INSV Kaundinya: भारतीय नौसेना का स्वदेशी रूप से निर्मित पोत आईएनएसवी ‘कौंडिन्या’ 29 दिसंबर को गुजरात के पोरबंदर से ओमान सल्तनत के मस्कट के लिए अपनी पहली विदेशी यात्रा पर रवाना हुआ. यह यात्रा उन प्राचीन समुद्री रास्तों की याद ताजा करेगी जो किसी समय भारत को पश्चिम एशिया और हिंद महासागर के देशों से जोड़ते थे. इस अभियान के जरिए जहाज बनाने की उन पारंपरिक तकनीकों को परखा जाएगा, जो आधुनिक नौकायन के शुरू होने से भी एक हजार साल पहले इस्तेमाल की जाती थीं.
खास बात यह है कि इस यात्रा में एक ऐसे अनोखे जहाज का उपयोग किया जा रहा है, जिसे प्राचीन ‘सिलाई तकनीक’ (Stitched-plank technique) से बनाया गया है. इसमें न तो इंजन का प्रयोग हुआ है, न ही किसी धातु या आधुनिक मशीनरी का. यह जहाज पूरी तरह हवा के रुख और पालों (Sails) के सहारे चलेगा. इसका मकसद उन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को फिर से जीना है, जिनमें भारतीय नाविक सदियों पहले लंबी समुद्री यात्राएं तय किया करते थे. सोमवार को पश्चिमी नौसेना कमान के ध्वज अधिकारी कमान-इन-चीफ वाइस एडमिरल कृष्णा स्वामीनाथन ने भारत में ओमान सल्तनत के राजदूत ईसा सालेह अल शिबानी, भारतीय नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों और विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति में पोत को औपचारिक रूप से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया.
बिना इंजन या धातु का अनोखा जहाज
आईएनएसवी (Indian Naval Sailing Vessel) कौंडिन्या एक ऐसा नौकायन जहाज है जिसे युद्ध के लिए नहीं, बल्कि प्राचीन कला को जीवंत करने के लिए बनाया गया है. इसे बनाने में उस तकनीक का इस्तेमाल हुआ है जो कम से कम 5वीं शताब्दी ईस्वी जितनी पुरानी है. आज के आधुनिक जहाजों से अलग, इसके लकड़ी के तख्तों को जोड़ने के लिए कीलों या धातु का नहीं, बल्कि नारियल के रेशे से बनी रस्सियों का उपयोग किया गया है. इसे समुद्र की लहरों के अनुकूल बनाने के लिए प्राकृतिक गोंद (रेजिन), कपास और तेल की मदद से पूरी तरह सील किया गया है. इस खास ‘सिलाई वाली बनावट’ की वजह से जहाज का ढांचा काफी लचीला रहता है. यह लचीलापन इसे लहरों से टकराने के बजाय उनके दबाव को आसानी से झेलने की ताकत देता है. प्राचीन काल में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के मुश्किल रास्तों पर लंबी यात्रा करने वाले भारतीय नाविकों के लिए यह तकनीक सुरक्षा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण थी.
प्राचीन भारतीय इतिहास से प्रेरित निर्माण
इस जहाज का डिजाइन अजंता की गुफाओं में मिले चित्रों, पुराने भारतीय ग्रंथों और विदेशी यात्रियों के लिखे लेखों से प्रेरित है. चूंकि इतिहास में इसका कोई तैयार नक्शा (ब्लूप्रिंट) मौजूद नहीं था, इसलिए भारतीय नौसेना ने उपलब्ध चित्रों और वैज्ञानिक रिसर्च की मदद से इस डिजाइन को फिर से तैयार किया है. भले ही यह एक प्राचीन डिजाइन है, लेकिन इसे गहरे समुद्र की चुनौतियों के लिए पूरी तरह तैयार किया गया है. जहाज की मजबूती और लहरों पर इसके संतुलन को सुनिश्चित करने के लिए IIT मद्रास जैसे संस्थानों के साथ मिलकर विशेष वैज्ञानिक परीक्षण और ‘स्टेबिलिटी स्टडी’ की गई है, ताकि यह बिना किसी खतरे के अपनी यात्रा पूरी कर सके.
