DNA: US ने PAK को मिसाइल देने का समझौता किया तो भारत ने तोड़ दिया 'बगराम' का सपना! आखिर इस एयरबेस के पीछे क्यों पड़ा है अमेरिका?

3 hours ago

India vs USA at Bagram Airbase: अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ मिसाइल डील की है. इस मिसाइल डील के जरिए ट्रंप अपना फायदा निकालना चाहते हैं. वे अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस दोबारा लेने की बात भी कह चुके हैं. दरअसल ट्रंप चाहते हैं कि अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस दोबारा उनके हाथों में आ जाए. ट्रंप की इस ख्वाहिश की वजह से भारत, चीन और रूस जैसी शक्तियां एक मंच पर आ गई हैं. सबसे पहले हम आपको ट्रंप की वजह से हुई इस लामबंदी से जुड़ी बड़ी खबर बताने जा रहे हैं.

ट्रंप की योजना का विरोध

अफगानिस्तान को लेकर रूस की राजधानी मॉस्को में एक बैठक हुई थी. इस बैठक में रूस, चीन, भारत समेत मध्य एशियाई देशों ने बगराम में कथित अमेरिकी मौजूदगी का विरोध किया है. सभी देशों ने ट्रंप के इस प्लान को मध्य और दक्षिण एशिया में अस्थिरता लाने वाला कदम करार दिया है और अमेरिकी दबाव के सामने अफगानिस्तान को मदद का आश्वासन भी दिया है.

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ट्रंप को अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस क्यों चाहिए और क्यों इस कोशिश का विरोध किया जा रहा है. ये भी हम आपको बताएंगे. उससे पहले आपको मॉस्को में हुई मीटिंग का एक दिलचस्प तथ्य जानना चाहिए. इस मीटिंग में पाकिस्तान भी मौजूद था और पाकिस्तान ने भी साझा बयान पर दस्तखत किए हैं. 

पाकिस्तान को दिए हथियारों पर प्रतिबंध

ये पाकिस्तान है, जो कभी भी पलट जाता है. इसी वजह से ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ सामरिक डील में ऐसे प्रावधान जोड़ दिए हैं. जो पाकिस्तान को अपने मौजूदा रुख से पलटने का मौका देंगे और साथ ही ट्रंप के बगराम प्लान को भी आगे बढ़ाएंगे.

डील के प्रावधानों में से एक में लिखा गया है कि अमेरिका से मिलने वाली सामरिक मदद का इस्तेमाल अफगानिस्तान में स्थिरता कायम रखने के लिए भी किया जाएगा. इन हथियारों का इस्तेमाल ऐसे ऑपरेशंस में भी किया जाएगा. जिनके जरिए अफगानिस्तान में छिपे प्रतिबंधित आतंकियों को टारगेट किया जाएगा.

मुनीर के कंधों पर बंदूक रखकर धमकाने की नीति

मतलब साफ है कि पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखकर ट्रंप अब अफगानिस्तान को धमकाना चाहते हैं ताकि बगराम एयरबेस उनकी मुट्ठी में आ सके. अब सवाल ये उठता है कि बगराम को लेने के लिए ट्रंप इतने बेताब क्यों है. इस सवाल का पहला जवाब है, बगराम का क्षेत्रफल और उसकी क्षमता.

बगराम एयरबेस अफगानिस्तान के परवान प्रांत में है और ये तकरीबन 5 हजार एकड़ में फैला है. बड़ा क्षेत्रफल होने की वजह से इस एयरबेस पर C-130 HERCULES और C-17 GLOBEMASTER जैसे बड़े विमान तैनात किए जा सकते हैं. इस एयरबेस पर 3 बड़े हैंगर हैं, जहां चिनूक और अपाचे जैसे अटैक और सप्लाई हेलीकॉप्टर तैनात किए जा सकते हैं.

बगराम एयरबेस कितना बड़ा है?

बगराम एयरबेस का रनवे 11800 फीट लंबा है, जिसकी वजह से एक के बाद एक फाइटर जेट यहां से उड़ान भर सकते हैं. बड़ा क्षेत्रफल होने की वजह से इस बेस पर तकरीबन 40 हजार सैनिक रह सकते हैं. यानी अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस किसी किले से कम नहीं है.

