ऑपरेशन ब्लू स्टार : क्यों भिंडरावाले के बेटों ने नहीं चुना पिता का रास्ता

14 hours ago

Last Updated:June 06, 2025, 14:44 IST

6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी है. सेना ने अमृतसर के गोल्डेन टैंपल में किए इस ऑपरेशन में भिंडरावाले मारे गए थे. फिर उनके परिवार का क्या हुआ.

 क्यों भिंडरावाले के बेटों ने नहीं चुना पिता का रास्ता

हाइलाइट्स

भिंडरावाले के बेटों ने खालिस्तान आंदोलन से खुद को कोसों दूर रखाभिंडरावाले की पत्नी ने साधारण जीवन जिया और बच्चों की परवरिश कीभिंडरावाले के बेटों ने खेती और पारिवारिक जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दी

6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी होती है. ये आपरेशन भारतीय सेना द्वारा अमृतसर के गोल्डेन टैंपल में चलाया गया सैन्य अभियान था. इसका उद्देश्य खालिस्तान समर्थक नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके सशस्त्र समर्थकों को स्वर्ण मंदिर से निकालना था.भिंडरावाले की उसमें मृत्यु हो गई. इसके बाद उनके परिवार का क्या हुआ. उनके दोनों बेटों ने कभी खालिस्तान आंदोलन की वो राह नहीं चुनी, जिसकी अगुवाई उनके पिता करने लगे थे.

भिंडरावाले का सिख समुदाय खासतौर पर पंजाब के ग्रामीण युवाओं में जबरदस्त प्रभाव था. उनके उग्र भाषणों, सिख धर्म के प्रति समर्पण और केंद्र सरकार के खिलाफ बेबाक रवैये ने उन्हें एक मिथकीय छवि दी. कई समर्थकों के लिए ये विश्वास करना मुश्किल था कि इतना प्रभावशाली नेता इतनी आसानी से मारा जा सकता है.

जरनैल सिंह भिंडरावाले के परिवार में उनकी पत्नी बिबी प्रीतम कौर और दो बेटे इशर सिंह और इंद्रजीत सिंह थे. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उनके परिवार का जीवन काफी हद तक प्रभावित हुआ. ना तो उनकी पत्नी और ना ही बेटों ने सिख आंदोलन की वो राह बिल्कुल चुनी ही नहीं, वो उससे कोसों दूर रहे, जिस पर चलकर उनके पिता भिंडरावाले एक बड़े धार्मिक सिख नेता बन गए.

भिंडरावाले की बीवी ने साधारण जीवन जिया

भिंडरावाले की पत्नी प्रीतम कौर ने अपने पति की मृत्यु के बाद अपेक्षाकृत निजी जीवन जिया. वह अपने पैतृक गांव रोड़े फरीदकोट में रहीं हालांकि भिंडरावाले की शहीद की छवि के कारण परिवार को सिख समुदाय के कुछ वर्गों से सम्मान मिला. प्रीतम कौर ने कभी सार्वजनिक रूप से खालिस्तान आंदोलन का समर्थन नहीं किया. ज्यादातर समय अपने बच्चों की परवरिश और खेती-बाड़ी में बिताया. उनकी मृत्यु 15 सितंबर 2007 को लंबी बीमारी के बाद हुई.

दोनों बेटों ने पिता के रास्ते से दूरी बनाए रखी

भिंडरावाले के दोनों बेटों ने भी सार्वजनिक जीवन से दूरी बनाए रखी. बड़े बेटे इशर सिंह का जन्म 1971 में हुआ था. उन्होंने अपने पिता की तरह धार्मिक या राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लिया. वे अपने गांव में खेती और सामान्य जीवन जीते रहे. 2008 में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. छोटे बेटे इंद्रजीत सिंह ने भी खुद को कभी चर्चाओं में नहीं आने दिया. वह अपने परिवार के साथ पंजाब में रहते हैं और खेती-बाड़ी से जुड़े हैं. उन्होंने कभी अपने पिता के आंदोलन को आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं की.

