Last Updated:June 09, 2025, 07:23 IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित भाषण पर सुप्रीम कोर्ट की जांच राज्यसभा सचिवालय की चिट्ठी के बाद रोक दी गई. जानें उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था...

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर कुमार यादव एक बार फिर सुर्खियों में हैं. (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यादव की जांच रोकी.राज्यसभा में जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव.जस्टिस यादव ने विवादित भाषण पर माफी नहीं मांगी.इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं. सुप्रीम कोर्ट उनके खिलाफ जांच की तैयारी कर ही रहा था कि तभी राज्यसभा से आई एक चिट्ठी ने पूरी प्रक्रिया पर विराम लगा दिया. यह पूरा मामला उनके उस विवादित भाषण से जुड़ा है, जो उन्होंने 8 दिसंबर 2024 को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में दिया था. उस भाषण में उन्होंने बहुसंख्यकवाद का समर्थन करते हुए कहा था कि ‘भारत को बहुसंख्यकों की इच्छानुसार चलना चाहिए’. इसके साथ ही उन्होंने दावा किया था कि ‘केवल एक हिंदू ही भारत को विश्वगुरु बना सकता है.’ साथ ही उन्होंने मुस्लिम समुदाय से जुड़ी प्रथाओं जैसे ट्रिपल तलाक और हलाला को समाज की पिछड़ापन से जोड़ते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की वकालत की थी.
इस भाषण का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और चारों ओर से आलोचना शुरू हो गई. राजनीतिक दलों, वरिष्ठ वकीलों, नागरिक संगठनों और पूर्व न्यायाधीशों ने इसे न्यायिक गरिमा और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के नेतृत्व में 55 विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने न्यायिक आचरण के मूल्यों का गंभीर उल्लंघन किया है.
सुप्रीम कोर्ट में शुरू की जांच
इस आक्रोश के बीच सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत कार्रवाई करते हुए 10 दिसंबर 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी. रिपोर्ट आने के बाद 17 दिसंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस संजय खन्ना और चार सीनियर न्यायाधीशों वाली सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने जस्टिस यादव को बुलाकर बंद कमरे में 30 मिनट तक बातचीत की. बताया गया कि उस दौरान उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का आश्वासन दिया था, लेकिन इसके बाद हफ्तों तक ऐसा कोई बयान नहीं आया.
राज्यसभा से आई चिट्ठी में क्या था?
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में एक कानून के छात्र और एक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी से शिकायतें मिलने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट से एक नई रिपोर्ट की मांग की. लेकिन उसी समय एक अप्रत्याशित मोड़ आया. मार्च 2025 में सुप्रीम कोर्ट प्रशासन को राज्यसभा सचिवालय की एक औपचारिक चिट्ठी प्राप्त हुई, जिसमें बताया गया कि 13 दिसंबर को दायर किए गए महाभियोग प्रस्ताव के मद्देनजर यह मामला अब संसद के अधीन विचाराधीन है.
राज्यसभा सचिवालय की इस चिट्ठी में साफ तौर से कहा गया कि इस मामले में संवैधानिक अधिकार सिर्फ राज्यसभा के सभापति और अंततः संसद और राष्ट्रपति के पास है. चूंकि महाभियोग की प्रक्रिया पहले से ही सक्रिय थी, ऐसे सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इन-हाउस जांच का फैसला अवैधानिक है. इसलिए इसे अब रोक देना चाहिए ताकि संविधानिक टकराव और संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लंघन न हो.
इसके बाद कॉलेजियम के सभी सदस्यों को जानकारी दी गई कि अब जांच आगे नहीं बढ़ेगी. अदालत के एक सूत्र ने बताया कि न्यायपालिका ने पूरी तरह से यह मान लिया कि जब मामला संसद में लंबित है, तो न्यायिक स्तर पर समानांतर प्रक्रिया नहीं चलनी चाहिए.
संसद में मुद्दा उठाने की तैयारी में विपक्ष
उधर, विपक्षी सांसद इस मुद्दे को आगे बढ़ाने की तैयारी में हैं. एक वरिष्ठ सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उनकी पार्टी मानसून सत्र में इस पर सरकार से जवाब मांगेगी. उन्होंने कहा कि बजट सत्र में सभापति ने कहा था कि वह प्रस्ताव पर सांसदों के हस्ताक्षर की वैधता की जांच कर रहे हैं, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि प्रस्ताव पर क्या कार्रवाई की गई.
इस बीच, जस्टिस यादव अपने रुख पर कायम हैं. उन्होंने न तो सार्वजनिक माफी मांगी और न ही अपने बयान को वापस लिया. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों पर अक्सर एकतरफा हमले होते हैं और उन्हें वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों से समर्थन मिलना चाहिए.
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
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