क्‍या सच में बदमाशों का स्‍टेटस सिंबल बन चुके हैं थार और बुलेट, जानें सच्‍चाई

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Last Updated:November 10, 2025, 16:07 IST

क्‍या आपके मन में भी थॉर और बुलेट पर चलने वालों को लेकर यही ख्‍याल आता है कि वे गुंडागर्दी वाली मानसिकता के होंगे. हरियाणा के डीजीपी ने हाल में ऐसा ही बयान देकर सोशल मीडिया पर सनसनी फैला दी है. आखिर उनकी बातों में कितनी सच्‍चाई है तथ्‍यों के साथ इसकी पड़ताल करते हैं.

क्‍या सच में बदमाशों का स्‍टेटस सिंबल बन चुके हैं थॉर और बुलेट, जानें सच्‍चाईबुलेट और थॉर चलाने वालों को दबंग मानसिकता वाला माना जाता है.

नई दिल्‍ली. हरियाणा के जीडीपी ओपी सिंह के एक बयान ने सोशल मीडिया पर तूफान मचा दिया है. उन्‍होंने कहा कि हम थॉर और बुलेट पर चलने वालों को जरूर चेक करते हैं, क्‍योंकि आजकल ज्‍यादातर बदमाश ऐसे ही वाहनों पर चलते हैं. क्‍या आपके मन में भी ऐसा सवाल आता है कि बुलेट और थॉर गुंडागर्दी करने वालों के वाहन हैं. आखिर इसमें कार या बाइक की क्‍या गलती और इसे बनाने वाली कंपनी ने इन वाहनों को क्‍या सोचकर बनाया होगा और क्‍यों ये वाहन समाज में इस तरह से बदनाम हो गए हैं. कभी सेना और पुलिस वालों की पहली पसंद रहे इन वाहनों को लेकर समाज में यह स्‍टीरियोटाइप आखिर कैसे बन गया.

सबसे पहले बात करते हैं रॉयल इनफील्‍ड कंपनी इस धांसू बाइक बुलेट की. बुलेट का 350 सीसी क्षमता वाला इंजन साल 1930 से चल रहा है. 1950 के दशक में ऐसा भी समय आया, जब बुलेट को पुलिस और सेना वालों ने अपना लिया. इसकी मजबूती और दमदार इंजन ने इसे पुलिस पेट्रोलिंग के लिए सबसे मुफीद मोटरसाइकिल के रूप में पहचान दिलाई. बुलेट के दमदार परफॉर्मेंस की वजह से इसे ऑफरोड और हाईवे दोनों पर ही चलने के लिए बेहतर माना गया. कमोबेश यही स्थिति थॉर की भी है. महिंद्रा ने इस जीप कम कार को जब साल 2010 में उतारा तो जल्‍द ही यह लोगों पसंद बन गई. इसकी बनावट से ही यह काफी मजबूत और दमदार इंजन वाली कार लगती है. थॉर को ऑफरोड और हाईवे दोनों पर चलाने के लिहाज से बनाया गया है.

बुलेट बनाने के पीछे क्‍या थी कंपनी की मंशा
रॉयल इनफील्‍ड ने बुलेट को ‘लार्जर दैन लाइफ’ का विजन रखते हुए तैयार किया था. इसकी मजबूती और परफॉर्मेंस को देखते हुए ही साल 1949 में आर्मी ने एकसाथ 800 बुलेट का ऑर्डर दिया था. कभी भारी-भरकम बॉडी के साथ इसका निर्माण शुरू हुआ था, जो आज आकर्षक और मॉर्डन लुक के साथ बाजार में आ रही है. तब यह सेना और पुलिस की पसंद थी और आज युवाओं की पसंद बन गई है. अभी त्‍योहारी सीजन में ही करीब 1.75 लाख बुलेट की बिक्री हुई है, वह भी महज 42 दिनों के भीतर. जाहिर है कि इसका क्रेज आज भी लगातार बढ़ रहा है.

क्‍यों बना है ‘बदमाशों’ वाला स्‍टीरियोटाइप
तथ्‍यों के आधार पर देखा जाए तो बुलेट को लेकर बना बदमाशों वाला स्‍टीरियोटाइप सही नहीं लगता है. हम सिर्फ सितंबर-अक्‍टूबर के 42 दिनों के त्‍योहारी सीजन को देखें तो फाडा ने आंकड़े देकर बताया है कि देशभर में बुलेट की पौने 2 लाख मोटरसाइकिल बिकी हैं. अब बुलेट लेकर गुंडागर्दी या बदमाशी करने वालों का आंकड़ा निकाला जाए तो यह संख्‍या काफ कम होगी. जाहिर है कि फैक्‍ट के आधार पर यह कहना सही नहीं है कि बुलेट तरह का बदमाशों वाला स्‍टीरियोटाइप सेट करता है. हां, कुछ घटनाएं जरूर सामने आई हैं जहां बुलेट सवार युवाओं ने स्‍टंट किए हैं अथवा किसी अपराध को अंजाम दिया. लेकिन, इन चंद घटनाओं के लिए बुलेट जैसी शानदार बाइक पर सवालिया निशान लगाना कतई ठीक नहीं लगता.

