Indian Navy's latest operation in South China Sea: अपनी विस्तारवादी नीतियों की वजह से दुनिया के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे चीन को अब भारत उसी के आंगन में जमकर घेर रहा है. भारतीय नौसेना ने एक बार फिर चीन का बैकयार्ड कहे जाने वाले दक्षिण चीन सागर में बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया है. भारतीय नौसेना ने वहां पर जो काम किया है, वैसा करने की क्षमता अमेरिका, चीन समेत दुनिया के 3-4 देशों के पास ही है. यही वजह है कि इसे नए भारत का ड्रैगन के लिए बड़ा संदेश भी माना जा रहा है. आइए आपको बताते हैं कि भारत ने ऐसा क्या कर दिया है कि दुनिया हैरान होकर इंडियन नेवी की इस क्षमता के बारे में चर्चा कर रही है.
दक्षिण चीन सागर में भारत की नई रणनीति
भारतीय नौसेना ने दक्षिण चीन सागर में पहली बार विदेशी पनडुब्बियों के साथ ‘मेटिंग’ ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा किया है. "XPR-25" नामक इस अभ्यास में तीन दिनों तक इंटरवेंशन और रेस्क्यू ऑपरेशन्स किए गए. इसमें तीन सफल मेटिंग और आधुनिक तकनीक से जुड़े रिमोट ऑपरेटेड व्हीकल (ROV) ऑपरेशन शामिल थे. यह उपलब्धि केवल तकनीकी नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है.
#WATCH | Indian Navy achieved maiden mating with foreign submarines in the South China Sea during XPR-25, conducting a full spectrum of Intervention & Rescue Operations. Three successful mates, including ROV ops over three days, showcased India's growing global rescue… pic.twitter.com/piPKmPpfKP
— ANI (@ANI) September 27, 2025
चीन के प्रभाव क्षेत्र में भारत की मौजूदगी
बताते चलें कि दक्षिण चीन सागर को चीन अपनी ‘पीछे की बग़िया’ मानता है और यहां वह लगातार सैन्य अड्डे और कृत्रिम द्वीप बनाकर दबदबा बढ़ा रहा है. ऐसे में भारतीय नौसेना का यहां सक्रिय अभ्यास करना चीन को सीधा संकेत देता है कि भारत अब उसकी दहलीज़ तक अपनी मौजूदगी दर्ज कराने से पीछे नहीं हटेगा.
नौसैनिक क्षमता का वैश्विक प्रदर्शन
पनडुब्बी रेस्क्यू क्षमता किसी भी नौसेना के लिए ‘हाई-एंड टेक्नोलॉजी’ मानी जाती है. दक्षिण चीन सागर में विदेशी पनडुब्बियों के साथ सफल मेटिंग कर भारत ने यह साबित किया है कि वह अब केवल हिंद महासागर तक सीमित शक्ति नहीं, बल्कि एक वैश्विक समुद्री ताकत के रूप में उभर रहा है. यह क्षमता संकट की घड़ी में सहयोगी देशों को मदद देने की संभावना भी खोलती है.
क्षेत्रीय संतुलन की रणनीति
भारत लंबे समय से "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" और इंडो-पैसिफ़िक रणनीति के तहत दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अपने रिश्ते मज़बूत कर रहा है. इस अभ्यास के ज़रिए भारत यह संदेश भी देता है कि वह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक भरोसेमंद सुरक्षा साझेदार है. यह कदम अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ भारत की सामरिक साझेदारी को और ठोस बनाता है.
भारत-चीन प्रतिद्वंदिता का समुद्री मोर्चा
अब तक भारत-चीन की टक्कर ज्यादातर हिमालयी सीमा पर या हिंद महासागर में दिखाई देती थी. लेकिन इस अभ्यास के बाद साफ है कि यह प्रतिद्वंदिता दक्षिण चीन सागर तक पहुंच चुकी है. भारत की यह चाल चीन के "वन बेल्ट वन रोड" और समुद्री सिल्क रूट जैसे बड़े रणनीतिक अभियानों को चुनौती देने के रूप में देखी जा रही है.
पूरी दुनिया को भारत का संदेश
इस ड्रिल का सबसे बड़ा संदेश यही है कि भारत अब केवल अपनी सीमाओं तक सीमित रक्षा नीति नहीं अपनाएगा. वह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाने और चीन की बढ़ती आक्रामकता को चुनौती देने के लिए तैयार है. आने वाले समय में यह कदम न केवल चीन को भारत से रिश्तों में संभलकर चलने को मजबूर करेगा बल्कि क्षेत्रीय राजनीति की दिशा भी बदल सकता है.