हाइलाइट्स
नामिनेट किए जाने वाले पांच विधायकों में दो राज्य से बाहर गए कश्मीर पंडित होंगेइसमें पीओके शरणार्थी समुदाय और महिलाओं से लोगों को नामित किया जाएगाइसके बाद कश्मीर विधानसभा में कुल सीटें 95 हो जाएंगी, बहुमत का आंकड़ा 48 का होगा
जम्मू कश्मीर में अभी राज्य सरकार नहीं बनी है. विधानसभा के लिए हुई वोटिंग की गिनती भी नहीं हुई है लेकिन एक नए विवाद ने जन्म ले लिया है क्योंकि राज्यपाल नई सरकार के गठन से पहले पांच विधायकों का नामिनेशन कर सकते हैं. इसका अधिकार नई व्यवस्था में उन्हें दिया गया है. इसे लेकर सियासी पार्टियों में तीखी प्रतिक्रिया है. वो सरकार के गठन से पहले ही इन विधायकों के नोमिनेशन का विरोध कर रहे हैं.
सवाल – जानते हैं कि पूरा मामला क्या है. कैसे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल को पहली बार पांच विधायकों के नोमिनेशन के अधिकार मिल गए?
– जम्मू और कश्मीर विधानसभा इतिहास में पहली बार पांच विधान सभा सदस्यों (विधायकों) को नामित करेगी. हालांकि इस कदम ने राजनीतिक विवाद को भी जन्म दिया है. इसकी व्यवस्था तभी कर दी गई थी जबकि जम्मू-कश्मीर का स्पेशल राज्य का दर्जा खत्म करके उसे केंद्र शासित राज्य बना दिया गया था. तभी उसमें 5 विधायकों को नामित करने की भी व्यवस्था की गई.
ये पांच सीटें कश्मीरी विस्थापित समुदाय के सदस्यों, पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर (POJK) से शरणार्थियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों से भारी जाएंगी. इसमें महिलाएं भी होंगी. ये नोमिनेशन प्रक्रिया जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन द्वारा तय किया गया है. हालांकि इस खबर को ज्यादा चर्चा नहीं मिली थी लेकिन संशोधन केंद्र सरकार द्वारा जुलाई 2023 में किया गया था. इससे विधानसभा में सदस्यों की संख्या 90 से बढ़कर 95 हो जाएगी.
सवाल – क्या ये नोमिनेशन राज्यपाल द्वारा मंत्रिपरिषद की सलाह पर किया जाएगा या राज्यपाल खुद करेंगे?
– इस नोमिनेशन का अधिकार पूरी तरह से राज्यपाल के पास होगा. मंत्रिपरिषद का इसमें कोई अधिकार नहीं होगा. ये काम राज्यपाल केंद्र के गृह मंत्रालय के साथ सलाह-मंत्रणा से करेंगे.
सवाल – इन पांच विधायकों का नोमिनेशन कब किया जाएगा?
– जब जम्मू – कश्मीर में 8 अक्टूबर को मतगणना खत्म होगी. उसके तुरंत बाद मनोनीत विधायकों का चयन किया जाएगा, जिससे 15 अक्टूबर तक सरकार का गठन हो सकता है.
सवाल – अगर पांच विधायकों को राज्यपाल नोमिनेट करते हैं तो राज्य में विधानसभा का समीकरण क्या हो जाएगा?
– तब विधानसभा में सदस्यों की संख्या 95 हो जाएगी. ऐसे में सरकार बनाने के लिए 48 विधायकों की जरूरत होगी. हालांकि चुनाव 90 सीटों के लिए हो रहे हैं. पहले 90 सीटों की इस विधानसभा में सरकार गठन के लिए बहुमत की सीमा 46 थी.
सवाल – इन नोमिनेटेड विधायकों को क्या सदन की कार्रवाई और सरकार बनाने में वोट देने का अधिकार होगा?
– हां, इन सदस्यों को ये अधिकार होगा. बल्कि नोमिनेशन के बाद ये किसी भी सियासी पार्टी की सदस्यता भी ले सकते हैं. मनोनीत विधायकों के पास पूर्ण विधायी शक्तियां होंगी, जिसमें विश्वास मत और प्रस्ताव जैसे सभी मामलों पर मतदान का अधिकार शामिल है. यह उन्हें भविष्य में किसी भी सरकार के गठन और विधायी निर्णयों में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाता है.
सवाल – कांग्रेस और अन्य सियासी पार्टियां इसका विरोध क्यों कर रही हैं?
– कांग्रेस पार्टी ने नामांकन का मुखर विरोध किया है. उसका तर्क ये है कि ये नोमिनेशन लोकतांत्रिक सिद्धांतों और लोगों के जनादेश को कमजोर करते हैं. उनका तर्क है कि इस तरह के नामांकन केवल एक नई सरकार के गठन के बाद ही होने चाहिए. सियासी पार्टियों को लग रहा है कि बीजेपी की केंद्र सरकार ने ये नियम अपने फायदे के लिहाज से बनाया है.
आलोचकों का कहना है कि उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार से परामर्श किए बिना सदस्यों को नामित करने की अनुमति देना असंवैधानिक है. इससे ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जहां सत्ता का संतुलन कृत्रिम रूप से बीजेपी के पक्ष में झुक जाता है.
सवाल – क्या विस्थापित पंडितों को विधानसभा में जगह देने की मांग पहले से होती रही है?
– दरअसल ये मांग की जा रही थी कि जो कश्मीर पंडित घाटी से विस्थापित हो गए हैं. या वो लोग पीओके से आए शरणार्थी हैं, उन्हें विधानसभा से जोड़ा जाना चाहिए. तो कहा जा सकता है विधायकों को मनोनीत करने के पीछे मुख्य प्रेरणा समुदायों विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों के महत्वपूर्ण विस्थापन से उपजी, जो 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में उग्रवाद के दौरान कश्मीर घाटी से भाग गए थे. वह लंबे समय से राजनीतिक तौर पर उनकी चिंताओं और मुद्दों को आवाज देने के लिए विधानसभा में रिजर्व सीट की मांग कर रहे थे. ऐसा कहा जा रहा है कि इस तरह के कदम से यह सुनिश्चित होगा कि 1990 में कश्मीर से भागे विस्थापित कश्मीरी पंडितों की शिकायतें आखिरकार विधानसभा तक पहुंचेंगी.
सवाल – सिक्किम विधानसभा में भी इसी तरह विधायकों के नोमिनेशन की व्यवस्था है, वो क्या है?
– सिक्किम विधानसभा मॉडल में बौद्ध मठवासी समुदायों के लिए सीटें आरक्षित हैं. जो मंत्रिपरिषद से सलाह के बाद राज्यपाल द्वारा की जाती है.
सवाल – क्या किसी और भी राज्य में ऐसी व्यवस्था है?
– पुडुचेरी के विधायी ढांचे में ऐसी व्यवस्था है, जहां चार मनोनीत सदस्य होते हैं. दिल्ली विधानसभा में सात सदस्यों को नोमिनेट किया जाता है. आंध्र प्रदेश, गोवा, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में एक एक सदस्य को विधानसभा में नोमिनेट किया जाता है.
सवाल – क्या जम्मू कश्मीर में चुनी हुई सरकार के साथ विधान परिषद भी बहाल हो जाएगी?
– नहीं, जम्मू-कश्मीर में अब विधान परिषद खत्म कर दिया गया है.
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FIRST PUBLISHED :
October 7, 2024, 13:09 IST