भूमिहार, राजपूत, यादव या लव-कुश? बिहार में अगले 5 साल किस जाति का रहेगा दबदबा?

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Last Updated:November 16, 2025, 18:43 IST

Bihar Chunav Results 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यहां की राजनीति में जातीय समीकरण सर्वोपरि है. NDA की बड़ी जीत के बाद अगले 5 साल किस जाति के विधायकों का दबदबा रहेगा? राजपूत 32, यादव 28, कुशवाहा 26, कुर्मी 25, भूमिहार 23, वैश्य 26, ब्राह्मण 14, मुस्लिम 11 पहुंचे हैं.

भूमिहार, राजपूत, यादव या लव-कुश? बिहार में अगले 5 साल किस जाति का रहेगा दबदबा?बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में किस जाति के कितने कैंडिडेट जीते?

पटना. बिहार चुनाव 2025 का रिजल्ट आ गया है. क्योंकि, बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर टिकी रही है. ऐसे में हर वर्ग के मतदाता या वोटर्स यह जानने की कोशिश करते रहते हैं कि उनके जाति के कितने एमएएलए जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं? बता दें कि बिहार चुनाव 2025 के रिजल्ट आने के बाद कई जातियों की सीटों के समीकरण में काफी उतार-चढ़ाव आया है. साल 2015 और 2020 के मुकाबले इस बार कितने भूमिहार, राजपूत, कोइरी यानी कुशवाहा, कुर्मी, यादव और ब्राह्मण जातियों के कैंडिडेट जीतकर विधानसबा पहुंचे हैं? लेकिन एक जाति ने इस बार के चुनाव परिणाम में सबको चौंका दिया है. इस जाति का लंबे समय के बाद बिहार में अगले पांच साल तक दबदबा रह सकता है?

राजनीतिक पंडितों के लिए यह विश्लेषण जरूरी है कि इस जीत के बाद अगले 5 साल तक बिहार विधानसभा में किस जाति के विधायकों का नीति-निर्धारण में वर्चस्व रहेगा? बिहार की राजनीति में जातीय पहचान सबसे मजबूत आधार मानी जाती है और मंत्रिमंडल गठन के साथ-साथ अगले विधानसभा तक इसी जातीय समीकरण का असर दिखेगा. बता दें कि इस बार अति पिछड़ा वर्ग यानी EBC के 65-75 एमएलए जीतकर आए हैं. कुशवाहा यानी कोइरी, तेली, मल्लाह, नाई, नुनिया जाति के विधायकों की संख्या सबसे अधिक है.

पिछड़ा वर्ग इस बार 55-65 विधायक चुनकर आए हैं.

बिहार विधानसभा में किस जाति के कितने एमएलए?

अगर बात पिछड़ा वर्ग की करें तो इस वर्ग से 55-65 विधायक चुनकर आए हैं. इसमें यादव, कुर्मी,वैश्यों की उपस्थिति मजबूत है. 2020 में विधानसभा में यादवों की संख्या 55 थी तो 2025 में उनकी संख्या घटकर सिर्फ 28 रह गई. 2015 में यादव 61 सीटों पर चुनाव जीते थे. ज्यादातर आऱजेडी के थे. लेकिन इस बार इनकी संक्या काफी कम हो गई है. बिहार चुनाव कुशवाहा और कुर्मी जाति के लिए यादगार रहा. 2020 में 10 कुर्मी विधायक थे, जो इस बार बढ़कर 25 हो गई है. वहीं, कुशवाहा 16 से बढ़कर इस बार 26 पहुंच गई है. वैश्य 22 से बढ़कर 26 तक पहुंच गए हैं.

भूमिहार, ब्राह्मण या राजपूत?

इस बार अपर कास्ट यानी सामान्य वर्ग में सबसे मजबूत प्रदर्शन राजपूतों ने किया है. राजनीतिक दलों ने खासकर एनडीए ने सबसे ज्यादा राजपूतों को टिकट दिया था. 2020 चुनाव के चुनाव में राजपूत एमएलए की संख्या 18 थी, जो इस बार बढ़कर 32 सीटों तक पहुंच गई है. इस बार भूमिहार जाति के कैंडिडेट ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है. 2020 में जहां इस जाति के 17 विधायक थे, वहीं 2025 में भूमिहार जाति के 23 विधायक हो गए हैं. दोनों ही जातियों की सीटों में बढ़ोतरी से यह साफ है कि इस बार अपर कास्ट के वोटर्स ने एकजुट होकर वोट किया है.

बिहार चुनाव 2015 में ब्राह्मणों की संख्या में कुछ ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है.

किस जाति के विधानसभा में सबसे अधिक विधायक?

बिहार चुनाव 2015 में ब्राह्मणों की संख्या में कुछ ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है. 2020 में 12 ब्राह्मण जीते थे तो इस बार 14 विधायक जीतकर आए हैं. कायस्थ जाति का हाल भी 2020 जैसा ही हुआ है. जहां 2020 में कायस्थ विधायक 3 थे तो वहीं 2025 में 2 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं.

क्या ईबीसी विधायक होंगे निर्णायक?

कुलमिलाकर अगर ओवर ऑल जातियों की बात करें तो अभी भी यादवों का बिहार विधानसभा में दबदबा रहेगा. क्योंकि इस बार भी राजपूत विधायक 32, यादव विधायक 28 जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. इसके बाद 26 वैश्य, 23 भूमिहार, इसके बाद 26 कुशवाहा, 25 कुर्मी, 14 ब्राह्मण और 2 कायस्थ विधायकों का नंबर आता है. इसके साथ ही ईबीसी यानी पिछड़ा वर्ग के 13, दलितों के अलग-अलग जातियों से 36 और 11 मुस्लिम विधायक सदन पहुंचे हैं.

कुलमिलाकर बिहार विधानसभा में अगले 5 वर्षों तक संख्यात्मक रूप से अति पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी का दबदबा बना रहेगा, जो नीतीश कुमार के राजनीतिक आधार का मुख्य स्तंभ है. ईबीसी और दलित वर्ग के विजेताओं की कुल संख्या 120 से अधिक होने का अनुमान है, जो विधानसभा में निर्णायक भूमिका में होंगे.

रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर

भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें

भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...

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First Published :

November 16, 2025, 18:43 IST

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