‘ट्रंप साहब तो बहुत कुछ बोलते रहते हैं… सब कुछ अगर इतना सीरियसली लोगे तो कैसे चलेगा…’ बीजेपी के एक शीर्ष नेता ने इस महीने की शुरुआत में मुझसे यह बात कही थी. यह वाक्य ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हरकतों और बयानों को लेकर भारत की निराशा को बखूबी बयां करता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत ट्रंप पर एक दोस्त और सहयोगी के तौर पर भरोसा कर सकता है? इसी लाख टके के सवाल पर रायसीना हिल्स में मंथन चल रहा है, खासकर जब ट्रंप बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम लागू कराया, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 35 मिनट की फोन कॉल में उनके मुंह पर ही यह दावा सिरे से खारिज कर चुके हैं. पीएम मोदी ने ट्रंप का वह न्यौता भी ठुकरा दिया था, जिसमें उन्होंने कनाडा से लौटते वक्त अमेरिका में ठहरने का अनुरोध किया था.
ईरान के जरिये अमेरिका को मैसेज
अब जबकि अमेरिका ने ईरान पर हमला कर दिया है, प्रधानमंत्री मोदी और ईरान के राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान के बीच 45 मिनट लंबी बातचीत हुई. इसमें पीएम मोदी ने तनाव कम करने की अपील की और पेज़ेश्कियान ने भारत को ‘मित्र’ बताते हुए क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बहाल करने में भारत की भूमिका को अहम बताया.
यह अमेरिका के लिए भारत का एक सूक्ष्म लेकिन सशक्त संदेश था. जहां पीएम मोदी और ट्रंप की बातचीत सिर्फ 35 मिनट की रही, वहीं मोदी और पेज़ेश्कियान की बातचीत उससे लंबी रही और खास बात यह कि यह कॉल ईरान की तरफ से आया था.
मुनीर को दावत के पीछे ट्रंप का गेम
भारत के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा जब ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर बुलाया. हां, वही असीम मुनीर जिसे भारत पहलगाम आतंकी हमले का मास्टरमाइंड मानता है. वही मुनीर जो दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थक है, जो कश्मीर को पाकिस्तान के ‘गले की नस’ कहता है और हिंदू-मुसलमान के बीच भेद की नीति को आगे बढ़ाता है. यानी संक्षेप में, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का एक प्रमुख चेहरा.
ट्रंप ने मुनीर को इसलिए आमंत्रित किया, क्योंकि अमेरिका ईरान के साथ युद्ध में उतरने का मन बना चुका था और उसे पाकिस्तान की रणनीतिक मदद की जरूरत थी. पाकिस्तान ने बदले में ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने की औपचारिक सिफारिश कर दी. यानी सौदा पक्का!
ट्रंप अमेरिकी की सत्ता में इस वादे के साथ वापस आए थे कि वे रूस-यूक्रेन और इजरायल-फिलिस्तीन के बीच चल रहे दो युद्धों को खत्म करेंगे. हालांकि अब हमारे सामने चार युद्ध हैं… 13 जून को शुरू हुआ इजरायल-ईरान युद्ध, जिसमें अब अमेरिका भी कूद पड़ा है. अमेरिकी एयरफोर्स ने रविवार को ईरान पर एक बड़ा सैन्य हमला कर दिया, जिसमें उसके तीन बड़े परमाणु ठिकानों को तबाह किया गया. ट्रंप ने इस तरह अमेरिका की सेना को सीधे इस युद्ध में झोंक दिया.
क्या हम अब तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?
रविवार को अमेरिका के सैन्य हमले के साथ हालात में एक बड़ा और चौंकाने वाला मोड़ आ गया. बंकर बस्टर बम, टॉमहॉक मिसाइलें और अब तक का सबसे ताकतवर बमवर्षक B2 का इस्तेमाल किया गया.
पाकिस्तान की ईरान से 900 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. वह अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बनता जा रहा है, ताकि वह तेहरान पर बढ़त बना सके. पाकिस्तान भले ही सार्वजनिक रूप से ईरान के साथ खड़ा नजर आए, लेकिन उसकी असली कार्रवाई कुछ और संकेत दे सकती है.