क्या ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद माहौल

ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) के बाद पंजाब में व्यापक अशांति और हिंसा का दौर शुरू हुआ. सिख उग्रवाद और सरकारी दमन के बीच कई सिख परिवारों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. भिंडरावाले के बेटे उस समय बहुत छोटे थे (इशर सिंह का जन्म 1971 और इंद्रजीत सिंह का जन्म बाद में हुआ). उनकी मां बिबी प्रीतम कौर ने उन्हें इस हिंसक माहौल से दूर रखने की कोशिश की. परिवार को सुरक्षा संबंधी खतरे थे, क्योंकि भिंडरावाले के समर्थकों और विरोधियों दोनों की नजरें उन पर थीं. ऐसे में, खालिस्तान आंदोलन में शामिल होने का मतलब और अधिक खतरे को न्योता देना होता.

भिंडरावाले की पत्नी ने बेटों को सामान्य जीवन देने की कोशिश की

बिबी प्रीतम कौर ने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने बेटों को सामान्य जीवन देने पर ध्यान केंद्रित किया.संभव है कि प्रीतम कौर ने अपने बच्चों को हिंसा और विवादों से बचाने के लिए उन्हें खालिस्तान आंदोलन से दूर रखा. इशर सिंह और इंद्रजीत सिंह ने भी अपने पिता की तरह उग्रवादी या धार्मिक नेतृत्व की भूमिका निभाने में रुचि नहीं दिखाई.

दोनों बेटों ने खेती और परिवार को प्राथमिकता दी

इशर सिंह और इंद्रजीत सिंह ने अपने जीवन में खेती और पारिवारिक जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दी. उन्होंने अपने पिता की तरह धार्मिक या राजनीतिक मंचों पर सक्रिय होने की बजाय सामान्य जीवन चुना. यह संभव है कि उन्होंने अपने पिता की मृत्यु और ऑपरेशन ब्लू स्टार की त्रासदी से सबक लिया और हिंसा या उग्रवाद से जुड़े रास्ते से बचना चाहा. उनकी शिक्षा और परवरिश भी इस तरह की थी कि वे अपने गांव में रहकर सामान्य जीवन जी सकें.

अगर बेटे भिंडरावाले के रास्ते चलते तो क्या होता

भिंडरावाले के परिवार पर सरकार और खुफिया एजेंसियों की कड़ी नजर थी. यदि उनके बेटों ने खालिस्तान आंदोलन में हिस्सा लेने की कोशिश की होती, तो उन्हें तुरंत निशाना बनाया जाता. इसके अलावा, सिख समुदाय के भीतर भी सभी लोग खालिस्तान के समर्थक नहीं थे. शिरोमणि अकाली दल जैसे मुख्यधारा के सिख संगठन और अन्य धार्मिक नेता हिंसा के खिलाफ थे.शांति की वकालत करते थे. ऐसे में, भिंडरावाले के बेटों को आंदोलन में शामिल होने के लिए कोई मजबूत समर्थन या मंच नहीं मिला.

पिता की विरासत के जोखिम बहुत थे

जरनैल सिंह भिंडरावाले की छवि सिख समुदाय में एक शहीद और उग्रवादी नेता के रूप में थी लेकिन यह छवि विवादास्पद भी थी. उनके बेटों के लिए अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाना एक जटिल और जोखिम भरा काम होता. एक ओर, खालिस्तान समर्थकों ने उनके पिता को एक मिथकीय नायक के रूप में पेश किया, जिसके कारण उन पर अपेक्षाएं थीं. दूसरी ओर सरकार और गैर-सिख समुदाय उन्हें उग्रवाद से जोड़कर देखते थे. इस दोहरे दबाव के बीच, बेटों ने तटस्थ रहना चुना, ताकि वे और उनका परिवार किसी विवाद का हिस्सा नहीं बनें.

बेटों को सुरक्षित भविष्य देने की कोशिश की गई

बिबी प्रीतम कौर और परिवार के अन्य सदस्यों ने शायद बेटों को खालिस्तान आंदोलन से दूर रहने के लिए प्रेरित किया. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिख समुदाय में कई परिवारों ने अपने बच्चों को हिंसक गतिविधियों से दूर रखने की कोशिश की, क्योंकि 1980 और 1990 के दशक में पंजाब में उग्रवाद और सैन्य कार्रवाइयों ने भारी तबाही मचाई थी. भिंडरावाले के परिवार ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित और स्थिर भविष्य देने की कोशिश की.

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संजय श्रीवास्तवडिप्टी एडीटर

लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें

लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...

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