेक्ट-इनडायरेक्ट यानी जाने अनजाने में चल रहे ट्रेड वॉर में सोयाबीन को रेयर अर्थ मैटेरियल जितना अहम बनाकर उसका फायदा उठाने की नई मिसाल पेश की है. यानी अब सोयाबीन की बारी है.
रूरल अमेरिका में 'खूनखराबा'?
इस बीच ट्रंप ने कहा कि वो इसी महीने के अंत में दक्षिण कोरिया में होने वाले एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से इस रोक के बारे में बात करेंगे. ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किया, 'हमारे देश के सोयाबीन किसानों को नुकसान हो रहा है क्योंकि चीन केवल 'बातचीत' के लिए सोयाबीन नहीं खरीद रहा है. सोयाबीन चर्चा का एक प्रमुख विषय होगा.'
ट्रंप की परेशानी ये है कि उनके फैसलों का अमेरिका के अंदर खुला विरोध हो रहा है, भले ही ट्रंप को उसकी कोई परवाह न हो लेकिन चिंता की बात तो है. दूसरी ओर बड़ी जोत के कई रईस अमेरिकी किसान जिन्होंने साल 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप का खुला समर्थन किया था अब वो चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हालात जल्दी नहीं बदले तो ग्रामीण अमेरिका में 'खूनखराबा' हो सकता है, उनको भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.
यह क्यों मायने रखता है?
सोयाबीन सिर्फ फलियां नहीं हैं - यह अमेरिका का नंबर 1 खाद्य निर्यात है, 60 अरब डॉलर का उद्योग जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है. इस साल, अमेरिका में सोयाबीन का रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन हुआ है और उसे बेचने के लिए एक भी खरीददार नहीं दिख रहा है.
शी जिनपिंग की चतुराई की बात करें तो चूंकि चीन दुनिया के कुल सोयाबीन का लगभग 61% खरीददार है, जिससे यह एक खरीदार के रूप में सबसे अहम भूमिका में आ जाता है. और इस साल तो चीन ने अमेरिका की मौजूदा सोयाबीन की फसल का एक दाना भी नहीं खरीदा है. यह शी जिनपिंग की रणनीति का हिस्सा है, इस तरह ट्रंप के नए टैरिफ के जवाब में चीन भी अपनी आर्थिक ताकत दिखा रहा है.
चीनी इकॉनमिस्ट लू टिंग का कहना है कि अमेरिकी सोयाबीन अब चीन के लिए उतना जरूरी नहीं है. इसलिए चीन, आयात पर लगे बैन को अपनी सौदेबाजी के टूल की तरह इस्तेमाल कर सकता है. ट्रंप के टैरिफ ने यूरिया और अन्य कृषि उपकरणों की लागत बढ़ा दी है, जिससे मुनाफा कम हुआ है. वहां के किसान अपनी फसल स्टोर कर रहे हैं यानी बिक्री में देरी कर रहे हैं और वायदा बाज़ारों में गिरावट देख रहे हैं.
दूसरी ओर आयोवा के सोयाबीन उत्पादक किसान का कहना है कि अभी फसल बेचने का फायदा नहीं है. चीन के साथ जल्द ही डील न हुई तो हमारे सोयाबीन बाजार में खून-खराबा हो सकता है. अमेरिकी किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है क्योंकि खर्च ज्यादा हो रहा है और खरीदार नजर नहीं आ रहे रहे हैं. इस वजह से शी जिनपिंग, डोनाल्ड ट्रंप पर भारी पड़ रहे हैं और कथित टैरिफ किंग ट्रंप चीन के आगे लाचार नजर आ रहे हैं.
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