बगराम एयरबेस की क्षमता एक फैक्टर है लेकिन बगराम का एक्स फैक्टर है. इसकी लोकेशन बगराम की लोकेशन क्यों महत्वपूर्ण मानी जाती है. ये भी हम आपको बताएंगे. उससे पहले आपको वो दलील देख लेनी चाहिए, जिसके आधार पर अमेरिका और नाटो के देश बगराम पर अधिकार मांग रहे हैं.

अमेरिका का दावा है कि अफगानिस्तान में आतंक के खिलाफ युद्ध के दौरान अमेरिका ने बगराम एयरबेस को विकसित किया था. इसी आधार पर बगराम उसे वापस मिलना चाहिए. 

सोवियत संघ ने किया था बेस का निर्माण

ट्रंप और उनके सहयोगियों का दावा है कि बगराम एयरबेस नाटो फौज ने बनाया. अब हम इसी दावे का FACT CHECK करने जा रहे हैं ताकि आप समझ सकें कि पश्चिमी जगत सिर्फ भेदभाव ही नहीं करता बल्कि कोरा झूठ भी बोलता है.

बगराम एयरबेस का निर्माण वर्ष 1957 में शुरु हुआ था. तत्कालीन अफगान सरकार को मदद देने के लिए सोवियत संघ ने ये एयरबेस बनाया था. वर्ष 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया. तब इस एयरबेस को अपग्रेड किया गया था. यहां विमानों के साथ ही हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट विमानों की तैनाती के इंतजाम किए गए थे...वर्ष 2006 में.

जब नाटो की फौज इस बेस पर पहुंची तो यहां सैनिकों के लिए रहने के लिए तंबू और पिज्जा जैसे फास्ट फूड बेचने के लिए कुछ दुकानें बनाई गई थीं.

बगराम क्यों पाना चाहते हैं ट्रंप?

इसी वजह से सवाल पूछा जा रहा है. क्या पिज्जा की दुकानों और तंबुओं को आधार बनाकर बगराम को ट्रंप अपनी प्रॉपर्टी बता रहे हैं. पश्चिमी जगत की दलील भले ही कमजोर हो लेकिन प्लानिंग बड़ी मजबूत है. बगराम के जरिए अमेरिका और नाटो क्या हासिल कर सकता है. ये भी आपको बेहद गौर से समझना चाहिए.

#DNAWithRahulSinha | तालिबान के एयरबेस पर भारत Vs अमेरिका, ट्रंप का 'कब्जा'..हिंदुस्तान नहीं होने देगा!

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— Zee News (@ZeeNews) October 8, 2025

बगराम एयरबेस से चीन के कुछ परमाणु संयंत्रों की दूरी सिर्फ 800 किलोमीटर है. यानी बगराम के जरिए चीन के परमाणु संयंत्रों की पक्की निगरानी की जा सकती है. बगराम एयरबेस किर्गिस्तान और कजाकिस्तान जैसे मध्य एशियाई देशों के भी नजदीक है. जिन्हें ट्रंप अब्राहम समझौते का हिस्सा बनाना चाहते हैं. इसके साथ ही बगराम से ईरान के बॉर्डर की दूरी भी सिर्फ 650 किलोमीटर है. यानी बगराम के जरिए ट्रंप अपने पारंपरिक प्रतिद्वंदी ईरान पर भी प्रेशर बनाकर रख सकते हैं.

अब तीखे विरोध के बाद क्या करेंगे ट्रंप?

यानी ट्रंप का प्लान बगराम अमेरिका की हर सामरिक जरूरत को पूरा कर सकता है. बड़ा सवाल ये है कि क्या तालिबान इस प्लान को अंजाम तक पहुंचने देगा. मॉस्को में लामबंदी का हिस्सा बनकर तालिबान ने संकेत दे दिया है कि बगराम में अमेरिकी मौजूदगी तालिबान को कबूल नहीं है. 

मॉस्को में मीटिंग विदेश मंत्री का सख्त बयान और भारत समेत रूस जैसे देशों का विरोध. ये सभी तथ्य अगर मिलाए जाएं तो एक तस्वीर तैयार होती है. जो बताती है कि ट्रंप चाहे तो ताकत की नुमाइश कर लें. पाकिस्तान के जरिए डराने की कोशिश कर लें. लेकिन उनका बगराम वाला ख्वाब फिलहाल पूरा होता नहीं नजर आता.

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