नई दिल्ली: अमेरिकी एयरोस्पेस दिग्गज लॉकहीड मार्टिन (Lockheed Martin) ने एक ऐसा ऐलान किया है जिसने दुश्मनों के कान खड़े कर दिए हैं. कंपनी ने भारत में C-130J सुपर हरक्यूलिस (Super Hercules) विमान बनाने की योजना बनाई है. सबसे बड़ी बात यह है कि अमेरिका के बाहर यह दुनिया का पहला ऐसा ग्लोबल हब होगा जहां इन विमानों का को-प्रोडक्शन (सह-उत्पादन) किया जाएगा. यह खबर ऐसे समय में आई है जब भारतीय वायुसेना (IAF) अपने पुराने सोवियत विमानों को रिटायर करने की तैयारी कर रही है. वायुसेना को 80 नए टैक्टिकल लिफ्ट ट्रांसपोर्ट विमानों की जरूरत है. इस रेस में आगे निकलने के लिए लॉकहीड मार्टिन ने अपना सबसे बड़ा पत्ता फेंक दिया है. कंपनी ने टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के साथ हाथ मिलाया है.
अमेरिका के बाहर पहला हब: भारत पर इतना भरोसा क्यों?
लॉकहीड मार्टिन के वाइस प्रेसिडेंट रॉबर्ट टोथ ने पीटीआई (PTI) को दिए एक इंटरव्यू में साफ कर दिया कि भारत उनकी प्राथमिकता है. उन्होंने कहा, “पूरी दुनिया में भारत ही वह पहला देश है जहां हम अमेरिका के बाहर को-प्रोडक्शन फैसिलिटी बनाने का वादा कर रहे हैं.”
यह फैसला सिर्फ एक बिजनेस डील नहीं है. यह भारत और अमेरिका के बढ़ते रणनीतिक रिश्तों का सबूत है. लॉकहीड मार्टिन का यह कदम वायुसेना के ‘मीडियम ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट’ (MTA) टेंडर से जुड़ा है. अगर उन्हें यह कॉन्ट्रैक्ट मिलता है, तो भारत में डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग का नक्शा ही बदल जाएगा.
C-130J सुपर हरक्यूलिस: क्या है इसकी ताकत?
सुपर हरक्यूलिस कोई आम विमान नहीं है. इसे ‘वर्कहॉर्स’ यानी सबसे भरोसेमंद घोड़ा कहा जाता है. यह किसी भी मौसम और किसी भी इलाके में उड़ान भरने में सक्षम है.
कच्चे रनवे का बादशाह: इस विमान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे लैंड करने के लिए पक्के रनवे की जरूरत नहीं होती. यह धूल भरे मैदानों, घास के मैदानों और यहां तक कि टूटी-फूटी सड़कों पर भी आसानी से उतर सकता है.
हवा में ही नहीं, जमीन पर भी बेमिसाल, C-130J को भारत में बनाने का प्लान (लॉकहीड मार्टिन)
दौलत बेग ओल्डी का हीरो: 2013 में भारतीय वायुसेना ने इसी विमान को लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी (DBO) में लैंड कराया था. यह दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी है. चीन की नाक के नीचे इतनी ऊंचाई पर लैंडिंग करके भारत ने दुनिया को अपनी ताकत दिखाई थी.
स्पेशल ऑपरेशंस: यह विमान स्पेशल फोर्सेज (गरुड़ कमांडो) के ऑपरेशंस के लिए बेहतरीन है. यह बहुत कम ऊंचाई पर उड़ान भर सकता है ताकि दुश्मन के रडार की पकड़ में न आए.
पेलोड क्षमता: यह करीब 20 टन वजन उठा सकता है. इसमें बख्तरबंद गाड़ियां, तोपें और सैनिकों को आसानी से ले जाया जा सकता है.
C-130J सुपर हरक्यूलिस बनाम C-17 ग्लोबमास्टर: कौन है ज्यादा दमदार?
