Last Updated:July 02, 2025, 09:47 IST
Bihar Chunav 2025: "मर जाएंगे, पर भाजपा के साथ नहीं जाएंगे"...का नारा देने वाले नीतीश कुमार आज उसी भाजपा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. 2013 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी त...और पढ़ें

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सियासी साख और सम्मान की रणनीति को लेकर बिहार की राजनीति में विमर्श.
हाइलाइट्स
नीतीश कुमार कभी मोदी विरोधी रहे पर अब जेडीयू दफ्तर में मोदी की तस्वीर के साथ नया गठजोड़. बिहार चुनाव 2025 से पहले नीतीश की रणनीति, केंद्र की ताकत और मोदी की लोकप्रियता का सहारा. राजद और कांग्रेस ने नीतीश कुमार पर लगाया 'कुर्सी' के लिए सिद्धांतों से समझौता करने का आरोप.पटना. नीतीश कुमार का सियासी सफर और बार-बार मन का परिवर्तन, उतार-चढ़ाव और गठबंधन बदलावों की कहानी रही है. एक बार फिर एक बदलाव हुआ है और सीएम नीतीश कुमार के साथ पहली बार पीएम नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाले पोस्टर जेडीयू के पटना मुख्यालय में लगाए जाने ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है. यह कदम 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले एनडीए की एकजुटता को दर्शाने का प्रयास माना जा रहा है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि सीएम नीतीश का पीएम मोदी के साथ यह नया गठजोड़ न तो पूरी तरह मजबूरी है और न ही केवल रणनीति. यह दोनों का मिला जुला रूप है. लेकिन, इस दोस्ती या फिर सियासी मजबूरी को समझने के लिए पहले इसकी पूरी पृष्ठभूमि को भी जानना जरूरी है.
बता दें कि, वर्ष 2005 में भाजपा के साथ मिलकर उन्होंने लालू प्रसाद यादव के 15 साल के शासन को खत्म किया. लेकिन, 2013 में नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश कुमार ने 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया. उनका तर्क था कि वह सांप्रदायिक छवि वाले नेता के साथ नहीं चल सकते. इसके बाद 2015 में उन्होंने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर बिहार विधानसभा चुनाव जीता. लेकिन 2017 में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राजद से नाता तोड़कर फिर से भाजपा के साथ चले गए. वर्ष 2022 में एक बार फिर भाजपा से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुए, लेकिन 2024 में फिर से एनडीए में लौट आए.
नीतीश की राजनीति का नया शिफ्ट
इस बार-बार का गठबंधन बदलाव नीतीश कुमार को ‘पलटीमार’ या ‘पलटू राम’ जैसे तंजों को सुनने के लिए मजबूर होना पड़ा. लेकिन, यह भी सच है कि नीतीश की सियासी चालें बिहार की जटिल जातिगत और सामाजिक समीकरणों पर आधारित रही हैं. उनकी यह रणनीति उन्हें सत्ता में बनाए रखने में सफल रही है चाहे वह किसी भी गठबंधन के साथ हो. इसी का नतीजा है कि वह बीते दो दशक से बिहार के सत्ता के सिरमौर बने हुए हैं. हालांकि, जदयू दफ्तर में नीतीश कुमार और पीएम मोदी के साथ वाली उनकी तस्वीर ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है क्योंकि यह पहली बार है और नीतीश की राजनीति का नया शिफ्ट भी.
2013 में तत्कालीन गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को भाजपा प्रचार समिति की कमान सौंपे जाने के विरोध में नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़ दिया था. तस्वीर लुधियाना रैली की है.
नये बदलाव के पीछे की वजह क्या है?
हालांकि, जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने इसे नीतीश की बिहार के विकास के लिए प्रतिबद्धता और केंद्र के समर्थन का प्रतीक बताते हैं. उनका कहना है कि पोस्टरों में नारे जैसे ‘महिलाओं को रोजगार-नीतीश-मोदी सरकार फिर से’ और ‘बिहार में और उद्योग-नीतीश-मोदी सरकार फिर से’ इस गठबंधन की ‘डबल इंजन’ सरकार की छवि को मजबूत करने की कोशिश करते हैं. लेकिन सवाल वही कि क्या यह कदम नीतीश की मजबूरी है? या फिर 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले अपनी साख को मजबूत करने की कोशिश? आखिर इस सियासी यू-टर्न या फिर नये शिफ्ट के पीछे की वजह क्या है?
