बिहार चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस रविवार को मंथन करने बैठी. राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की बिहार के नेताओं के साथ लंबी मीटिंग हुई. सवाल सिर्फ इतना था कि आखिर पार्टी इतनी बुरी तरह क्यों हारी और अब आगे क्या? इसमें न सिर्फ कांग्रेस की कमियों पर बात हुई, बल्कि महागठबंधन की रणनीति और नेतृत्व पर भी कई सवाल खड़े कर दिए. पार्टी नेताओं ने हार की 7 वजह गिनाईं, लेकिन सबसे खास बात, आरजेडी हार का ठीकरा आरजेडी और तेजस्वी यादव पर फोड़ने की कोशिश हुई.
कांग्रेस ने हार के माने 7 कारण
1. राजद ने कांग्रेस को ‘डंपिंग ग्राउंड’ वाली सीटें थमाईं
कांग्रेस नेताओं ने खुलकर स्वीकार किया कि सीटों का वितरण ही हार की सबसे बड़ी जड़ था. कांग्रेस 61 सीटों पर लड़ी, जिसमें से 23 ऐसी थीं जहां कई चुनावों से कांग्रेस या राजद कभी जीत ही नहीं पाई थी. 15 सीटों पर पार्टी या राजद के खाते में सिर्फ एक बार जीत रही थी. कुल मिला कर कांग्रेस को जिताऊ सिर्फ 14 सीटें मिलीं और उन्हीं में से उसने 6 जीतीं. इसके अलावा सहयोगी दलों के बीच फ्रेंडली फाइट की नौ सीटों पर नुकसान हुआ. बैठक में कई नेताओं ने साफ कहा, राजद ने हमें जीतने लायक सीटें नहीं दीं, बल्कि अपने कमजोर क्षेत्रों को ठूंस दिया.
2. तेजस्वी को जबरन सीएम फेस घोषित करने का दबाव
बैठक में यह भी माना गया कि आरजेडी बार-बार तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित करवाने पर अड़ी रही, जबकि महागठबंधन का नेता वह था जिसे सरकार बनने पर सर्वसम्मति से तय होना था. कांग्रेस के मुताबिक, इस ‘जबरन नेतृत्व थोपने’ वाली राजनीति का असर कई वर्गों में नकारात्मक पड़ा. तेजस्वी को सीएम घोषित करने की मजबूरी के चलते महागठबंधन को मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम बनाने का वादा भी करना पड़ा, जिससे मुस्लिम और सवर्ण मतदाता दोनों खिसक गए. मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा ओवैसी और जदयू की ओर गया और दलित वोटों में भी सेंध लगी.
3. नीतीश के मुकाबले तेजस्वी की छवि कमजोर
कांग्रेस की समीक्षा रिपोर्ट में यह स्पष्ट कहा गया कि तेजस्वी यादव अब भी नीतीश कुमार जैसे अनुभवी चेहरे की बराबरी नहीं कर पाए. नीतीश के शासन मॉडल को लेकर चाहे कितनी आलोचना क्यों न हो, लेकिन प्रशासन, अनुभव और ‘स्थिरता’ की छवि अब भी उनके पक्ष में गई. कांग्रेस नेताओं ने कह, जब सीएम के मुकाबले का चेहरा ही कमजोर हो, तो गठबंधन की बाकी मेहनत बेकार होती है.”
4. तेजस्वी चुनाव में देर से उतरे, मुद्दे जनता तक नहीं पहुंचे
तेजस्वी यादव ने पांच साल विपक्ष में रहने के बावजूद वह आक्रामकता नहीं दिखाई, जिसकी आवश्यकता थी. चुनाव प्रचार में उन्होंने आखिरी वक्त में वादों की झड़ी लगा दी. राहुल गांधी ने मीटिंग में कहा कि रोजगार, पलायन, किसान संकट और लाभार्थी योजनाओं जैसे बड़े मुद्दों को तेजस्वी को लंबे समय से और लगातार उठाना चाहिए था. आखिरी दिनों में रोज 18 रैलियां करना सिर्फ ‘उम्मीदवार जिताओ’ अपील तक सीमित रहा.
5. बीजेपी की ग्राउंड मैनेजमेंट और ‘जीविका मॉडल’
कांग्रेस ने बैठक में यह माना कि बीजेपी ने इस बार जबरदस्त ग्राउंड गेम खेला. पार्टी ने दूसरे राज्यों से सैकड़ों कार्यकर्ता बिहार भेजे, जिन्हें टिकट, पैसा और ज़िम्मेदारी दी गई. इसके अलावा जीविका दीदियों को चुनाव के दौरान भी 10,000 रुपये मिलते रहे—जिसने महिला मतदाताओं में BJP को बढ़त दिलाई. कांग्रेस नेताओं ने कहा कि यह चुनाव आयोग की भूमिका और मॉनिटरिंग पर भी सवाल उठाता है लेकिन विरोध के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई.
6. वोट चोरी और EVM पर रणनीति कमजोर
कांग्रेस ने ‘वोट चोरी’ और चुनाव आयोग-बीजेपी की मिलीभगत को बड़ा मुद्दा बताया और आगे भी इसे उठाने की बात कही. राहुल गांधी ने यात्रा के जरिए यह मुद्दा जनता तक ले जाने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस के छोटे संगठन और सीमित संसाधनों के कारण यह मसला बड़े पैमाने पर नहीं फैल पाया. कांग्रेस ने यह भी कहा कि तेजस्वी यादव ने ममता बनर्जी की तरह इस मुद्दे को आक्रामकता से नहीं उठाया और जनता तक जोड़ने में विफल रहे. बैठक में मौजूद एक नेता ने कहा, बड़ा दल होकर भी राजद चुप रहा और इस वजह से पूरे विपक्ष का मुद्दा अधूरा रह गया.
7. कांग्रेस अब आंकड़ों के साथ लड़ाई लड़ेगी
समीक्षा के बाद कांग्रेस ने नया प्लान तय किया. पार्टी आने वाले दिनों में वोट चोरी, EVM गड़बड़ी और SIR से जुड़े आंकड़े जुटाएगी और उन्हें सार्वजनिक करेगी. राहुल गांधी और खरगे ने लालू यादव और तेजस्वी से फोन पर बात की है, और अब कांग्रेस इंडिया ब्लॉक के बाकी दलों से भी संपर्क कर रही है. सूत्रों के मुताबिक, दिसंबर में दिल्ली के रामलीला मैदान में बड़ी रैली करने की योजना है. जहां कांग्रेस चुनाव चोरी मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाएगी और विपक्षी दलों को साथ लाने की कोशिश करेगी.
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2 hours ago