पर भारत के लिए भी एक युद्ध जारी है… पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ. ऑपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है. एक कूटनीतिक युद्ध भी चल रहा है… ट्रंप की उस कहानी को खारिज करने के लिए कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोका.
भारत का लक्ष्य यह है कि वैश्विक मंच पर भारत और पाकिस्तान को एक साथ नहीं जोड़ा जाए, जैसे पहले था. लेकिन इसके साथ-साथ अमेरिका के साथ व्यापार समझौते की बातचीत को भी पटरी पर बनाए रखना है.
पाकिस्तान पर रुख बदलते पलटूबाज़ ट्रंप
अगर ट्रंप के अतीत को देखा जाए तो वह यू-टर्न, दिखावे और मौके के अनुसार खुद को बदलने से भरा हुआ है. अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने कहा था कि पाकिस्तान झूठ और धोखे का प्रतीक है और उसने अमेरिका की 33 अरब डॉलर की सहायता का गलत इस्तेमाल किया. लेकिन अब वे कह रहे हैं कि उन्हें पाकिस्तान से प्रेम है और असीम मुनीर एक ‘पावरफुल’ व्यक्ति हैं. भारत के लिए यह बात भी अहम है कि मुनीर ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से पहले व्हाइट हाउस में ट्रंप से मुलाकात की.
सच कहें तो भारत यह तय नहीं कर सकता कि ट्रंप किसे लंच पर बुलाएं. भारत को वाशिंगटन की हर हरकत पर घबराने की भी जरूरत नहीं है. लेकिन भारत को यह अमेरिका को साफ बता देना चाहिए कि हमारे लिए असीम मुनीर एक रेड लाइन है. वह एक कट्टरपंथी है और 22 अप्रैल से 10 मई के बीच तनाव बढ़ाने का मुख्य जिम्मेदार भी. भारत और अमेरिका दोस्त हैं, लेकिन दोस्तों के बीच भी कुछ सीमाएं होती हैं.
पीएम मोदी की ईरान के राष्ट्रपति से 45 मिनट की बातचीत अमेरिका के लिए पहला बड़ा कूटनीतिक संकेत है. ईरान अब भारत से ‘मध्यस्थ’ की भूमिका निभाने की गुजारिश कर रहा है ताकि शांति बहाल हो सके.
अमेरिका को समझाना होगा भारत का ‘नया नार्मल’
नई दिल्ली की चिंता यह है कि वॉशिंगटन अब उसी देश को रणनीतिक भागीदार मान रहा है जो भारत में आतंकवाद फैलाता है. इसे ‘बेतुकेपन का सर्कस’ कह सकते हैं… ट्रंप, जो एक झूठे दावे से युद्ध रोकने का श्रेय ले रहे हैं, वही अब नोबेल पुरस्कार के लिए उस देश की तरफ नामित हो रहे हैं जिसने पहलगाम का आतंकी हमला रचा. और इसे और भी विडंबनापूर्ण बनाता है उसका चेहरा, एक कट्टरपंथी असीम मुनीर है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ तीन ‘नए नार्मल’ तय किए. अब शायद भारत को अमेरिका जैसे दोस्त को भी ‘नया नार्मल’ समझाना होगा… कि ‘हमारी रेड लाइन का सम्मान करें, मध्यस्थता या उसके दावे से दूर रहें, और पाकिस्तान को आतंकवाद से बरी करने की कोशिश न करें’.
अगर अमेरिका पाकिस्तान को वैधता देने की कोशिश करता है, तो भारत अब मूक दर्शक बनकर नहीं रहेगा.
मोदी ने ट्रंप को 35 मिनट की कॉल में दो टूक शब्दों में अपनी बात कह दी है और अमेरिका में रुकने के न्यौते को ठुकराकर यह सुनिश्चित किया कि कहीं व्हाइट हाउस में एक ही दिन, शायद एक ही वक्त पर, मोदी और मुनीर की मौजूदगी से कोई राजनयिक जाल न बिछा हो. मोदी ट्रंप का खेल समझ गए. और ईरान से उनकी बातचीत यह दिखा रही है कि अब भारत भी खेल खेलने को तैयार है.