Opinion: क्या है हरियाणा में बीजेपी की जीत का राज

1 month ago

नई दिल्ली. लोकसभा चुनावों में मिले झटके के बाद बीजेपी आलाकमान संभल गया था. कांग्रेस ऐसा जता रही थी मानो उन्होंने मोदी सरकार को अपदस्थ कर दिया हो. नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तो खटाखट की राजनीति पर चलते हुए दावा करने लगे थे कि अब हरियाणा और जम्मू कश्मीर, फिर महाराष्ट्र और झारखंड तो कांग्रेस जीतेगी ही. और इस हार के साथ ही मोदी सरकार के पतन की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी. लेकिन लगता है कि ये अत्यधिक आत्मविश्वास ही हरियाणा में कांग्रेस को ले डूबा और अब वो कश्मीर मे नेशनल कांफ्रेस के कंधे पर सवार हो कर सत्ता में आने की तैयारी कर रही है.

जमीन से रिपोर्ट आ रही थी कि किसान, जवान, पहलवान बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. बीजेपी हरियाणा में गैर जाट राजनीति करके दस साल तक सत्ता पर काबिज रही थी, इसलिए सत्ता विरोधी लहर तो थी ही. ऐसे में बीजेपी आलाकमान ने मुख्यमंत्री खट्टर को बदल कर नायब सैनी को सीएम बना दिया. इससे कार्यकर्ताओ के बीच सीएम खट्टर के खिलाफ पनप रही एंटी इनकमबेंसी समाप्त हो गयी. उधर कई नए लोगों को टिकट दे कर बीजेपी ने साफ कर दिया कि ये फ्रेश चेहरों पर जनता का भरोसा बरकरार रहेगा.

जंग नहीं थी आसान-पीएम मोदी के साइलेंट वर्करों ने बनाया काम आसान
सीएम खट्टर को हटाने के बाद भी बीजेपी आलाकमान चैन की सांस नही ले पा रहा था. एक तो एंटी इनकंबेंसी की मार थी तो दूसरी तरफ अपने कार्यकर्ता घर बैठ गए थे. सीएम सैनी के पास वक्त तो नहीं था लेकिन एक बात अच्छी थी कि वो सबसे झुक कर मिल रहे थे. गृहमंत्री अमित शाह ने परदे के पीछे सारी कमान अपने हाथ ले ली थी. जून के मध्य में अनुभवी धर्मेन्द्र प्रधान को राज्य में चुनाव का प्रभारी बनाया गया. प्रधान की खासियत ही यही है कि वो चमक दमक से दूर गहराई से विषयों को समझते हैं और ग्राउंड जीरो से हटते नहीं हैं. उन्होने अपना कैंप रोहतक, पंचकूला, कुरुक्षेत्र में लगातार बना कर रखा. दिन भर वो हरियाणा में छोटी- छोटी बैठकें करते. कार्यकर्ताओं से सीधी और रियल टाइम फीडबैक लेकर देर रात तक आला नेताओं को दिल्ली लौट कर फीड बैक देकर अगले दिन सुबह फिर से हरियाणा के लिए निकल पड़ते थे.

धर्मेंद्र प्रधान ने की मेहनत
टिकट बंटवारे के बाद नाराजगी फैली तो धर्मेंद्र प्रधान रुठों को मनाने में दिन रात एक करते रहे. प्रधान ने रुठों को मनाया भी और कमजोर बूथों की पहचान कर दूसरे दलों के मजबूत कार्यकर्ताओं को अपने पक्ष में मोड़ने में भी सफल रहे. प्रधान बार-बार बीजेपी कार्यकर्ताओं को टीवी और सोशल मीडिया पर चल रही बीजेपी के खिलाफ मुहिम से निराश नहीं हो कर जमीन पर दोगुने उत्साह से काम करने के लिए प्रेरित करते रहे. खास बात ये सभी संदेश सीधे कार्यकर्ताओं को दिए गए और प्रधान इस दौरान कहीं टीवी पर रणनीति बनाते और बताते नहीं दिखे.