कुछ घटनाओं ने बढ़ाई समस्‍या
पिछले दिनों पंजाब से एक खबर आई थी कि पिछड़ी जाति के एक लड़के के बुलेट से चलने पर कुछ ऊंची जाति के युवाओं ने उसकी पिटाई कर दी. ऐसी ही और भी घटनाएं सामने आईं, जिन्‍हें लेकर सोशल मीडिया और समाज में यह धारणा बनाई गई कि बुलेट खरीदने वाले दबंग मानसिकता के होते हैं. लेकिन, आजकल की युवा पीढ़ी को मजबूत और मॉर्डन दिखना पसंद है. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि कुछ साल पहले के मुकाबले आज जिम जाकर डोले और बॉडी बनाने का चलन भी युवाओं में बढ़ रहा है. इसका मतलब यह तो नहीं कि जिम जाने वाले युवा दबंग मानसिकता के होते हैं. उन्‍हें सिर्फ खुद को अच्‍छा और मजबूत दिखाने में रुचि है. ठीक उसी तरह बुलेट भी ऐसे युवाओं की पसंद है, जो मजबूत और मॉर्डन दिखना चाहते हैं और कुछ भी नहीं. लिहाजा, कुछ चंद घटनाओं की वजह से किसी वाहन को ही ‘बदमाशी और गुंडागर्दी’ का स्‍टेटस सिंबल देना ठीक बात नहीं होगी.

अब बात करते हैं थॉर की
महिंद्रा एंड महिंद्रा की ‘द रॉक’ जैसी फीलिंग देने वाली कार यानी थॉर इस कंपनी का पहला ऐसा प्रोडक्‍ट नहीं था, बल्कि साल 1945 में ही महिंद्रा ने विलीज जीप को लॉन्‍च करके ऐसा ही संदेश दे दिया था. कंपनी ने यह जीप सेना और किसानों को एक मजबूत वाहन सौंपने के लिए जॉन्‍च की थी. कंपनी ने साल 1949 में CJ3A जीप लॉन्‍च किया, जिसे आप थॉर की ही ‘ग्रैंडमदर’ कह सकते हैं. फिर आया साल 2010 जब कंपनी ने अपनी पुरानी जीप का डीएनए थॉर में डाला और थॉर डेजर्ट के नाम से बाजार में उतारा तो किसी को अंदाजा भी नहीं था कि यह कार इतनी ज्‍यादा सफल होगी. जाहिर है कि कंपनी की मंशा आज भी उसी पुरानी फीलिंग को देना है. बस तब कंपनी का टार्गेट कंज्‍यूमर सेना और किसान थे और आज युवा हैं. युवाओं को कुछ मजबूत और मॉडर्न चाहिए जो थॉर बखूबी उन्‍हें देती है.

क्‍यों थॉर को लेकर बनी मानसिकता
वैसे तो थॉर को बाजार में आए सिर्फ 15 साल हुए हैं, लेकिन इससे जुड़ी इतनी घटनाएं सामने आ चुकी हैं कि सोशल मीडिया पर इसे ‘गुंडागर्दी’ वाला सिंबल दिया जा चुका है. हाल में थॉर के साथ कई स्‍टंट वीडियोज, एक्‍सीडेंट और घटनाएं सामने आई हैं. कहीं कोई हाइवे पर उल्‍टी ड्राइविंग कर रहा था तो कहीं कोई छतों पर बैठकर घूम रहा है. पिछले दिनों हरियाणा में ही एक एसीपी के बेटे ने थॉर से किसी को कुचल दिया और भाग गया. कई शहरों में पुलिस ने रोड रेज के जितने भी मामले दर्ज किए हैं, उनमें 20 फीसदी में तो थॉर ही शामिल रही है. हालांकि, इन घटनाओं के बावजूद इस वाहन पर अंगुली उठाने के बजाय लोगों को अपनी मानसिकता बदलने पर ध्‍यान देना चाहिए तो ज्‍यादा बेहतर होगा.

Pramod Kumar Tiwari

प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्‍वेस्‍टमेंट टिप्‍स, टैक्‍स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...और पढ़ें

प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्‍वेस्‍टमेंट टिप्‍स, टैक्‍स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

November 10, 2025, 15:59 IST

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