Last Updated:March 12, 2025, 11:47 IST
Holi Celebration: समस्तीपुर के भिरहा गांव में 1836 से ब्रज की तर्ज पर होली मनाई जाती है. राष्ट्रकवि दिनकर और डॉ राजेंद्र प्रसाद भी यहां की होली देखकर भाव विभोर हो गए थे. यहां की होली की तुलना वृंदावन से होती है...और पढ़ें

1836 ईस्वी से भिरहा गांव में चली आ रही है होली की अनोखी परंपरा
हाइलाइट्स
समस्तीपुर के भिरहा गांव में 1836 से ब्रज की तर्ज पर होली मनाई जाती है.राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भिरहा गांव को बिहार का वृंदावन कहा था.प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी भिरहा की होली देख भाव विभोर हो गए थे.समस्तीपुर. ओम से लेकर अछूत तक, हिंदू से लेकर मुसलमान तक… जहां टूट जाती है जाति और मजहब की दीवार. जिसकी तुलना ब्रज और वृंदावन से होती है. जहां राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी हो भाव विभोर हो गए थे… हम बात कर रहे हैं समस्तीपुर जिला के भिरहा गांव की जहां रंगों का त्योहार होली अपने आप में खास है. यहां की होली को देखने के लिए समस्तीपुर में बिहार और देश के दूसरे राज्यों से भी लोग आते हैं हर उम्र के लोगों की होली की मस्ती यहां देखने लायक होती है. भिरहा के मशहूर होली की कब हुई शुरुआत- समस्तीपुर जिले के रोसरा थाना के भिड़हा गांव में 1836 ई. से ब्रज की तर्ज पर होली उत्सव मनाया जाता है. राष्ट्रकवि दिनकर ने इस गांव को बिहार का वृंदावन कहा था. भिरहा गांव की होली की यही पहचान निराली है. ऐसी व्यवस्था भिरहा के हर बुजुर्ग, जवान, बच्चे, अपना दायित्व समझते हैं और पूरी मस्ती के साथ होली का आनंद लेते. इस गांव ने आज भी ब्रज के तर्ज पर होली खेलने की परम्परा जीवंत है.
इसके इतिहास पर नजर डालें तो सन 1835 में गांव के कई बुजुर्ग एक साथ होली देखने वृंदावन गए थे. वहां से लौटने के पश्चात ग्रामीणों द्वारा लिये गए निर्णयों पर वर्ष 1836 से भिरहा में ब्रज की तर्ज पर होली उत्सव मनाना प्रारंभ किया गया. लगातार 105 वर्षो तक एकसाथ होली मनाने के बाद वर्ष 1941 में घनी आबादी वाला यह गांव तीन भागों में बंटकर होली मनाने लगा. गांव के तीनों टोलों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में सजावट के साथ साथ देश के उच्चकोटी के बैण्ड पार्टी एवं नर्तकियों को कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए बुलाया जाता है.
1967 ई में होली के मौके पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के द्वारा भिरहा गांव में रश्मिरथी का पाठ भी किया गया था.
होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन की संध्या से ही पूरब, पश्चिम एवं उत्तर टोले में निर्धारित स्थानों पर अलग अलग नर्तकियों का नृत्य जारी रहता है. मध्य रात्रि के बाद गाजे बाजे के साथ तीनों टोले से निकला जुलूस गांव के विद्यालय के प्रांगण में पहुंचती है. जहां विशाल होलिका दहन के पश्चात पटना और बनारस, राजस्थान, से आये तीनों बैण्ड पार्टी के बीच होती है घंटों प्रतियोगिता. उसमें प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले को पुरस्कार से भी नवाजा जाता है. इस दौरान क्षेत्र के हजारों लोग उपस्थित रहते हैं. बड़े-बड़े तोरण द्वार और चमचमाते रोलेक्स के बीच सम्पूर्ण गांव पूरी रात दुधिया रोशनी से जगमग रहता है.
होली के दिन बड़े बुजुर्ग के साथ बच्चे भी एक साथ लेते हैं नृत्य का आनंद
होली के दिन भी नृत्य का आनन्द लेने के पश्चात तीनों टोली दोपहर बाद गांव के एक किनारे स्थित फगुआ पोखर पहुंचते हैं, जहां पूरे गांव के लोग सभी प्रतिद्वंदिता एवं वैमनस्यता को त्याग कर दो भागों में विभक्त हो जाते हैं. सैकड़ों हाथों से घंटों चलती रहती है रंगों की पिचकारी जिससे पोखर का पानी भी गुलाबी रंग में बदल जाता है. भिरहा की होली न सिर्फ मिथिलांचल में बल्कि देश स्तर पर इसकी एक अलग पहचान बन चुकी है.
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भिरहा गांव को बिहार का वृन्दावन कहा था.
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद होली को देखने के लिए पहुंचे थे भिरहा गांव
यहां के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1967 ईस्वी में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर और देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद इस गांव की अनोखी होली की परंपरा को देखने के लिए यहां आए थे और देख कर भाव विभोर हो गए थे. उस वक्त राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के द्वारा भिरहा गांव में रश्मिरथी का पाठ भी किया गया था. यहां की होली को देखकर वह इतना खुश हुए थे कि इसकी तुलना वृंदावन की होली से की और उन्होंने कहा था जो लोग होली को देखने वृंदावन नहीं जा सकते हैं. वह भिरहा आकर वृंदावन की होली का आनंद ले सकते हैं. हिंदी के प्रसिद्ध कवि और विद्वान आरसी प्रसाद ने भी भिरहा के पचवारी हरी मंदिर पर उसे वक्त आयोजित किए गए एक समारोह में यहां की होली की तुलना वृंदावन से की थी.
पूरी मस्ती के बावजूद सभी रहते हैं अनुशासन में
आज तक इतिहास रहा है भिरहा में होली के महौल में इतनी भीड़ जुटने पर भी वहां पर चोरी लूट,महिलाओं के साथ छेड़ छाड़ की घटना आज तक सुनने को नहीं मिली हैं. ना ही इस आयोजन में पुलिस की तैनाती ही कभी रही है. हालांकि, पिछले कुछ सालों से प्रशासन के द्वारा अपने स्तर पर गांव में जाकर बैठकर जरूर की जाती है और पूरे इंतजाम की जानकारी ली जाती है.
Location :
Samastipur,Bihar
First Published :
March 12, 2025, 11:47 IST