पीएम मोदी के साइलेंट वोटरों का कमाल
पीएम के साइलेंट वोटरों के बारे में तो पूरा देश जानता है लेकिन पीएम मोदी के साइलेंट वर्कर्स ने हरियाणा में भी जीत की ऐसी मिसाल कायम की है, जिसका आने वाले वर्षों में कोई मुकाबला कर ही नही पाएगी. धर्मेन्द्र प्रधान की तर्ज पर ही बीजेपी के सांसद सुरिंदर नागर को फरीदाबाद, पलवल, गुरुग्राम जैसे जिलों में 18 से ज्यादा विधानसभा सीटों की कमान दी गयी. इन इलाकों में टिकट बंटवारे को लेकर भयंकर नाराजगी थी और वोटर तो उदासीन था ही. लेकिन सुरिंदर नागर ने भी एक-एक ईंट जोड़कर इन इलाकों मे जड़ों को मजबूत किया. दिल्ली के नेता कुलजीत चहल तो महीने भर रोहतक, झज्जर के इलाके में ऐसे कार्यकर्ताओं के बीच काम करते रहे. जाहिर है पीएम मोदी के इन साइलेंट वर्करों की भूमिका भी इस जंग में मजबूती देने के काम आयी.

किसानों ने डबल इंजन की सरकार पर भरोसा जताया
एग्जिट पोल के नतीजों ने तो बीजेपी का सूपड़ा ही साफ कर दिया था. आलम तो ये रहा कि तमाम ओपीनियन पोल और एग्जिट पोल को धता बताते हुए बीजेपी ने लगातार तीसरी बार हरियाणा मे सत्ता का परचम लहरा दिया. अब विश्लेषक अपने अंक गणित में तो लगेंगे ही लेकिन इतना तो साफ है कि इस कृषि प्रधान राज्य मे बहुमत पाने का मतलब ही है कि किसानों ने डबल इंजन की सरकार को जम कर वोट दिया है. मोदी सरकार की तमाम योजनाओं का लाभ किसानों को भरपूर मिल रहा है. चाहे किसान सम्मान निधि हो या फिर जन धन खाते, किसानों को राहत इसी बात से मिल रही है कि सरकार उनके खातों में सीधा पैसा डाल रही है. ये बात तो किसानों को भी समझ में आने लगी है कि बीजेपी किसान विरोधी नहीं है. किसान आंदोलन को लेकर बीजेपी को लेकर बातें उठ रहीं थी लेकिन बीजेपी की लगातार तीसरी जीत ने साबित कर दिया कि किसानों की जिंदगी बदलने में मोदी सरकार कितनी कारगर रही है.

भ्रष्टाचार पर बीजेपी सरकार का वार
सूत्रों की माने तो हरियाणा में समाज का एक बड़ा खामोश वर्ग था जो कांग्रेस और भूपेन्द्र हुड्डा सरकार की अराजक और भ्रष्ट सरकार की वापसी नहीं चाहता था. ये वर्ग वो है जिसने खट्टर काल में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाली बीजेपी सरकार को देखा है. ये वो वर्ग है जिसने सरकारी नौकरियों में जातिवाद और पैसे का बोलबाला होते देखा है. ये वो वर्ग है जिसनें नेताओं की थैलियां भरते देखा है. ऐसे मे खट्टर सरकार की गैर जाट राजनीति और भ्रष्टाचार से टक्कर देखने के बाद एक बार फिर पुरानी कांग्रेस पर भरोसा करने से रोक रहा था. हरियाणा की जनता इसलिए भरोसा जताया खट्टर सरकार पर.