सियासी जमीन को मजबूत करने की कोशिश
बता दें कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और जेडीयू के 12 सांसद एनडीए के लिए महत्वपूर्ण हो गए. नीतीश ने इस मौके का फायदा उठाकर केंद्र में अपनी स्थिति मजबूत की. सूत्र बताते हैं कि जेडीयू ने दो कैबिनेट और एक राज्य मंत्री पद की मांग की थी जो भाजपा को मानना पड़ा. यह दिखाता है कि नीतीश अब गठबंधन में एक मजबूत साझेदार की भूमिका निभा रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर बिहार की सियासत में नीतीश का वोट बैंक, खासकर कुर्मी और अति पिछड़ा वर्ग उनकी ताकत है. लेकिन उनकी साख को हाल के वर्षों में बार-बार गठबंधन बदलने और स्वास्थ्य संबंधी चर्चाओं ने नुकसान पहुंचाया है. ऐसे में पएम मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की योजनाओं की छवि के सहारे नीतीश अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.
सीएम नीतीश अपनी गिरती लोकप्रियता को पीएम मोदी की पॉपुलैरिटी से जोड़कर जदयू की बेड़ा पार लगाने की रणनीति पर चल रहे हैं.
क्या सम्मानजनक विदाई की तैयारी है!
सवालय यह भी कि आखिर क्या चाहते हैं नीतीश? राजनीति के जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार का यह कदम सियासी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों में भाजपा और जेडीयू के बीच सीट बंटवारे और मुख्यमंत्री पद को लेकर टेंशन की संभावना है. भाजपा 2020 में जेडीयू से ज्यादा सीटें जीत चुकी है और अब बिहार में अपनी स्थिति को और मजबूत करना चाहती है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश को केंद्र में उप-प्रधानमंत्री या अन्य महत्वपूर्ण पद देकर ‘सम्मानजनक निकास’ (honorable exit) यानी राजनीति से सम्माजनक विदाई की योजना बनाई जा सकती है.
क्या जेडीयू का बीजेपी के आगे ‘समर्पण’ है?
दूसरी ओर, नीतीश की सियासी चालें चौंकाती रही है औरव वह बिहार में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए गठबंधन की ताकत का उपयोग करते हैं. जेडीयू के पोस्टरों में पीएम मोदी की तस्वीर लगाना न केवल एनडीए की एकजुटता का संदेश है, बल्कि यह भी दिखाता है कि नीतीश कुमार अब अपनी पुरानी ‘मोदी-विरोधी’ छवि को पूरी तरह त्याग चुके हैं. यह कदम उनके लिए सियासी रूप से जरूरी है, क्योंकि बिहार में राजद और तेजस्वी यादव की चुनौती को कम करने के लिए उन्हें केंद्र सरकार की ताकत और मोदी की लोकप्रियता की जरूरत है. हालांकि, विपक्ष इसे नीतीश की ‘मजबूरी’ करार दे रहा है. राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि यह जेडीयू का भाजपा के सामने ‘समर्पण’ है.
जदयू ऑफिस में पहली बार सीएम नीतीश कुमार के साथ पीएम मोदी के तस्वीर वाले पोस्टर लगे.
भविष्य की राह और चुनौतियां
राजनीति के जानकारों की नजर में नीतीश कुमार का यह कदम बिहार की सियासत को कई तरह से प्रभावित कर सकता है. एक ओर, यह एनडीए को मजबूत करने की कोशिश है, लेकिन दूसरी तरफ यह जेडीयू के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में असमंजस पैदा कर सकता है जो नीतीश की पुरानी धर्मनिरपेक्ष छवि से जुड़े थे. इसके अतिरिक्त चिराग पासवान जैसे अन्य एनडीए सहयोगियों के साथ तनाव भी बढ़ सकता है जो नीतीश के नेतृत्व को लेकर पहले से असंतुष्ट रहे हैं.जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार की सियासी रणनीति हमेशा से बिहार के सामाजिक समीकरणों पर टिकी रही है. उनकी अगुवाई में बिहार में जातिगत जनगणना और सामाजिक न्याय के मुद्दे को उठाकर उन्होंने पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों का समर्थन प्राप्त किया. लेकिन, अब मोदी के साथ खड़े होकर वह भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे से दूरी बनाए रखने की चुनौती का सामना करेंगे.
नये सियासी अवतार में सामने आ रहे नीतीश
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि नीतीश कुमार जानते हैं कि बिहार में सत्ता की राह उनके लिए अब आसान नहीं है. तेजस्वी यादव और राजद की बढ़ती लोकप्रियता और भाजपा की महत्वाकांक्षा के बीच नीतीश कुमार को अपनी सियासी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए केंद्र की ताकत चाहिए. जेडीयू दफ्तर में मोदी की तस्वीर इस बात का प्रतीक है कि नीतीश अब अपनी पुरानी छवि को छोड़कर एक नये सियासी अवतार में सामने आ रहे हैं. जहां यह उनकी प्रासंगिकता बनाए रखने के साथ ही उनकी साख और सम्मान बरकरार रखने की सोची समझी रणनीति है. लेकिन, यह रास्ता कितना आसान होगा, यह 2025 के विधानसभा चुनावों के नतीजे ही बताएंगे.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...
और पढ़ें