महाराष्ट्र में बीएमसी चुनाव से ठीक पहले हुए स्थानीय निकाय चुनावों ने राज्य की राजनीति की दिशा को एक बार फिर साफ कर दिया है. पहले दो चरणों में जिन 288 नगर परिषदों और नगर पंचायतों में चुनाव हुए, उनमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 129 निकायों में जीत दर्ज कर सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के रूप में खुद को स्थापित कर लिया है. वहीं सत्ताधारी महायुति गठबंधन 200 के आंकड़े को पार कर गया, जो उसकी मजबूत स्थिति को दर्शाता है.
महायुति में बीजेपी के अलावा शिवसेना (शिंदे गुट) ने 51 और एनसीपी ने 33 स्थानीय निकायों में जीत हासिल की है. इसके मुकाबले विपक्षी महाविकास आघाड़ी (MVA) का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा और गठबंधन 50 के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाया. कांग्रेस ने 35 निकायों में जीत दर्ज की, जबकि शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) को सिर्फ 8-8 निकायों में सफलता मिली.
बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी बनने का क्या मतलब?
महाराष्ट्र निकाय चुनाव के इन नतीजों का सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश यह है कि शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में BJP की पकड़ लगातार मजबूत हो रही है. पार्टी ने स्थानीय चुनावों को भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव की तरह लड़ा और इसका सीधा फायदा उसे मिला. यह नतीजा बीजेपी के उस दीर्घकालिक लक्ष्य की ओर इशारा करता है, जिसे पार्टी ‘शतप्रतिशत भाजपा’ के तौर पर देखती है, यानी भविष्य में सहयोगी दलों पर निर्भरता खत्म करना.
स्थानीय निकायों में वर्चस्व बीजेपी के लिए इसलिए भी अहम है, क्योंकि यही संरचना पार्टी की ग्राउंड लेवल मशीनरी को मजबूत करती है और आगे के बड़े चुनावों में आधार बनती है.
देवेंद्र फडणवीस के लिए कैसे रहे ये नतीजे?
बीजेपी ने इस जीत को सीधे तौर पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व से जोड़ा है. चुनाव प्रचार के दौरान फडणवीस ने खुद राज्यभर में 38 रैलियां कीं. महायुति के भीतर शिंदे गुट से टकराव, सहयोगी दलों पर भ्रष्टाचार के आरोप और आपसी खींचतान के बावजूद गठबंधन को एकजुट रखना उनके लिए एक बड़ी परीक्षा थी.
नतीजों के बाद फडणवीस ने कहा कि जनता ने राज्य और केंद्र में सुशासन के लिए जनादेश दिया है और बीजेपी एक बार फिर महाराष्ट्र की नंबर-वन पार्टी बनकर उभरी है. वहीं महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष रविंद्र चव्हाण ने भी इस जीत का श्रेय फडणवीस की राजनीतिक रणनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर जनता के भरोसे को दिया.
एकनाथ शिंदे-अजित पवार को कैसी चिंता?
वैसे महायुति के लिए यह नतीजा प्रचंड जीत का संकेत है, लेकिन इसके भीतर एक अदृश्य असहजता भी छिपी है. बीजेपी का लगातार मजबूत होना भविष्य में शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी जैसे सहयोगी दलों के लिए स्पेस कम होने का संकेत देता है. यही वजह है कि बीजेपी जहां इन नतीजों को उत्सव की तरह देख रही है, वहीं उसके सहयोगी इन्हें उतने सकारात्मक नजरिए से नहीं देख रहे.
एमवीए के लिए क्या संकेत?
वहीं विपक्षी महाविकास आघाड़ी के लिए ये नतीजे गंभीर चेतावनी हैं. विधानसभा चुनाव में हार के बाद संगठनात्मक रूप से कमजोर पड़ी एमवीए को स्थानीय चुनावों में भी झटका लगा है. खासकर शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा, जिससे उनकी जमीनी संरचना और कार्यकर्ता नेटवर्क पर असर पड़ना तय माना जा रहा है.
आगामी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनावों से पहले ये नतीजे उद्धव ठाकरे गुट के लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं, क्योंकि पिछले तीन दशकों से बीएमसी पर उसका वर्चस्व रहा है.
इस हार पर क्या कह रही कांग्रेस?
कांग्रेस ने अपनी हार के लिए महायुति सरकार पर आरोप लगाए हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि इन चुनावों में धनबल, बाहुबल और सरकारी मशीनरी का जमकर दुरुपयोग किया गया, जिसका सीधा नुकसान विपक्ष को हुआ.
आगे की तस्वीर क्या?
स्थानीय निकाय चुनावों के ये नतीजे साफ संकेत दे रहे हैं कि 15 जनवरी को होने वाले मुंबई नगर निगम चुनाव से पहले बीजेपी और महायुति आत्मविश्वास से भरी हुई है, जबकि एमवीए को खुद को दोबारा खड़ा करने के लिए गंभीर मंथन की जरूरत है.
महाराष्ट्र की राजनीति में यह मुकाबला अब सिर्फ सत्ता का नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने की लड़ाई बनता जा रहा है. भाजपा की सिंगल लार्जेस्ट स्थिति राज्य में उसकी बढ़ती ताकत का प्रतीक है, जो महायुति को मजबूत लेकिन सहयोगियों को सतर्क करती है, और एमवीए को पुनरुत्थान की चेतावनी देती है.

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