गैर जाट वोट बैंक ने बीजेपी पर पूरा भरोसा जताया
आकड़ों के मुताबिक बीजेपी ने इन चुनावो मे ओबीसी और एससी की ज्यादातर सीटे जीतीं. सभी एग्जिट पोलस्टर्स ने हरियाणा की 22.5 फीसदी अनुसूचित जाति यानि दलित समाज के वोट को कांग्रेस के खाते में जाता दिखाया. लेकिन हुआ इसका ठीक उलटा. इस कुल 22.5 फीसदी दलित वोटों में महज 8.5 फीसदी वोट जिनमें जाटव, रैगर, रविदासी समाज का है. ये वोट बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी-इनैलो में बंटा. जबकि वंचित अनुसूचित जाति का सारा वोट बीजेपी के कमल निशान पर पड़ा, जिनका आबादी में कुल हिस्सा 14 फीसदी है. उधर कांग्रेस का कुमरी सैलजा को हाशिए पर ढकेलना भी दलित समाज को एक संदेश दे गया कि कांग्रेस दलित विरोधी है. ऊपर से दलित समाज में जाट समाज की दबंगई का खौफ भी चुनावी राजनीति को जाट और गैर जाट में बांट गया.

हरियाणा की खट्टर सरकार ने इन वंचित जातियों को डीएससी यानि डिप्राइव्ड सिड्यूल्ड कास्ट का नामा दिया था. उनके लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरु कीं थी. माना जाता है कि बाकी सभी राजनतिक दल इस वर्गीकरण के खिलाफ थे. डीएससी समाज का वोट बीजेपी को ही मिले इसके लिए डीएससी समाज के मंचो से ऐलान किए गए. समाज के नेताओं ने अपने समुदाय में अभियान चला कर बीजेपी को मजबूत करने का काम किया. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक अपने दलित विरोध मानसिकता और राहुल गांधी का अमेरिका जाकर आरक्षण हटाने का बयान के जरिए इस समाज का उपहास बनाया, जिसके कारण कांग्रेस को हरियाणा में मुंह की खानी पड़ी.

हरियाणा की सीधी टक्कर में कांग्रेस ने मुंह की खायी
एक बार फिर ये साफ हो गया कि आमने-सामने की लड़ाई में कांग्रेस बीजेपी के सामने खड़ी नही हो पाती. एक बार फिर आप, समाजवादी पार्टी को अंगूठा दिखाते हुए कांग्रेस ने हरियाणा में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. सबने अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए. इसके चंद महीने पहले ही बीजेपी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे प्रदेशों में कांग्रेस को सीधी टक्कर में हराया था. छत्तीसगढ़ और एमपी जहां विश्लेषक और एग्जिट पोल बीजेपी की हार की कहानी गढ़ रहे थे, वहां उनका जीतना एक चमत्कार से कम नहीं था. जाहिर है कि एक के बाद एक चुनावी राज्यों में हुई बीजेपी से सीधी टक्कर मे कांग्रेस कहीं से नहीं टिक पा रही.

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लोकसभा के झटके से उबरी बीजेपी
हरियाणा में इन विधानसभा चुनावों में 67.9 फीसदी वोटिंग हुई जो कि 2019 के 67.94 के करीब ही थी. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में हरियाणा में 64.8 फीसदी ही वोटिंग हुई थी. इस बार लोकसभा चुनावों से 3.1 फीसदी ज्यादा मत पड़े. इस 3.1 फीसदी मतदाताओं में संभवतया बीजेपी के वो समर्थक थे, जिन्होंने लोकसभा चुनावों में किन्हीं कारणों से वोट नहीं डाला था. इससे एक बात और साबित हो गयी कि इस बार जमीन पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करने में लगे बीजपी के चुनावी मैनेजरों ने अपनी भूमिका बखूबी निभायी. सूत्र बता रहे हैं कि इस बार हार को जीत में बदलने के लिए विधानसभा सीटो पर संघ के कार्यकर्ता भी बीजेपी के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम करते नजर आए. बहरहाल बीजेपी-कांग्रेस जीत और हार का विश्लेषण आगे भी करती रहेंगी. लेकिन ये तो तय है कि इन नतीजों ने लोकसभा चुनावों के झटके से उबार दिया है. आने वाले दिनों मे महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनावों में चुनावों में एक बूस्टर डोज का काम करेगा.

Tags: BJP, BJP Congress, Haryana BJP, Haryana election 2024

FIRST PUBLISHED :

October 8, 2024, 17:48 IST

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