आकार और चालक दल
INSV कौंडिन्या की लंबाई लगभग 19.6 मीटर और चौड़ाई 6.5 मीटर है, जबकि पानी के भीतर इसकी गहराई (ड्राफ्ट) करीब 3.33 मीटर है. यह जहाज पूरी तरह से हवा और पालों के सहारे चलता है. इसे चलाने के लिए 15 नाविकों का एक दल तैयार किया गया है, जिन्हें पुरानी तकनीकों और पारंपरिक परिस्थितियों में जहाज संभालने की खास ट्रेनिंग दी गई है. इसे बनाने में भारत की स्वदेशी ‘टंकाई पद्धति’ का इस्तेमाल हुआ है. इस अनूठी तकनीक में सबसे पहले जहाज के बाहरी ढांचे (पतवार) को सिला जाता है और उसके बाद अंदरूनी ढांचा या पसलियां जोड़ी जाती हैं. इस विधि की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें कहीं भी धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता. कमांडर विकास शेओरान पोत की कप्तानी करेंगे, जबकि कमांडर वाई हेमंत कुमार अभियान के प्रभारी अधिकारी के रूप में काम करेंगे. दल में चार अधिकारी और तेरह नौसैनिक शामिल हैं. हेमंत कुमार परियोजना की अवधारणा के समय से ही इससे जुड़े हुए हैं.
एक साझा प्रयास और पुनरुद्धार
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत जुलाई 2023 में संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और ‘होडी इनोवेशन्स’ के बीच हुए एक समझौते के तहत हुई थी. इस पूरी परियोजना का खर्च संस्कृति मंत्रालय ने उठाया है. मुख्य जहाज निर्माता (मास्टर शिपराइट) बाबू शंकरन के मार्गदर्शन में केरल के अनुभवी कारीगरों ने इस जहाज को पूरी तरह अपने हाथों से सिलकर तैयार किया है. इस अनूठे जहाज को फरवरी 2025 में पहली बार पानी में उतारा गया और फिर मई में कर्नाटक के कारवार में इसे आधिकारिक तौर पर भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया. यह भारत की अपनी प्राचीन समुद्री विरासत और ज्ञान को फिर से जीवित करने की दिशा में एक बहुत बड़ी कामयाबी है.
जहाज पर अंकित सांस्कृतिक विरासत
INSV कौंडिन्या पर भारत की गौरवशाली समुद्री और सभ्यता से जुड़े कई खास प्रतीक चिह्न बनाए गए हैं. इनमें कदंब वंश का दो सिरों वाला ‘गंडभेरुंडा’, पालों (Sails) पर उकेरा गया सूर्य का प्रतीक और जहाज के अगले हिस्से (धनुष) पर बनी पौराणिक शेर ‘याली’ की आकृति शामिल है. साथ ही, इसके डेक पर हड़प्पा काल की याद दिलाने वाला पत्थर का एक लंगर भी रखा गया है. ये सभी प्रतीक भारत के समुद्री इतिहास के अलग-अलग दौर की याद दिलाते हैं. ये इस बात के गवाह हैं कि भारत सदियों से विदेशों के साथ व्यापार और सांस्कृतिक रिश्तों में कितनी गहराई से जुड़ा रहा है.
एक महान नाविक की याद में
इस जहाज का नाम कौंडिन्य के नाम पर रखा गया है, जो पहली शताब्दी के एक महान भारतीय नाविक थे, उनका जिक्र दक्षिण-पूर्वी एशियाई और चीनी ऐतिहासिक दस्तावेजों में मिलता है. इन रिकॉर्ड्स के अनुसार, कौंडिन्य ने मेकांग डेल्टा तक की समुद्री यात्रा की थी, जहां उन्होंने रानी सोमा से विवाह किया और आज के कंबोडिया में ‘फुनन साम्राज्य’ की नींव रखने में मदद की. यह साम्राज्य दक्षिण-पूर्वी एशिया के उन शुरुआती राज्यों में से था, जहां भारतीय संस्कृति का गहरा असर पड़ा. माना जाता है कि आगे चलकर प्रसिद्ध खमेर और चाम राजवंशों का जन्म भी इसी मेल से हुआ. हालांकि भारतीय इतिहास के पन्नों में कौंडिन्य के बारे में अधिक विवरण नहीं मिलता, लेकिन उन्हें एक ऐसे पहले भारतीय नाविक के रूप में पहचाना जाता है, जिनका ऐतिहासिक प्रभाव वैश्विक स्तर पर दर्ज है.
