Last Updated:August 12, 2025, 15:53 IST
स्ट्रीट डॉग पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद डॉग लवर एक से नाराजगी जताने लगे हैं. दूसरी तरफ स्ट्रीट डॉग्स का विरोध करने वाले भी सोशल मीडिया पर लामबंद हो गए हैं. लेकिन इस समस्या को हल किया जा सकता है. इसके लिए स...और पढ़ें

आप गौर करें तो पाएंगे मीडिया की खबरों में अब कुत्ते को कुत्ता न लिख कर डॉगी लिखने की रवायत सी बन गई है. कुत्ता शब्द का इस्तेमाल देश की हिंदी मीडिया महज कुत्तों के आतंक के सिलसिले में करती है. मतलब अगर स्ट्रीट डॉग ने बहुत उत्पात मचा दिया, लोगों को काट लिया तभी इसे कुत्ता लिखा जाएगा. नहीं तो बाकी वक्त ये डॉगी है. ये मनुष्यों के इस बेहद नजदीकी और बहुत पुराने दोस्त के लिए मनुष्यों के सम्मान का प्रतीक है. इन सबके बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कैपिटल रीजन यानी एनसीआर में स्ट्रीट डॉग को लेकर दिए गए फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है. लाजिम है, क्योंकि तहजीब के साथ साथ हमारी सोच जीवों के लिए नरम होनी ही चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुखालफत महज इसी वजह से जायज नहीं कही जा सकती. फैसले पर कुछ कहने से पहले हमे सारे हालात पर बेहद संजीदगी से सोचने की जरूरत है.
माना जाता है कि महाभारत काल के अंत में युधिष्ठिर के साथ सिर्फ उनका कुत्ता ही स्वर्ग तक जा सका था. कुत्ता खराब लगे तो श्वान पढ़ लें. संस्कृत में इस जीव को यही कहा जाता है. महाभारत के बाद से कई युग बदल चुके हैं. अब एनसीआर का युग चल रहा है. एनसीआर जहां आदमी को हवा और धूप के लिए खास जगहों तक चल कर जाना होता है. हर जगह ये भी मयस्सर नहीं है. बात चाहे नोएडा की हो, दिल्ली की या फिर गुड़गांव की. बिल्डरों ने अगर दो चार हाथ जमीन छोड़ी भी हो तो कुछ ही दिनों में उस पर भी कुछ न कुछ बना दिया जाएगा. आदमी के पैदल चलने के लिए फुटपाथ खत्म हो गए हैं. नए बच्चों से कहा जाय कि लोग फुट पाथ पर सोया भी करते थे तो उन्हें अजीब लगेगा. क्योंकि ये दशकों पहले खत्म कर दिया गया.
महानगरों खाली जगह है क्या ?
ये सब बताने का सबब ये था कि इन महानगरों में कुत्तों के लिए कितनी जगह बची है इसकी कल्पना की जा सके. ऐसे में सड़कों पर रहने वाले डॉगी मौका मिलने पर पार्कों को अपना ठिकाना बनाते हैं. पुराने शहरों, कस्बों और गांवों में इनके लिए बहुत सी जगह होती है. खेतों-बागीचों में ये दौड़ते हैं. इससे इनमें गुस्सा भी कम ही दिखता है. बहरहाल, महानगरों में डॉग की हालत देख फ्लैटों में रहने वालों को रहम आया तो उन्होंने खाना खिलाना शुरु कर दिया. बहुत सी जगहों पर ज्योतिषी भी बताते रहते हैं कि अगर ग्रह दशा खराब है तो डॉगी को खाना खिलाइए, ठीक हो जाएगा. हालांकि अपनी ग्रह दशा सुधारने के लिए डॉगी को खिलाने वालों की संख्या कम नहीं है. क्योंकि पालने की बारी आते ही स्ट्रीट डॉग, आवारा कुत्ता हो जाता है. इन्हें पार्कों सड़कों पर ही ठिकाना मिल पाता है. घरों के अंदर तो अलग-अलग नस्लों के विलायती कुत्तों को ही दाखिला मिल पाता है. यहां तक कि जर्मन शेफर्ड से लेकर साइबेरियन हस्की और ग्रेड डेन जैसे कुत्ते फ्लैटों से निकलत दिख जाएंगे. ये ऐसी नस्लें हैं जिन्हें ठीक से रहने के लिए अच्छी भली जगह की दरकार होती है.
डॉग लवर खिला रहे, आबादी बढ़ रही
अच्छा खाना मिलने से इन स्ट्रीट डॉग्स की संख्या भी बहुत अच्छे से बढ़ रही है. अस्सी के दशक में देखा जाता था कि नगर निकाय यानी लोकल गवर्मेंट बॉडिज की गाड़ियां निकलती थीं, कुत्तों को जाल या ज्यादातर रस्सी लगे डंडे की मदद से पकड़ कर ले जाती थी. कई शहरों में तो ये भी होता था कि अगर डॉग के गले में नंबर वाला पट्टा नहीं लगा है और वो घूमता मिल जाय तो निगम वाले उसे भी पकड़ लेते थे. मालिकों को जुर्माना भर कर उन्हें छुड़ाना पड़ता था. उस समय भी कुत्तों की नसबंदी करके उन्हें छोड़ा जाता था. ताकि वे आबादी न बढ़ा सकें.
