Last Updated:September 28, 2025, 13:22 IST
Maharashtra Politics: उद्धव और राज ठाकरे के बीच तकरीबन दो दशक के बाद एकता हुई है. ठाकर ब्रदर्स के एक होने से कुछ राजनीतिक दलों की धड़कनें तेज हो गई हैं. मुंबई समेत अन्य शहरों में आने वाले समय में निकाय चुनाव होने वाले हैं.

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में अक्सर ही कुछ ऐसा होता रहता है, जिसको लेकर सियासी पारा चढ़ जाता है. सालों के बाद जब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने हाथ मिलाया तो प्रदेश के साथ ही देश की राजनीति में भी गर्माहट अचानक से बढ़ गई. राजनीतिक विश्लेषक दोनों भाइयों की एका का महाराष्ट्र की राजनीति पर पड़ने वाले असर का आंकलन अभी तक कर ही रहे हैं. अन्य राजनीतिक दल भी माहौल को भांपने में जुटे हैं कि शिवसेना (उद्धव गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की एकता से उनके प्रभाव पर क्या असर पड़ने वाला है. इन सबके बीच महाराष्ट्र में एक ऐसी भी पार्टी है, जो इन दोनों भाइयों की एकता से कुछ ज्यादा ही चिंतित लगती है. उस पार्टी का नाम है एकनाथ शिंदे की शिवसेना. बता दें कि एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की पार्टी तोड़ दी थी.
महाराष्ट्र की राजनीति में फिर से पुराने रिश्तों की सरगर्मी लौट आई है. राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का हालिया समीकरण, जिसने महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है, अब विपक्षी खेमे में चर्चा का विषय बन गया है. शिवसेना (शिंदे गुट) के सांसद श्रीकांत शिंदे ने इस गठजोड़ को सिरे से खारिज करते हुए इसे ‘सिर्फ ठाकरे परिवार की राजनीति’ करार दिया है. उनका तर्क है कि यह कदम महाराष्ट्र के हित में नहीं, बल्कि केवल सत्ता को परिवार के भीतर सुरक्षित रखने की रणनीति है.
तीखा हमला
श्रीकांत शिंदे का बयान इस ओर इशारा करता है कि महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर से परिवारवाद बनाम विकास के नैरेटिव में बंट सकती है. उनका आरोप है कि ठाकरे भाइयों का एक होना महज चुनावी समीकरणों को साधने की कवायद है. वहीं, शिंदे खेमे ने खुद को विकास, काम और जनता की जरूरतों पर केंद्रित बताने की कोशिश की है. यह रणनीति आने वाले मुंबई महानगरपालिका चुनावों के लिए अहम साबित हो सकती है, क्योंकि BMC की राजनीति सीधे शहर की सड़कों, सफाई और बुनियादी ढांचे से जुड़ी है.
राजनीतिक संदेश और चुनावी दांव
इस बयान के पीछे साफ रणनीति झलकती है. उद्धव और राज ठाकरे की नजदीकियां भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) के लिए चुनौती बन सकती हैं. ऐसे में शिंदे खेमे की कोशिश है कि ठाकरे गठजोड़ को ‘परिवार की सत्ता बचाने का खेल’ बताकर जनता के बीच उसकी स्वीकार्यता को कमजोर किया जाए. वहीं, खुद को कंक्रीट सड़कों, गड्ढामुक्त मुंबई और भ्रष्टाचार-मुक्त प्रशासन जैसे ठोस मुद्दों पर खड़ा करके चुनावी नैरेटिव को ‘कामकाज बनाम परिवारवाद’ की तरफ मोड़ा जाए. श्रीकांत शिंदे ने यह भी याद दिलाया कि विधानसभा चुनावों से पहले तमाम भविष्यवाणियां गलत साबित हुई थीं और शिंदे गुट ने 80 में से 60 सीटें जीतकर 75% सफलता हासिल की. उनका दावा है कि इसी तरह BMC चुनाव में भी जनता उनके काम और जमीनी पकड़ को तवज्जो देगी.
क्या ठाकरे ब्रदर्स का गठजोड़ असरदार होगा?
महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे नाम आज भी भावनात्मक अपील रखता है. उद्धव और राज का साथ आना कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भर सकता है और शिवसेना (UBT) व MNS दोनों को नया जीवन दे सकता है. लेकिन सवाल यही है कि क्या यह गठजोड़ जनता की नज़र में सिर्फ परिवार की मजबूरी है या महाराष्ट्र का विकल्प? श्रीकांत शिंदे के बयान से साफ है कि महाराष्ट्र की राजनीति अब परिवारवाद बनाम विकास की बहस में ध्रुवीकृत होने जा रही है. ठाकरे भाइयों का समीकरण राजनीतिक भूचाल ला सकता है, लेकिन शिंदे गुट ने पहले ही नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर दी है कि यह गठबंधन महाराष्ट्र की जनता के लिए नहीं, बल्कि ठाकरे परिवार की सियासी प्रासंगिकता बचाने के लिए है. आने वाले BMC चुनाव इस विमर्श की सच्चाई तय करेंगे कि क्या जनता परिवारवाद से ऊपर उठकर विकास को चुनेगी, या ठाकरे नाम का जादू अब भी असरदार है?
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...
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Location :
Mumbai,Maharashtra
First Published :
September 28, 2025, 13:22 IST
उद्धव-राज की एकता से किसका सिंहासन डोलने लगा, क्यों महसूस होने लगा खतरा?