अक्सर लोग C-130J और C-17 ग्लोबमास्टर (Globemaster) में कंफ्यूज हो जाते हैं. दोनों विमान भारतीय वायुसेना के पास हैं, लेकिन दोनों का रोल बिल्कुल अलग है.
| प्रकार | टैक्टिकल एयरलिफ्टर (Tactical) | स्ट्रैटेजिक एयरलिफ्टर (Strategic) |
| इंजन | 4 टर्बोप्रॉप इंजन (पंखे वाले) | 4 जेट इंजन |
| वजन क्षमता | करीब 20 टन | करीब 77 टन |
| लैंडिंग | छोटे और कच्चे रनवे पर लैंड कर सकता है | बड़े और पक्के रनवे की जरूरत होती है |
| रोल (Role) | सैनिकों को फ्रंटलाइन तक पहुंचाना, स्पेशल ऑप्स | भारी टैंक (जैसे T-90), हेलिकॉप्टर को एक बेस से दूसरे बेस ले जाना |
| रेंज | कम दूरी के मिशन के लिए बेस्ट | महाद्वीपों के बीच लंबी दूरी के लिए |
आसान शब्दों में कहें तो, C-17 एक बड़ा ट्रक है जो भारी सामान को एक शहर से दूसरे शहर ले जाता है. वहीं, C-130J एक मजबूत जीप है जो उस सामान को दुर्गम पहाड़ों और जंगलों में सैनिकों तक पहुंचाती है.
C-130J सुपर हरक्यूलिस vs C-17 ग्लोबमास्टर: कौन है ज्यादा दमदार?
भारतीय वायुसेना के पास और कौन से ट्रांसपोर्ट प्लेन हैं?
भारतीय वायुसेना दुनिया की सबसे ताकतवर वायुसेनाओं में से एक है. ट्रांसपोर्ट के लिए हमारे पास विमानों का एक मजबूत बेड़ा है.
C-17 ग्लोबमास्टर III: यह हमारा सबसे बड़ा ट्रांसपोर्ट विमान है. भारत के पास ऐसे 11 विमान हैं. यह भारी टैंक और रसद ले जाने के काम आता है.
IL-76 (गजराज): यह रूसी विमान है. दशकों तक इसने वायुसेना की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम किया है. अब यह पुराना हो रहा है और इसे बदलने की तैयारी है.
AN-32: यह भी सोवियत जमाने का विमान है. वायुसेना के पास इसकी बड़ी संख्या है. यह पहाड़ों में रसद पहुंचाने के लिए बहुत उपयोगी रहा है. C-130J और C-295 मिलकर इसी की जगह लेंगे.
C-295: हाल ही में भारत ने एयरबस के साथ डील की है. यह विमान अब वडोदरा में बन रहा है. यह पुराने एवरो (Avro) विमानों की जगह ले रहा है.
डॉर्नियर 228 (Dornier): यह छोटा विमान है जो वीआईपी ट्रांसपोर्ट और हल्की रसद के लिए इस्तेमाल होता है.
IAF को 80 नए विमान चाहिए. लॉकहीड मार्टिन के C-130J को टक्कर देने के लिए दो और खिलाड़ी मैदान में हैं.
Embraer KC-390 (ब्राजील): यह एक जेट इंजन वाला विमान है. यह C-130J से थोड़ा तेज उड़ता है और ज्यादा वजन उठा सकता है.
Airbus A-400M (यूरोप): यह आकार में C-130J और C-17 के बीच का विमान है. यह ज्यादा महंगा है लेकिन इसकी क्षमता भी ज्यादा है.
टाटा के साथ मिलकर बनेगा मेंटेनेंस हब
सिर्फ विमान बनाना ही नहीं, लॉकहीड मार्टिन ने मेंटेनेंस के लिए भी बड़ा प्लान बनाया है. टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स ने बेंगलुरु में एक एमआरओ (MRO) फैसिलिटी का काम शुरू कर दिया है.
यह फैसिलिटी 2026 तक बनकर तैयार हो जाएगी. यहां C-130J विमानों की मरम्मत और देखरेख होगी. इसका मतलब है कि अब विमानों को सर्विसिंग के लिए अमेरिका भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे समय और पैसा दोनों बचेगा. यह भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

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