निकाय और प्राधिकरण की जिम्मेदारी
उत्तर प्रदेश के कई निगमों में कमिश्नर रह चुके बाबा हरदेव सिंह कहते हैं – “निगमों में कुत्तों और नागरिकों की हिफाजत के लिए नियम और बजट होता है.उसी के मुताबिक निकाय इस ओर काम करते हैं.” वे मानते हैं कि ज्यादातर निगमों में इतना पर्याप्त बजट नहीं होता कि कुत्तों की नसबंदी के साथ वैक्सिनेशन कराया जा सके. यानी कुत्तों और उनसे नागरिकों की सुरक्षा के लिए पहले से नियम मौजूद हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में डॉग लवर लामबंद हो रहे हैं. उन्होंने दिल्ली के इंडिया गेट पर प्रदर्शन भी किया. गाजियाबाद और नोएडा में भी भारी विरोध हो रहा है.
डॉग लवर्स की मोहब्बत जायज है
डॉग लवर्स की दलीलों और उनकी मोहब्बत को सीधे दरकिनार नहीं किया जा सकता. लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे भी लोग हैं जिनके सिर स्ट्रीट डॉग से होने वाली परेशानियां गुजरी हैं. किसी के छोटे बच्चे को स्ट्रीट डॉग ने काट खाया, तो हवाखोरी को निकले किसी बुजर्ग की हड्डी कुत्ते से बचने की कोशिश में टूट गई हो. ऐसे परिवारों के लोग इन स्ट्रीट डॉग से बहुत परेशान और खफा रहते हैं. नोएडा एक्स्टेंशन में बनी तमाम बड़ी सोसाइटियों से अक्सर खबरे मिलती हैं कि उनकी सोसाइटी में स्ट्रीट डॉग्स ने अड्डा ही बना लिया है. डॉग लवर उन्हें फीड भी करा रहे हैं.
विदेशों में भी समस्या आई, कैसे निपटा गया
ऐसा नहीं है कि सिर्फ अपने देश में इस तरह की समस्या है. आस्ट्रेलिया और नीदरलैंड भी इस तरह की समस्या से दो चार हो चुका है. मीडिया खबरों के मुताबिक इन देशों ने एक सीधी नीति बनाई. सरकारी बजट पर कुत्तों को पकड़वाया, उनकी नसबंदी कराई और वैक्सीन लगा कर उन्हें उनकी जगह छोड़ दिया. इस तरह से उनके यहां समस्या खत्म हो गई. नीदरलैंड में तो कहा जा रहा है कि एक भी कुत्ता नहीं है.
पैसे खर्च होंगे तो किसके ?
कहने की जरुरत नहीं है कि सरकारी बजट टैक्सपेयर्स के पैसों से ही बनता है. ऐसे में बडी ही सहजता से एनसीआर की लोकल गवर्मेंट बाड़ीज स्ट्रीट डॉग की नसबंदी और वैक्सीनेशन की योजना बना सकती है. हालांकि दिल्ली के स्ट्रीट डॉग्स को लेकर शेल्टर होम्स की बात को पर्यावरणविद और पूर्व मंत्री मेनका गांधी ने अव्यावहारिक बताया है. उनके मुताबिक दिल्ली के तीन लाख आवारा कुत्तों के लिए हर हफ्ते 5 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. इस परियोजाना की लागत उनके हिसाब से 15 हजार करोड़ रुपये होगी. मेनका गांधी का कहना कि एनीमल बर्थ कंट्रोल के लिए एक रोड मैप बना रखा है. उसमें नसबंदी और वैक्सिनेशन की योजना है.
घर ले जाने की सलाह भी ज्यादती
मेनका गांधी की ही पार्टी के वरिष्ठ नेता विजय गोयल उनके समर्थक रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के लोग इस फैसले से बहुत खुश हैं. एक्स पर एक व्यक्ति की टिप्पणी है कि अगर सच में लोग डॉग लवर हैं तो उन्हें अपने घर ले जाए. ये दलील भी सही नहीं है. कुत्ते मनुष्यों के सबसे पुराने साथी हैं. उनके साथ अक्सर लोगों का एक बहुत भावनात्मक रिश्ता कायम हो जाता है. लेकिन इस रिश्ते को मजबूत रखने के लिए जरुरी है कि कुत्ते किसी भी तरह से मनुष्यों के दुश्मन न बनें. अगर उनसे लगातार मनुष्यों को नुकसान हुआ तो एक न एक दिन ये दोस्ती टूट जाएगी. इसकी जगह डॉग लवर्स से सरकारें या प्राधिकरण स्ट्रीट डॉग्स को एडॉप्ट करा के उनका सहयोग ले सकती है.
करीब ढाई दशक से सक्रिय पत्रकारिता. नेटवर्क18 में आने से पहले राजकुमार पांडेय सहारा टीवी नेटवर्क से जुड़े रहे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद वहीं हिंदी दैनिक आज और जनमोर्चा में रिपोर्टिंग की. दिल...और पढ़ें
करीब ढाई दशक से सक्रिय पत्रकारिता. नेटवर्क18 में आने से पहले राजकुमार पांडेय सहारा टीवी नेटवर्क से जुड़े रहे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद वहीं हिंदी दैनिक आज और जनमोर्चा में रिपोर्टिंग की. दिल...
और पढ़ें
First Published :
August 12, 2025, 15:53 IST