पहले कैसे होती थीं समुद्री यात्राएं
प्राचीन नाविकों की सबसे बड़ी शक्ति मानसून की हवाएं थीं. वे जानते थे कि साल के किस समय हवाएं पश्चिम से पूर्व (भारत की ओर) चलती हैं और कब पूर्व से पश्चिम (अरब और अफ्रीका की ओर). हिप्पलस जैसे नाविकों ने इन हवाओं के चक्र को समझ लिया था, जिससे वे खुले समुद्र को पार करने का जोखिम उठा पाते थे. बिना इंजन के जहाज ‘पालों’ के सहारे चलते थे. नाविक पालों के कोण (Angle) को इस तरह बदलते थे कि हवा का दबाव जहाज को आगे की ओर धकेले. हवा का रुख थोड़ा विपरीत होने पर भी ‘टैकिंग’ जैसी तकनीकों से जहाज को तिरछा चलाकर मंज़िल की ओर बढ़ाया जाता था.
सितारों और प्रकृति से रास्ता खोजना
मैप और GPS के बिना रास्ता खोजने के लिए नाविक इन साधनों का उपयोग करते थे. रात में ध्रुव तारा (Pole Star) और विभिन्न नक्षत्रों की स्थिति देखकर दिशा और अक्षांश (Latitude) का पता लगाया जाता था. पानी का रंग, लहरों का व्यवहार, उड़ते हुए पक्षी और समुद्र में तैरती वनस्पतियों को देखकर नाविक समझ जाते थे कि जमीन कितनी दूर है. जैसे INSV कौंडिन्या को सिला गया है, प्राचीन जहाजों के तख्ते भी नारियल की रस्सियों से बांधे जाते थे. ये जहाज कठोर होने के बजाय लचीले होते थे. जब बड़ी लहरें इनसे टकराती थीं, तो ये टूटते नहीं थे बल्कि लहरों के साथ थोड़ा मुड़ जाते थे, जिससे इनका ढांचा सुरक्षित रहता था. शुरुआती दौर में नाविक जमीन की रेखा (Coastline) को नजर में रखते हुए यात्रा करते थे. वे बंदरगाह दर बंदरगाह रुकते हुए आगे बढ़ते थे, जिससे रसद (भोजन-पानी) जुटाना और व्यापार करना आसान होता था.
दोस्ती और कूटनीति का नया अध्याय
इस अभियान से भारत और ओमान के बीच आपसी रिश्तों को और भी मजबूती मिलने की उम्मीद है. यह यात्रा हमारी साझा समुद्री विरासत को याद दिलाएगी और दोनों देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव को गहरा करेगी. जब INSV कौंडिन्या मस्कट (ओमान) पहुंचेगा, तो वह सदियों पुराने उस भरोसे और सम्मान का प्रतीक बनेगा जिसने इन दोनों समुद्री देशों को हमेशा जोड़कर रखा है. यह यात्रा गुजरात और ओमान के बीच के उन ऐतिहासिक व्यापारिक रिश्तों को भी सामने लाएगी, जो आज भी सहयोग के रूप में जारी हैं. इस मिशन के जरिए भारतीय नौसेना अपनी समुद्री कूटनीति, पुरानी विरासत को बचाने और पड़ोसी देशों के साथ मिलकर चलने के अपने संकल्प को दर्शाती है. INSV कौंडिन्या की यह यात्रा साबित करती है कि भारत हिंद महासागर क्षेत्र में एक जिम्मेदार और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश है, जिसे अपनी महान समुद्री परंपराओं पर गर्व है.

1 hour ago
